Thursday 8 January 2015

पहली तो बात गति और स्‍थिरता विरोधी नहीं है। गति और स्‍थिरता एक ही चीज की तारतम्‍यताएं है। जिसको हम स्‍थिरता कहते है। वह ऐसी गति है। जो हमारी पकड़ में नहीं आती। जिसको हम गति कहते है वह भी ऐसी स्‍थिरता है जो हमारे ख्‍याल में नहीं आती। तो पहली तो बात गति और स्‍थिरता दो विरोधी चीजें नहीं है। बहुत तीव्र गति हो तो भी स्‍थिर मालूम होगी।

उस जगत में जहां शरीर नहीं है। दोनों नहीं होंगी। क्‍योंकि जहां शरीर नहीं है वहां स्‍पेस भी नहीं है। टाइम भी नहीं है। जैसा हम जानते है, ऐसा कोई स्‍थान भी नहीं है। कोई समय भी नहीं है। समय और स्‍थान के बाहर किसी भी चीज को सोचना हमें अति कठिन है। क्‍योंकि हम ऐसी कोई चीज नहीं जानते जो समय और स्‍थान के बाहर हो।
तो वहां क्‍या होगा अगर दोनों नहीं है तो?
तो हमारे पास कोई शब्‍द नहीं है, जो कहे कि वहां क्‍या होगा। जब पहली दफा धर्म के अनुभव में उस स्‍थिति की खबरें आनी शुरू हुई तब भी यह कठिनाई खड़ी हुई। कहें क्‍या? ऐसे ठीक समानांतर उदाहरण विज्ञान के पास भी है। जहां कठिनाई खड़ी हो गई है कि क्‍या कहें? जब भी हमारी धारणाओं से भिन्‍न कोई स्‍थिति का अनुभव होता है तो बडी कठिनाई खड़ी होती है।

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