Saturday 3 January 2015

तुम्‍हारी चेतना परत मात्र एक है चार परतों में। लेकिन यह तभी संभव है जब तुमने समर्पण कर दिया हो और उसे अपने गुरु के रूप में स्‍वीकार कर लिया हो, उससे पहले यह संभव नहीं है। यदि तुम मात्र एक विद्यार्थी होते हो, सीख रहे होते हो, तब तुम संपर्क में होते हो तभी गुरु संपर्क में होता है; जब तुम संपर्क में नहीं होते तब वह भी संपर्क में नहीं होता।
इस घटना को समझ लेना है। तुम्‍हारे चार मन होते है—वह परम मन जो भविष्‍य की संभावना है जिसके तुम केवल बीज लिए हुए हो। कुछ प्रस्‍फुटित नहीं हुआ; केवल बीज होते है। मात्र क्षमता होती है। फिर होता है चेतन मन—एक बहुत छोटा टुकड़ा जिसके द्वारा तुम विचार करते हो, सोचते हो, निर्णय करते हो, तर्क करते हो, संदेह करते हो, आस्‍था करते हो। वह चेतन मन गुरु के साथ संपर्क में होता है जिसे तुमने समर्पण नहीं किया है। तो जब भी यह संपर्क में होता है गुरु संपर्क में होता है। अगर यह संपर्क में नहीं, तो गुरु संपर्क में नहीं। तुम एक विद्यार्थी हो, और तुमने गुरु को गुरु के रूप में नहीं धारण किया है। तुम अब भी एक शिक्षक के रूप में ही उसके बारे में सोचते हो।
शिक्षक और विद्यार्थी चेतन मन में अस्‍तित्‍व रखते है। कुछ नहीं किया जा सकता क्‍योंकि तुम खुले हुए नहीं हो। तुम्‍हारे दूसरे तीनों द्वार बंद है। परम चेतना मात्र एक बीज है। तुम इसके द्वार नहीं खोल सकते।

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