Monday 19 January 2015

ओशो
जिनका न कभी जन्म हुआ, न मृत्यु
जो केवल 11 दिसम्बर 1931 से
19 जनवरी 199० के बीच
इस पृथ्वी ग्रह पर आए
विदा होने के पूर्व वे ऐसे शांत थे— मानो कुछ दिनों की छुट्टियों के लिए कहीं जा रहे हैं!
अपने शरीर से विदा होने के संदर्भ में ओशो के कुछ उद्गार इस प्रकार हैं :
”मैं चाहता हूं कि मेरे संन्यासी मेरी स्वतंत्रता, मेरा होश, मेरा चैतन्य अपने उत्तराधिकार के रूप में ग्रहण कर लें।”
”यदि तुमने मुझे प्रेम किया है तो तुम्हारे लिए मैं हमेशा जिंदा रहूंगा। मैं तुम्हारे प्रेम में जीऊंगा। यदि तुमने मुझे प्रेम किया है तो मेरा शरीर मिट जाएगा तब भी मैं तुम्हारे लिए नहीं मर सकता। ”
”तुम जहां भी हो, मौन तुम्हें मुझसे जोड़ देगा; और तुम्हारी प्रतीक्षा वह पृष्ठभूमि पैदा कर देगी जिसमें मेरा—तुम्हारा ऐसा मिलन हो सके जो अशरीरी, चिन्मय और शाश्वत हो।…"
”मेरे साथ तुम बहुत समय तक रहे हो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मेरी मौजूदगी में तुम्हारे साथ क्या घटता है। बस इसे मौका दो. आंखें बंद कर लो, मौन होकर बैठ जाओ, और उसी घटना की प्रतीक्षा करो। और तुम हैरान होओगे कि मेरी शारीरिक उपस्थिति की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारा हृदय उसी लय में धड़क सकता है—इस अनुभव से तुम परिचित हो। तुम्हारे प्राण उसी गहराई तक शांत हो सकते हैं—उसका तुम्हें भलीभांति अनुभव है। और फिर कोई दूरी नहीं रह जाती।…
”यदि संसार भर में तुम मेरी मौजूदगी को अनुभव करने लगो, तो कोई देश मेरी उपस्थिति को अपनी जमीन में प्रवेश करने से नहीं रोक सकता। कोई सरकार मुझे तुम्हारे हृदय में प्रवेश करने से नहीं रोक सकती।…
”तुम जहां भी हो मैं तुम्हें उपलब्ध हूं। तुम जहां भी हो मैं तुम्हारे साथ हूं। बस खुले रहो, ग्राहक रहो। ”
” (शरीर से विदा होकर ) मैं अपने लोगों में विलीन हो जाऊंगा। ठीक जैसे कि तुम सागर को कहीं से भी चखो तो उसे खारा पाओगे, ऐसे ही मेरे किसी भी संन्यासी को चखोगे और तुम भगवत्ता का स्वाद पाओगे।…
”मैं अपने लोगों को आनंदोत्सवपूर्वक, मस्तीपूर्वक जीने के लिए तैयार कर रहा हूं। तो जब मैं अपने शरीर में न रहूंगा, उससे उनको कोई फर्क न पड़ेगा। वे तब भी उसी ढंग से जीएंगे—और हो सकता है मेरी मृत्यु उनमें और भी त्वरा ला दे। ”
”मैं सब तरह के प्रयास करता रहा हूं कि तुम अपनी निजता के प्रति, अपनी स्वतंत्रता के प्रति सचेत रहो—बिना किसी सहायता के स्वयं के विकास की परम संभावना के प्रति सजग रहो।.. मैं पूरा प्रयास कर रहा हूं कि तुम सबसे मुक्त हो जाओ—मुझसे भी मुक्त हो जाओ और खोज की यात्रा में अकेले होने में तुम समर्थ हो जाओ।. और जो ध्यान की विधियां मैंने तुम्हें दी हैं, वे मुझ पर निर्भर नहीं हैं। मेरी उपस्थिति या अनुपस्थिति से उनमें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।…
”तो स्मरण रखो, जब मैं विदा हो चुका होऊंगा, तब तुम कुछ खोने वाले नहीं हो। शायद तुम कुछ ऐसा उपलब्ध कर पाओगे, जिसका तुम्हें बिलकुल ही कोई बोध नहीं है।…
”जब मैं विदा हो जाऊंगा, तो मैं जा कहां सकता हूं? मैं यहां ही रहूंगा—हवाओं में, सागरों में। और यदि तुमने मुझे प्रेम किया है, यदि तुमने मुझ पर भरोसा किया है, तो तुम मुझे हजारों रूपों में अनुभव करोगे। अपने मौन क्षणों में अचानक तुम मेरी उपस्थिति को अनुभव करोगे।
”एक बार मैं देहमुक्त हुआ कि मेरी चेतना विश्वव्यापी हो जाएगी। अभी तुम्हें मेरे पास आना पडता है, तब तुम्हें मुझे खोजने और ढूंढने की जरूरत नहीं रहेगी। तुम जहां कहीं भी हो, तुम्हारी प्यास, तुम्हारा प्रेम—और तुम मुझे अपने हृदय में पाओगे, अपने हृदय की धडकन में ही पाओगे। ”
” अस्तित्व में मेरा भरोसा और मेरी आस्था समग्र है। जो मैं कह रहा हूं उसमें यदि कोई भी सत्य है तो वह पीछे जीवित बचेगा। जो लोग मेरे कार्य में उत्सुक बने रहेंगे वे बस मशाल को आगे ले चल रहे होंगे, बिना किसी पर कुछ थोपते हुए—न तलवार (बल प्रयोग ) के जरीए, न ब्रेड (लोभ प्रयोग ) के जरीए। मैं अपने लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहूंगा, और ऐसा अधिकांश संन्यासी अनुभव करेंगे। मैं चाहता हूं कि वे स्वयं ही विकसित हों.. ऐसे सद्गुण जैसे प्रेम—जिसके आसपास कोई चर्च—मंदिर—मस्जिद अथवा धर्म खड़ा नहीं किया जा सकता; जैसे जागरूकता—जिस पर किसी का एकाधिकार नहीं है; जैसे उत्सव, उल्लासमयता, और शिशु जैसी ताजी और निर्दोष आंखें बरकरार रखना। मैं चाहता हूं कि लोग स्वयं को जानें—किसी और के अनुसार न बनें; और इसका मार्ग है—भीतर। ”
”मेरे संबंध में कभी भी अतीत काल में बात मत करना। प्रताड़ित शरीर के बोझ से मुक्त होकर मेरी उपस्थिति कई गुना बढ़ जाएगी। मेरे लोगों को याद दिलाना कि वे अब मुझे और भी अधिक महसूस करेंगे—और वे इसे तत्‍क्षण पहचान जाएंगे। ”
” अब जब मैं अपना शरीर छोड़ रहा हूं और बहुत से लोग आएंगे, बहुत—बहुत से और लोगों का रस जगेगा। और मेरा कार्य इतने अविश्वसनीय रूप से बढ़ेगा, जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। ”


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