हम जन्म से मृत्यु के क्षण तक निरंतर श्वास लेते रहते है। इन दो बिंदुओं के बीच सब कुछ बदल जाता है। सब चीज बदल जाती है। कुछ भी बदले बिना नहीं रहता। लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच श्वास क्रिया अचल रहती है। बच्चा जवान होगा, जवान बूढ़ा होगा। वह। बीमार होगा। उसका शरीर रूग्ण और कुरूप होगा। सब कुछ बदल जायेगा। वह सुखी होगा, दुःखी होगा, पीड़ा में होगा, सब कुछ बदलता रहेगा। लेकिन इन दो बिंदुओं के बीच आदमी श्वास भर सतत लेता रहेगा।
श्वास क्रिया एक सतत प्रवाह है, उसमें अंतराल संभव नहीं है। अगर तुम एक क्षण के लिए भी श्वास लेना भूल जाओं तो तुम समाप्त हो जाओगे। यही कारण है कि श्वास लेने का जिम्मा तुम्हारी नहीं है। नहीं तो मुश्किल हो जायेगी। कोई भूल जाये श्वास लेना तो फिर कुछ भी नहीं किया जा सकता।
इसलिए यथार्थ में तुम श्वास नहीं लेते हो, क्योंकि उसमे तुम्हारी जरूरत नहीं है। तुम गहरी नींद में हो और श्वास चलती रहती है। तुम गहरी मूर्च्छा में हो और श्वास चलती रहती है। श्वासन तुम्हारे व्यक्तित्व का एक अचल तत्व है।
दूसरी बात यह जीवन के अत्यंत आवश्यक और आधारभूत है। इस लिए जीवन और श्वास पर्यायवाची हो गये। इस लिए भारत में उसे प्राण कहते है। श्वास और जीवन को हमने एक शब्द दिया। प्राण का अर्थ है, जीवन शक्ति, जीवंतता। तुम्हारा जीवन तुम्हारी श्वास है।
तीसरी बात श्वास तुम्हारे और तुम्हारे शरीर के बीच एक सेतु है। सतत श्वास तुम्हें तुम्हारे शरीर से जोड़ रही है। संबंधित कर रही है। और श्वास ने सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे शरीर के बीच सेतु है, वह तुम्हारे और विश्व के बीच भी सेतु है। तुम्हारा शरीर विश्व का अंग है। शरीर की हरेक चीज, हरेक कण, हरेक कोश विश्व का अंश है। यह विश्व के साथ निकटतम संबंध है। और श्वास सेतु है। और अगर सेतु टूट जाये तो तुम शरीर में नहीं रह सकते। तुम किसी अज्ञात आयाम में चले जाओगे। इस लिए श्वास तुम्हारे और देश काल के बीच सेतु हो जाती है।
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