कला एक ध्यान है। कोई भी कार्य ध्यान बन सकता है, यदि हम उसमें डूब जाएं। तो एक तकनीशियन मात्र मत बने रहें। यदि आप केवल एक तकनीशियन हैं तो पेंटिंग कभी ध्यान नहीं बन पाएगी। हमें पेंटिंग में पूरी तरह डूबना होगा, पागल की तरह उसमें खो जाना पड़ेगा। इतना खो जाना पड़ेगा कि हमें यह भी खबर न रह जाए कि हम कहां जा रहे है, कि हम क्या कर रहे है, कि हम कौन है।
यह पूरी तरह खो जाने की स्थिति ही ध्यान होगी। इसे घटने दें। चित्र हम न बनाएं, बल्कि बनने दें। और मेरा मतलब यह नहीं है कि हम आलसी हो जाएं। नहीं, फिर तो वह कभी नहीं बनेगा। यह हम पर उतरना चाहिए, हमें पूरी तरह से सक्रिय होना है और फिर भी कर्ता बनना है। यही पूरी कला है—हमें सक्रिय होना है, लेकिन फिर भी कर्ता नहीं बनना है।
हमें तो मिट जाना चाहिए। हमें मौजूद रहने की जरूरत नहीं है। हमें तो अपनी पेंटिंग में, अपने नृत्य में, श्वास में, गीत में पूरी तरह खो जाना चाहिए। जो भी हम कर रहे हों, उसमें बिना किसी नियंत्रण के हमें पूरी तरह खो जाना चाहिए।
यह पूरी तरह खो जाने की स्थिति ही ध्यान होगी। इसे घटने दें। चित्र हम न बनाएं, बल्कि बनने दें। और मेरा मतलब यह नहीं है कि हम आलसी हो जाएं। नहीं, फिर तो वह कभी नहीं बनेगा। यह हम पर उतरना चाहिए, हमें पूरी तरह से सक्रिय होना है और फिर भी कर्ता बनना है। यही पूरी कला है—हमें सक्रिय होना है, लेकिन फिर भी कर्ता नहीं बनना है।
हमें तो मिट जाना चाहिए। हमें मौजूद रहने की जरूरत नहीं है। हमें तो अपनी पेंटिंग में, अपने नृत्य में, श्वास में, गीत में पूरी तरह खो जाना चाहिए। जो भी हम कर रहे हों, उसमें बिना किसी नियंत्रण के हमें पूरी तरह खो जाना चाहिए।
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