जब तुम्हारी श्वास भीतर आये तो उसका निरीक्षण करो। उसके फिर बाहर या ऊपर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए, या क्षण के हज़ारवें भाग के लिए श्वास बंद हो जाती है। श्वास भीतर आती है, और वहां एक बिंदु है जहां वह ठहर जाती है। फिर श्वास बाहर जाती है। और जब श्वास बाहर जाती है। तो वहां एक बिंदु पर ठहर जाती है। और फिर वह भीतर के लौटती है।
श्वास के भीतर या बाहर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम श्वास नहीं लेते हो। उसी क्षण में घटना घटनी संभव है। क्योंकि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तो तुम संसार में नहीं होते हो। समझ लो कि जब तुम श्वास नहीं लेते हो तब तुम मृत हो; तुम तो हो, लेकिन मृत। लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते।
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