Saturday 10 January 2015

अल्‍बर्ट आइंस्टीन ने खोज की और निश्‍चित ही यह सही होगी, क्‍योंकि अंतरिक्ष के बारे में इस व्‍यक्‍ति ने बहुत कठोर परिश्रम किया था। उसकी खोज बहुत गजब की है। उसने स्‍वयं ने कई महीनों तक इस खोज को अपने मन में रखी और विज्ञान जगत को इसकी सूचना नहीं दी क्‍योंकि उसे भय था कि कोई उस पर विश्‍वास नहीं करेगा। खोज ऐसी थी कि लोग सोचेंगे कि वह पागल हो गया है। परंतु खोज इतनी महत्‍वपूर्ण थी की उसने अपनी बदनामी की कीमत पर जग जाहिर करने का तय किया।

परंतु गुरुत्वाकर्षण के बाहर होने की अनुभूति ध्‍यान में भी पाई जा सकती है—ऐसा होता है। और यह कई लोगों को भटका देती है। अपनी बंद आँखो के साथ जब तुम पूरी तरह से मौन हो तुम गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो। परंतु मात्र तुम्‍हारा मौन गुरुत्वाकर्षण के बाहर है, तुम्‍हारा शरीर नहीं। परंतु उस क्षण में जब तुम अपने मौन से एकाकार होते हो, तुम महसूस करते हो कि तुम ऊपर उठ रहे हो। इसे योग में ‘’हवा में उड़ना’’ कहते है।
और बिना आंखे खोले तुम्‍हें लगेगा कि यह मात्र लगता ही नहीं बल्‍कि तुम्‍हारा शरीर मौन गुरुत्वाकर्षण के बाहर है—यक सच्‍चा अनुभव है। परंतु अभी भी तुम शरीर के साथ एकाकार हो। तुम महसूस करते हो कि तुम्‍हारा शरीर उठ रहा है। यदि तुम आँख खोलोगे तो पाओगे कि तुम उसी आसन में जमीन पर बैठे हो।

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