अगर कोई व्यक्ति बुद्धि से जीता है तो वह आक्रामक होता है। बुद्धि आक्रामक होती है। सूर्य ऊर्जा आक्रामक होती है। इसीलिए हमने कभी नहीं सुना कि किसी स्त्री ने किसी पुरूष का बलात्कार किया हो। यह असंभव है। केवल पुरूष ही स्त्री का बलात्कार कर सकता है। सूर्य ऊर्जा आक्रामक होती है। चंद्र-ऊर्जा ग्राहक होती है। बुद्धि आक्रामक होती है; अंतर्बोध ग्राहक होती है। अगर तुममें ग्राहकता है, ग्रहण करने की क्षमता है, तो अंतर्बोध से जुड़ जाओगे। फिर वह चीजें दिखाई पड़ने लगती है। जिन्हें एक बुद्धि से जीने वाला व्यक्ति कभी नहीं देख सकता।, क्योंकि वह खुला हुआ नहीं है।
और मजेदार बात बुद्धि से जीने वाला व्यक्ति उन्हीं की खोज में होता है, और अंतर्बोध वाला आदमी उनकी तलाश में नहीं होता। लेकिन फिर भी उन्हें देख कसता है। सच तो यह है, सभी बड़े-बड़े आविष्कार बौद्धिक लोगों से ही संपन्न होते है। लेकिन वे आविष्कार तभी संभव हो सकते है जब वे अंतर्बोध की भाव दशाओं में होते है। बड़े-बड़े आविष्कार अंतर्बोध से संचालित लोगों के द्वारा नहीं हो पाते है। क्योंकि उन्हें उनकी खोज नहीं होती। अगर वे उसके निकट भी आ जाएं, अगर वे उनके ठीक सामने भी आ जाएं, तो भी वे उनको भूल जाते है।
पुरूषों के लिए बुद्धि से जीना आसान होता है, क्योंकि बुद्धि भी उसी दिशा में गति करती है। जिसमे आक्रामकता, तार्किकता गति करती है। स्त्रियां अधिक अंतर्बोध से जीती है। वे अपनी अंतस प्रेरणा से जीती है। स्त्रियां तुरंत निर्णय ले लेती है। इसी लिए किसी भी स्त्री के साथ तर्क करना बहुत कठिन है। वह पहले से ही निर्णय पर पहुंच जाती है। तर्क करने की कोई जगह ही नहीं बचती। स्त्री के साथ तर्क करना अपना समय नष्ट करना है। वह हमेशा पहले से ही जानती है कि अंतिम परिणाम क्या होने वाला है। वह तो केवल परिणाम की घोषणा की प्रतीक्षा में रहती है। तुम किसी भी ढंग से स्त्री से तर्क करो…..सब व्यर्थ वाला है। वह पहले से ही परिणाम के संबंध में सुनिश्चित होती है।
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