Friday 7 August 2015

क्या तुम्हें पता है? संगीतज्ञ एक बड़े अनूठे अनुभव को कहते हैं। एक वीणा को रख दिया जाए कक्ष के एक कोने में, कोई छुए भी न; और कुशल संगीतज्ञ दूसरी वीणा पर गीत बजाए, राग उठाए तो तुम्हें पता है, एक अनूठी घटना घटती है–कि पहली वीणा जो कोने में रखी है, धीरे-धीरे उसी धुन को बजाने लगती है।मगर बड़ा कुशल संगीतज्ञ चाहिए। एक वीणा तो वह बजाता है। उससे उठती हुई झंकार दूसरी वीणा के तारों को छूती है। उससे उठती हुई स्वर-लहरी दूसरी वीणा पर चोट करती है। धीरे-धीरे दूसरी वीणा के तार भी कंपायमान होने लगते हैं। एक धीमी सिहरन उनमें दौड़ जाती है। तानसेन या बैजू बावरा जैसे संगतज्ञों के संबंध में कथाएं हैं, कि दूसरी वाणी ठीक वही दोहराने लेती है, जो पहली वीणा कर रही है।
और अब तो इस पर वैज्ञानिक शोध हुई है और पाया गया कि यह सच है। इसे वैज्ञानिक कहते हैं, ला आफ सिंक्रोनिसिटी। अगर एक चीज बज रही हो एक ढंग से, तो सके चारों तरफ तरंगों का एक जाल पैदा होता है। उस जाल में उसके समान-धर्मा कोई भी मौजूद हो, तो उसके भीतर भी उसी तरह की ध्वनि कंपित होने लगती है।
ज्ञानी तो वही है, जिसके पास बैठने से तुम्हारे हृदय की वीणा कंपित होने लगे। उसका स्वर जाग गया। उसकी वीणा बज रही है, अनंत-अनंत हाथों से परमात्मा उसकी वीणा पर खेल रहा है। तुम उसके पा जाओगे, तुम्हारे हृदय के तार झंकृत होने लगेंगे। यह कोई बुद्धि का संबंध न होगा। यह एक हार्दिक संबंध होगा। इसका तालमेल प्रेम से ज्यादा होगा, ज्ञान से कम होगा। इसका तालमेल श्रद्धा से ज्यादा होगा, सोच-विचार से कम होगा। समान-धर्मा तुम्हारी आत्मा भी कंपित होने लगेगी। तुम्हारे भीतर की वीणा भी जागेगी, हिलेगी, उठेगी।
गुरु वही है, जिसके पास शिष्य रूपांतरित होने लगे।
कबीर के इन वचनों को बहुत ध्यानपूर्वक समझने की कोशिश करें।
अब मैं पाइबो रे पाइबो रे ब्रह्मज्ञान।
ये शब्द भी बड़े मिठास से भरे हैं–पाइबो रे! अब मैंने पा लिया! अब मैंने पा लिया! सहज समाधें सुख में रहिबो कौटि कलप विश्राम।
घट गई वह घटना, जिसे सहज समाधि कहते हैं।
समाधियां दो तरह की हैं। एक तो समाधि है जो चेष्टा से घटती है, प्रयास से घटती है, आयोजन से घटती है, यत्न श्रम से घटती है। ऐसी समाधि को पूरी समाधि नहीं कहा जा सकता।
क्यों? क्योंकि तुम्हारे प्रयास से जो घटी है उसमें तुम्हारा कुछ न कुछ बाकी रह ही जाएगा। तुम्हारा प्रयास तुमसे ऊपर कैसे जा सकता है? तुमने जो किया, उसमें तुम्हारी छाया रह ही जाएगी। तुम्हारे हस्ताक्षर उसमें मौजूद रहेंगे ही। तुम्हारा प्रयास तुम्हीं हों। तो तुम्हारे प्रयास से आई समाधि, तुमसे पार नहीं जा सकती। वह परमात्मा तक नहीं पहुंच सकती।
एक तो समाधि है, जो प्रयत्न से फलित होती है। हां, तुम थोड़े शांत हो जाओगे। तुम थोड़े तनाव से मुक्त हो जाओगे। तुम्हें नींद ठीक आने लगेगी। तुम्हारे जीवन में थोड़ा संतुलन आ जाएगा। भटकाव कम हो जाएगा। व्यर्थ की बातों में तुम कम उलझोगे। लोभ, क्रोध तुम्हें कम आकर्षित करेंगे। काम-वासना वैसी प्रगाढ़ न रह जाएगी, जैसी पहले थी। लेकिन फिर भी माडिफर्ड, थोड़े से रूपांतरित–रहोगे तुम पुराने ही।
जैसे कोई पुराने मकान को रिनोवेशन कर लेता है। पुराने मकान को थोड़ा टीमटाम सजा लेता है। जरा जीर्ण मकान को यहां वहां ठीक-ठाक करके, थोड़े नए पत्थर जोड़कर, थोड़ी दीवालों को नया पोत कर, रंग रोगन लगा कर, नये का ढंग दे देता है। लेकिन भीतर तो जराजीर्ण मकान, जराजीर्ण ही रहेगा।
यत्न से जो समाधि आती है, वह ऐसी है जैसे किसी ने जराजीर्ण मकान का पुनरुद्वार कर लिया। वह नया भवन नहीं है। उसका पुराने से संबंध नहीं टूटा। सातत्य जारी रहा। वह पुराने का ही सिलसिला है। उसे तुमने कितना ही संवार लिया हो, भीतर से वह जीरा जीर्ण ही है।
पुराना बिलकुल टूट जाए और समग्र रूपेण नये का जन्म हो। सिलसिला ही टूट जाए, सातत्य ही टूट जाए। पुराने और नये के बीच कोई जोड़ ही न बचे। इधर पुराना गया, उधर नया आया। दोनों के बीच कोई संबंध न हो। तभी समाधि परम होगी।
लेकिन वैसी समाधि तुम कैसे लाओगे? क्योंकि तुम लाओगे, तो तुम्हारा सातत्य जारी रहेगा। तुम्हारी समाधि, लाई गई समाधि चेष्टित, कितनी ही तुम्हें शांत कर दें,तुम्हें पुलक और आनंद से नहीं भरी सकेगी। क्योंकि आनंद तो परमात्मा का है। मनुष्य की गहनतम से गहनतम संभावना शांत होने की। उससे ऊपर मनुष्य नहीं जा सकता।
और वैसी शांति कभी भी खंडित हो सकती है। क्योंकि जिसे आनंद न मिला हो, उसकी शांति का बहुत भरोसा नहीं है। क्योंकि शांति एक नकारात्मक स्थिति है। अशांत तुम कम हो गए हो, इसलिए शांत लगते हो। लेकिन प्रकाश नहीं जला है। आनंद की वर्षा नहीं हुई है।
जिसके जीवन में आनंद की वर्षा हो जाती है, उसके अशांत होने की संभावना समाप्त हो जाती है। और जिसके जीवन में आनंद खिल जाता है वह सिर्फ शांत नहीं होता, क्योंकि शांत तो बड़ी निष्क्रिय अवस्था है। शांत तो नकारात्मक स्थिति है। वह विधायक आनंद से भरा होता है। उसकी समाधि नाचती हुई होती है। उसकी समाधि में एक गीत होता है। एक सतत प्रवाह होता है, एक सृजनात्मक, सक्रिय ऊर्जा होती है। उसकी समाधि अशांति का हट जाना नहीं है, आनंद का उतर आना है। उसकी समाधि बीमारी का मिट जाना नहीं है, स्वास्थ्य का आर्विभाव है।

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