यदि व्यक्ति का प्रेम जीवन परिपूर्ण है। तुम पुजा स्थलों पर बहुत से लोगों को प्रार्थना करते हुए नहीं पाओगे। वे प्रेम क्रीड़ा कर रहे होंगे। कोई चिंता करता है उन मूर्खों की जो धर्मस्थलों पर भाषण दे रहे है। यदि लोगों को प्रेम जीवन पूर्णतया संतुष्ट और सुंदर हो वे इसकी चिंता नहीं करेंगे कि परमात्मा है या नहीं।
धर्मों ने तुम्हारे प्रेम को विवाह बना कर नष्ट कर दिया है। विवाह अंत है। प्रारंभ नहीं। प्रेम समाप्त हुआ। अब तुम एक पति हो। तुम्हारी प्रेमिका तुम्हारी पत्नी है। अब तुम एक दूसरे का दमन कर सकते हो। यह एक राज निति हुई, यह तो प्रेम नही हुआ। अब हर छोटी सी बात विवाद का विषय बन जाती है।
और विवाह मनुष्य की प्रकृति के विरूद्ध है, इसलिए देर-अबेर तुम इस स्त्री से ऊबने वाले हो। और स्त्री तुमसे। और यह स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं विवाह नहीं होना चाहिए। क्योंकि विवाह पूरे विश्व को अनैतिक बनता है।
मैं चाहता हूं लोगे पुरी तरह विवाह और विवाह के प्रमाण पत्रों से मुक्त हो जाए। उनके साथ रहने का एक मात्र कारण होना चाहिए प्रेम, कानून नहीं। प्रेम एक मात्र कानून होना चाहिए।
तब जो तुम पूछ रहे हो संभव हो सकता है। जिस क्षण प्रेम विदा होता है। एक दूसरे को अलविदा कह दो। विवाह के लिए कुछ नहीं है। प्रेम अस्तित्व का एक उपहार था। वह पवन के झोंके की भांति आया, और हवा की तरह चला गया। तुम एक दूसरे के आभारी होगे। तुम विदा हो सकते हो। लेकिन तुम उन सुंदर क्षणों को स्मरण करोगे जब तुम साथ थे। यदि प्रेमी नही, तो तुम मित्र होकर रह सकते हो। साधारणतया जब प्रेमी जुदा होते है वे शत्रु हो जाते है। वास्तव में विदा होने से पहले ही वे शत्रु हो जाते है—इसीलिए वे जुदा हो रहे है।
अंतत: यदि दोनों व्यक्ति ध्यानी है, न कि प्रेमी इस प्रयास में कि प्रेम की ऊर्जा एक ध्यान मय स्थिति में परिवर्तित हो जाए—और यही मेरी देशना है। एक पुरूष और एक स्त्री के संबंध में। यह एक प्रगाढ़ ऊर्जा है। यह जीवन है। यदि प्रेम क्रीड़ा करते समय, तुम दोनों एक मौन अंतराल में प्रवेश कर सको। नितांत मौन स्थल में, तुम्हारे मन में कोई विचार नहीं उठता। मानों समय रूक गया हो। तब तुम पहली बार जानोंगे कि प्रेम क्या है। इस भांति का प्रेम संपूर्ण जीवन चल सकता है। क्योंकि यह कोई जैविक आकर्षण नहीं है जो देर-अबेर समाप्त हो जाए। अब तुम्हारे सामने एक नया आयाम खुल रहा है।
तुम्हारी स्त्री तुम्हारा मंदिर हो गई है। तुम्हारा पुरूष तुम्हारा मंदिर हो गया है। अब तुम्हारा प्रेम ध्यान हुआ। और यह ध्यान विकसित होता जाएगा। और जि यह विकसित होगा तुम और-और आनंदित होने लगोगे। और अधिक संतुष्ट और अधिक सशक्त। कोई संबंध नहीं, साथ रहने का कोई बंधन नहीं। लेकिन आनंद का परित्याग कौन कर सकता है। कौन माँगेगा तलाक जब इतना आनंद हो? लोग तलाक इसीलिए मांग रहे है क्योंकि कोई आनंद नहीं है। मात्र संताप है और चौबीसों घंटे एक दुःख स्वप्न।
यदि दोनों व्यक्ति प्रेमी ओर ध्यानी है, तब वे इसकी परवाह नहीं करेंगे कि कभी-कभी वह चाइनीज़ रेस्टोरेंट में चला जाए और दूसरा कंटीनैंटल रेस्टोरेंट में। इसमे कोई समस्या नहीं है। तुम इस स्त्री से प्रेम है। यदि कभी वह किसी और के साथ आनंदित होती है, इसमें गलत क्या है? तुम्हें खुश होना चाहिए कि यह प्रसन्न है, क्योंकि तुम उससे प्रेम करते हो, केवल ध्यानी ही ईर्ष्या से मुक्त हो सकता है।
एक प्रेमी बनो—यह एक शुभ प्रारंभ है लेकिन अंत नहीं, अधिक और अधिक ध्यान मय होने में शक्ति लगाओ। और शीध्रता करो, क्योंकि संभावना है कि तुम्हारा प्रेम तुम्हारे हनीमून पर ही समाप्त हो जाए। इसलिए ध्यान और प्रेम हाथ में हाथ लिए चलने चाहिए। यदि हम ऐसे जगत का निर्माण कर सकें जहां प्रेमी ध्यानी भी हो।
धर्मों ने तुम्हारे प्रेम को विवाह बना कर नष्ट कर दिया है। विवाह अंत है। प्रारंभ नहीं। प्रेम समाप्त हुआ। अब तुम एक पति हो। तुम्हारी प्रेमिका तुम्हारी पत्नी है। अब तुम एक दूसरे का दमन कर सकते हो। यह एक राज निति हुई, यह तो प्रेम नही हुआ। अब हर छोटी सी बात विवाद का विषय बन जाती है।
और विवाह मनुष्य की प्रकृति के विरूद्ध है, इसलिए देर-अबेर तुम इस स्त्री से ऊबने वाले हो। और स्त्री तुमसे। और यह स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं विवाह नहीं होना चाहिए। क्योंकि विवाह पूरे विश्व को अनैतिक बनता है।
मैं चाहता हूं लोगे पुरी तरह विवाह और विवाह के प्रमाण पत्रों से मुक्त हो जाए। उनके साथ रहने का एक मात्र कारण होना चाहिए प्रेम, कानून नहीं। प्रेम एक मात्र कानून होना चाहिए।
तब जो तुम पूछ रहे हो संभव हो सकता है। जिस क्षण प्रेम विदा होता है। एक दूसरे को अलविदा कह दो। विवाह के लिए कुछ नहीं है। प्रेम अस्तित्व का एक उपहार था। वह पवन के झोंके की भांति आया, और हवा की तरह चला गया। तुम एक दूसरे के आभारी होगे। तुम विदा हो सकते हो। लेकिन तुम उन सुंदर क्षणों को स्मरण करोगे जब तुम साथ थे। यदि प्रेमी नही, तो तुम मित्र होकर रह सकते हो। साधारणतया जब प्रेमी जुदा होते है वे शत्रु हो जाते है। वास्तव में विदा होने से पहले ही वे शत्रु हो जाते है—इसीलिए वे जुदा हो रहे है।
अंतत: यदि दोनों व्यक्ति ध्यानी है, न कि प्रेमी इस प्रयास में कि प्रेम की ऊर्जा एक ध्यान मय स्थिति में परिवर्तित हो जाए—और यही मेरी देशना है। एक पुरूष और एक स्त्री के संबंध में। यह एक प्रगाढ़ ऊर्जा है। यह जीवन है। यदि प्रेम क्रीड़ा करते समय, तुम दोनों एक मौन अंतराल में प्रवेश कर सको। नितांत मौन स्थल में, तुम्हारे मन में कोई विचार नहीं उठता। मानों समय रूक गया हो। तब तुम पहली बार जानोंगे कि प्रेम क्या है। इस भांति का प्रेम संपूर्ण जीवन चल सकता है। क्योंकि यह कोई जैविक आकर्षण नहीं है जो देर-अबेर समाप्त हो जाए। अब तुम्हारे सामने एक नया आयाम खुल रहा है।
तुम्हारी स्त्री तुम्हारा मंदिर हो गई है। तुम्हारा पुरूष तुम्हारा मंदिर हो गया है। अब तुम्हारा प्रेम ध्यान हुआ। और यह ध्यान विकसित होता जाएगा। और जि यह विकसित होगा तुम और-और आनंदित होने लगोगे। और अधिक संतुष्ट और अधिक सशक्त। कोई संबंध नहीं, साथ रहने का कोई बंधन नहीं। लेकिन आनंद का परित्याग कौन कर सकता है। कौन माँगेगा तलाक जब इतना आनंद हो? लोग तलाक इसीलिए मांग रहे है क्योंकि कोई आनंद नहीं है। मात्र संताप है और चौबीसों घंटे एक दुःख स्वप्न।
यदि दोनों व्यक्ति प्रेमी ओर ध्यानी है, तब वे इसकी परवाह नहीं करेंगे कि कभी-कभी वह चाइनीज़ रेस्टोरेंट में चला जाए और दूसरा कंटीनैंटल रेस्टोरेंट में। इसमे कोई समस्या नहीं है। तुम इस स्त्री से प्रेम है। यदि कभी वह किसी और के साथ आनंदित होती है, इसमें गलत क्या है? तुम्हें खुश होना चाहिए कि यह प्रसन्न है, क्योंकि तुम उससे प्रेम करते हो, केवल ध्यानी ही ईर्ष्या से मुक्त हो सकता है।
एक प्रेमी बनो—यह एक शुभ प्रारंभ है लेकिन अंत नहीं, अधिक और अधिक ध्यान मय होने में शक्ति लगाओ। और शीध्रता करो, क्योंकि संभावना है कि तुम्हारा प्रेम तुम्हारे हनीमून पर ही समाप्त हो जाए। इसलिए ध्यान और प्रेम हाथ में हाथ लिए चलने चाहिए। यदि हम ऐसे जगत का निर्माण कर सकें जहां प्रेमी ध्यानी भी हो।
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