Saturday 31 January 2015

बहुत बार जीवन में हम पहचान नहीं पाते, कौन मित्र है, कौन शत्रु है। हम यही नहीं समझ पाते कि हम अपने मित्र हैं या शत्रु हैं। वहीं पहली भूल हो जाती है। तुमने अपनी एक प्रतिमा बना रखी है, जो झूठ है। वह प्रतिमा तुमने उन लोगों के हाथ से बनवा ली है, जिन्होंने तुम्हारी प्रशंसा की थी।

तो हर बेटा अपनी मां को सुंदर कहता है, हर मां अपने बेटे को सुंदर कहती है। हर मां अपने बेटे को लाल बताती है, हीरे-जवाहरात बताती है। कारण है; बेटा फल है और अगर फल कडुवा निकल गया तो वृक्ष नीम का हो गया। अगर फल जहरीला निकल गया तो स्रोत जहर का हो गया।
मां का अहंकार दाव पर लगा है बेटे में। बाप का अहंकार दाव पर लगा है बेटे में। तुम जरा मां और पिताओं की बातें सुनो। अगर इन सबकी बातें सच हैं तो इस दुनिया में इतने मेधावी लोग हों कि सारी पृथ्वी मेधा से भर जाए। हर एक मां-बाप यही सोच रहे हैं कि उन्होंने हीरे को जन्म दे दिया। फिर कहो ये हीरे खो जाते हैं? फिर इन हीरों का कोई पता नहीं चलता। ये हीरे और हीरों को जन्म देने लगते हैं। इनके हीरे होने का कुछ पता नहीं चलता। जिंदगी कूड़े-करकट से भरती चली जाती है।
ध्यान रखना, तुम्हारी मां ने तुम्हें एक वहम दे दिया होगा कि तुम बड़े सुंदर हो। तुम्हारे पिता ने तुम्हें वहम दे दिया होगा कि तुम बड़े बुद्धिमान हो। बाप धक्के देता रहता है कि प्रथम आओ परीक्षा में। बाप का अहंकार दांव पर लगा है। तुम्हारा ही नहीं है सवाल, बच्चे ही परीक्षा नहीं दे रहे हैं, मां-बाप परीक्षा. मां-बाप की परीक्षा हुई जा रही है। जब तुम घर आते हो और असफल होकर आते हौं तो मां-बाप दुखी हो जाते हैं तुमसे भी ज्यादा। तुमने उनकी प्रतिमा खंडित कर दी।
तुम जब कुछ दुष्कर्म करते हो, कुछ बुरा काम करते हो, तो मां-बाप इसलिए दुखी नहीं होते कि तुम ने बुरा काम किया; दुख का कारण अहंकार है। अगर तुम्हारा दुष्कर्म छिपा रह जाए तो कोई हर्जा नहीं। मां-बाप भी चेष्टा करते हैं कि तुम्हारा दुष्कर्म पता न चल जाए। छिप जाए, तो ठीक। पता चलने से कष्ट होता है, अहंकार को चोट लगती है-मेरा बेटा!

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