Wednesday 7 January 2015

अगर मैं देखता हूं कि आप दिखाई पड़ते है, और छूता हूं और छूने में नहीं आते। तो मैं कहता हूं कि फैंटम है। है नहीं आदमी। वह टेबल में छूता हूं, और छूने में नहीं आती। और मेरा हाथ उसके आर पार चला जाता है। तो मैं कहता हूं कि सब झूठ है। मैं किसी भ्रम में पड़ गया हूं, कोई हैलूसिनेशन है। आपके यथार्थ की कसौटी आपकी इंद्रियों के प्रमाण है। तो एक शरीर छोड़ने के गाद और दूसरा शरीर लेने के बीच इंद्रियाँ तो आपके पास नहीं होती। शरीर आपके पास नहीं होता। तो जो भी आपको प्रतीतियां होती है। वे बिलकुल स्‍वप्‍नवत है—जैसे आप स्‍वप्‍न देख रहे है।
जब आप स्‍वप्‍न देखते है तो स्‍वप्‍न बिलकुल ही यथार्थ मालूम होता है, स्‍वप्‍न में कभी संदेह नहीं होता। यह बहुत मजे की बात है। यथार्थ में कभी-कभी संदेह हो जाता है। स्‍वप्‍न में कभी संदेह नहीं होता। स्‍वप्‍न बहुत श्रद्धावान है। यथार्थ में कभी-कभी ऐसा होता है। जो दिखाई पड़ता है, वह सच में है या नहीं। लेकिन स्‍वप्‍न में ऐसा कभी नहीं होता कि जो दिखाई पड़ रहा है वह सच में है या नहीं। क्‍यों? क्‍योंकि स्‍वप्‍न इतने से संदेह को सह न पाएगा, वह टूट जाएगा, बिखर जाएगा।

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