Wednesday 14 January 2015

जब तक तुम सोचते हो, गलत ही सोचोगे। सोचना मात्र गलत है। जब तक ‘तुम’ सोचोगे, तब तक गलत सोचोगे क्योंकि मैं की अवधारणा ही गलत है।
तुम जोखम भी नहीं लेना चाहते, तुम पाने को भी आतुर हो, और तुम कोई खतरा नहीं उठाना चाहते। तुम कहते हो—क्या यह संभव है कि मैं बगैर संन्यास लिए आपका शिष्य रह सकूं? मेरी तरफ से कोई अड़चन नहीं है, अड़चनें तुम्हारी तरफ से आएंगी। मेरी तरफ से क्या अड़चन है, तुम मजे से शिष्य रहो, विद्यार्थी रहो, कोई भी न रहो, मेरी तरफ से कोई अड़चन नहीं है। मेरी तरफ से तुम मुक्त हो। अड़चन तुम्हारी तरफ से आएगी—तुम बिना संन्यासी हुए शिष्य रहना चाहते हो, अड़चन शुरू हो गयी। इसका मतलब यह हुआ कि मेरे बिना पास आए पास आना चाहते हो। कैसे यह होगा? पास आओगे तो संन्यास फलित होगा। संन्यास से बचना है तो दूर—दूर रहना होगा, थोड़े फासले पर बैठना होगा। थोड़ी गुंजाइश रखनी होगी। कहीं ज्यादा पास आ जाओ और मेरे रंग में रंग जाओ, यह डर तो बना ही रहेगा न! मेरी बात भी सुनोगे तो भी दूर खड़े होकर सुनोगे, कि कितनी लेनी और कितनी नहीं लेनी। चुनाव करने वाले तुम ही रहोगे। और काश! तुम्हें पता होता कि सत्य क्या है तब तो मेरी बात भी सुनने की क्या जरूरत थी! तुम्हे सत्य का कुछ पता नहीं। तुम चुनाव करोगे, तुम्हारे असत्य ही उस चुनाव में आधारभूत होंगे। वही तुम्हारी तराजू होगी, उसी पर तुम तौलोगे;और सदा तुम डरे भी रहोगे कि कहीं ज्यादा पास न आ जाऊं, कहीं इन और दूसरे गैरिक वस्त्रधारियों की तरह मैं भी सम्मोहित न हो जाऊं—मुझे तो संन्यासी नहीं होना है, मुझे तो सिर्फ शिष्य रहना है।
शिष्य का मतलब समझते हो?
शिष्य का मतलब होता है—जो सीखने के लिए परिपूर्ण रूप से तैयार है।परिपूर्ण रूप से तैयार है। फिर संन्यास घटे कि मौत घटे, फिर शर्त नहीं बांधता। वह कहता है—जब सीखने ही चले, तो कोई शर्त न बाधेगे। फिर जो हो। अगर सीखने के पहले ही निर्णय कर लिया है कि इतना ही सीखेंगे, इससे आगे कदम न बढ़ाके, तो तुम अपने अतीत से छुटकारा कैसे पाओगे? तुम अपने व्यतीत से मुक्त कैसे होओगे? तो तुम्हारा अतीत तुम्हे अवरुद्ध रखेगा।

No comments:

Post a Comment