Friday 30 January 2015

साधारणत: हम उसकी संगति करना चाहते हैं, जो हमारी प्रशंसा करे। प्रशंसा से अहंकार भरता है। कोई कहे कि हम सुंदर हैं, कोई कहे कि हम शुभ हैं, कोई कहे कि हम श्रेष्ठ हैं-सुख मिलता है। लेकिन सुख बड़ा महंगा है। क्योंकि जो हम नहीं हैं, यदि हमने मान लिया कि हम हैं, तो होने के सब द्वार बंद हो जाएंगे।
और कौन सुंदर हो पाता है? सुंदर होने के रास्ते पर हो सकते हैं। यह मार्ग ऐसा नहीं कि इसकी मंजिल आती हो। सुंदर से सुंदरतर होते जाते हैं, लेकिन सुंदर तो कोई कभी नहीं हो पाता। श्रेष्ठतर से श्रेष्ठतर होते चले जाते हैं, लेकिन श्रेष्ठ तो कोई कभी नहीं हो पाता। यात्रा है।
लेकिन प्रशंसा करने वाला ऐसी भ्रांति दे देता है कि मंजिल आ गई। प्रशंसा करने वाले से सावधान रहना। उस पर भरोसा मत कर लेना; उस पर भरोसा किया कि भटके। यद्यपि मन कहेगा, मान लो। क्योंकि इतनी सस्ती श्रेष्ठता मिलती हो, इतने सस्ते में सौंदर्य, सत्य मिलता हो, कौन नासमझ इनकार करेगा? मुक्त में ही मिलता हो, बिना मांगे मिलता हो, कोई अपने से आकर तुम्हारी प्रशंसा करता हो-कौन इनकार करता है?
तुमने कभी खयाल किया? जब कोई तुम्हारी प्रशंसा करने लगता है, इनकार करना भी चाहो तो करते नहीं बन पड़ता। लेकिन ध्यान रखना, जब भी कोई तुम्हारी प्रशंसा करता है, तभी तुम भीतर अपने एक अपराध-भाव भी अनुभव करोगे। तुमने वह स्वीकार कर लिया, जो तुम नहीं हो। तुमने सस्ते में कीर्ति चाही। तुमने बिना कुछ चुकाए, बिना मूल्य दिए स्तुति चाही।
इसलिए तो दुनिया में खुशामद इतनी कारगर होती है; क्योंकि कोई भी इनकार नहीं कर पाता। कुरूप से कुरूप आदमी से कहो, तुम सुंदर हो, इनकार न कर पाएगा। बुरे से बुरे आदमी से कहो, तुम साधु हो, इनकार न कर पाएगा।

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