Sunday 30 August 2015

दूसरे ढंग में यह वही है।’किसी चलते वाहन में…..।’ तुम रेलगाड़ी या बैलगाड़ी से यात्रा कर रहे हो। जब यह विधि विकसित हुई थी तब बैलगाड़ी ही थी। तो तुम एक हिंदुस्तानी सड़क पर—आज भी सड़कें वैसी ही हैं—बैलगाड़ी में यात्रा कर रहे हो। लेकिन चलते हुए अगर तुम्हारा सारा शरीर हिल रहा है तो बात व्यर्थ हो गई।
‘किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा…..।’
लयबद्ध ढंग से झूलो। इस बात को समझो, बहुत बारीक बात है। जब भी तुम किसी बैलगाड़ी या किसी वाहन में चलते हो तो तुम प्रतिरोध करते होते हो। बैलगाड़ी बाईं तरफ
झुकती है, लेकिन तुम उसका प्रतिरोध करते हो; तुम संतुलन रखने के लिए दाईं तरफ झुक जाते हो, अन्यथा तुम गिर जाओगे। इसलिए तुम निरंतर प्रतिरोध कर रहे हो। बैलगाड़ी में बैठे—बैठे तुम बैलगाड़ी के हिलने—डूलने—डुलने से लड़ रहे हो। वह इधर जाती है। तो तुम उधर जाते हो। यही वजह है कि रेलगाड़ी में बैठे—बैठे तुम थक जाते हो। तुम कुछ करते नहीं हो तो थक क्यों जाते हो? अनजाने ही तुम बहुत कुछ कर रहे हो। तुम निरंतर रेलगाड़ी से लड़ रहे हो, प्रतिरोध कर रहे हो।
प्रतिरोध मत करो, यह पहली बात है। अगर तुम इस विधि को प्रयोग में लाना चाहते हो तो प्रतिरोध छोड़ दो। बल्कि गाड़ी की गति के साथ—साथ गति करो, उसकी गति के साथ—साथ झूलों। बैलगाड़ी का अंग बन जाओ, प्रतिरोध मत करो। रास्ते पर बैलगाड़ी जो भी करे, तुम उसके अंग बनकर रहो। इसी कारण यात्रा में बच्चे कभी नहीं थकते हैं।
पूनम हाल ही में लंदन से अपने दो बच्चों के साथ आई है। चलते समय वह भयभीत थी कि लंबी यात्रा के कारण बच्चे थक जाएंगे, बीमार हो जाएंगे। वह थक गई और वे हंसते हुए यहां पहुंचे। वह जब यहां पहुंची तो थककर चूर—चूर थी। जब वह मेरे कमरे में प्रविष्ट हुई, वह थकावट से टूट रही थी, और दोनों बच्चे वहीं तुरंत खेलने में लग गए। लंदन से बंबई अठारह घंटे की यात्रा है, लेकिन वे जरा भी नहीं थके थे। क्यों? क्योंकि अभी वे प्रतिरोध करना नहीं जानते हैं।
एक पियक्कड़ सारी रात बैलगाड़ी में यात्रा करेगा और सुबह वह ताजा का ताजा रहेगा। लेकिन तुम नहीं। कारण यह है कि पियक्कड़ भी प्रतिरोध नहीं करता है। वह गाड़ी के साथ गति करता है। वह लड़ता नहीं है, वह गाड़ी के साथ एक है।
‘किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा……।’
तो एक काम करो, प्रतिरोध मत करो। और दूसरी बात कि एक लय पैदा करो, अपने हिलने—डुलने में लय पैदा करो, उसे लय में बांधो। उसमें एक छंद पैदा करो। सड़क को भूल जाओ; सड़क या सरकार को गालियां मत दो, उन्हें भूल जाओ। वैसे ही बैल और बैलगाडी को या गाड़ीवान को गाली मत दो, उन्हें भी भूल जाओ। आंखें बंद कर लो, प्रतिरोध मत करो। लयबद्ध ढंग से गति करो और अपनी गति में संगीत पैदा करो। उसे एक नृत्य बना दो।
‘किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा, अनुभव को प्राप्त हो…..।’
सूत्र कहता है कि तुम्हें अनुभव प्राप्त हो जाएगा।
‘या किसी अचल वाहन में…..।’
यह मत पूछो कि बैलगाड़ी कहां मिलेगी! अपने को धोखा मत दो।
क्योंकि यह सूत्र कहता है ‘या किसी अचल वाहन में अपने को मंद से मंदतर होते अदृश्य वर्तुलों में झूलने देने से भी।’
यहीं बैठे—बैठे हुए वर्तुल में झूलो, घूमो। वर्तुल को छोटे से छोटा किए जाओ—इतना छोटा कि तुम्हारा शरीर दृश्य रूप से झूलता हुआ न लगे, लेकिन भीतर एक सूक्ष्म गति होती रहे। आंख बंद कर लो, और बड़े वर्तुल से शुरू करो। आंख बंद कर लो, अन्यथा जब शरीर रुक जाएगा तब तुम भी रुक जाओगे। आंख बंद करके बड़े वर्तुल बनाओ, बैठे—बैठे वर्तुलाकार झूलो। फिर झूलते हुए वर्तुल को छोटा, और छोटा किए चलो। दृश्य रूप से तुम रुक जाओगे, किसी को नहीं मालूम होगा कि तुम अब भी हिल रहे हो। लेकिन अपने भीतर तुम सूक्ष्म गति अनुभव करते रहोगे। अब शरीर नहीं चल रहा, केवल मन चल रहा है। उसे भी मंद से मंदतर किए चलो और अनुभव करो, वहीं केंद्रित हो जाओगे। किसी वाहन में, किसी चलते वाहन में एक अप्रतिरोधी और लयबद्ध गति तुम्हें केंद्रित कर देगी।
गुरजिएफ ने इन विधियों के लिए अनेक नृत्य निर्मित किए थे। वह इस विधि पर काम करता था। वह अपने आश्रम में जितने नृत्यों का प्रयोग करता था वे सच में वर्तुल में झूमने से संबंधित थे। सभी नृत्य वर्तुल में चक्कर लगाने से संबंधित हैं। बाहर चक्कर लगाना होता, भीतर होशपूर्ण रहना होता। फिर वे धीरे— धीरे वर्तुल को छोटा और छोटा किए जाते हैं। तब एक समय आता है कि शरीर ठहर जाता है, लेकिन भीतर मन गति करता रहता है।
अगर तुम लगातार बीस घंटों तक रेलगाड़ी में सफर करके घर लौटो और घर पर आंख बंद करके देखो तो तुम्हें लगेगा कि तुम अब भी गाडी में यात्रा कर रहे हो। शरीर तो ठहर गया है, लेकिन मन को लगता है कि वह गाड़ी में ही है। वैसे ही इस विधि का प्रयोग करो।
गुरजिएफ ने अदभुत नृत्य पैदा किए और सुंदर नृत्य। इस सदी में उसने सचमुच चमत्कार किया। वे चमत्कार सत्य साईं बाबा के चमत्कार नहीं थे। साईं बाबा के चमत्कार तो कोई गली—गली फिरने वाला मदारी भी कर सकता है। लेकिन गुरजिएफ ने असली चमत्कार पैदा किए। ध्यानपूर्ण नृत्य के लिए उसने सौ नर्तकों की एक मंडली बनाई, और पहली बार उसने न्यूयार्क के एक समूह के सामने उनका प्रदर्शन किया।
सौ नर्तक मंच पर गोल—गोल नाच रहे थे। उन्हें देखकर अनेक दर्शकों के भी सिर घूमने लगते थे—ऐसे सफेद पोशाक में वे सौ नर्तक नृत्य करते थे। जब गुरजिएफ हाथों से नृत्य का संकेत करता था तो वे नाचते थे और ज्यों ही वह रुकने का इशारा करता था, वे पत्थर की तरह ठहर जाते थे और मंच पर सन्नाटा हो जाता था। वह रुकना दर्शकों के लिए था, नर्तकों के लिए नहीं; क्योंकि शरीर तो तुरंत रुक सकता है, लेकिन मन तब नृत्य को भीतर ले जाता है और वहां नृत्य चलता रहता है।
उसे देखना भी एक सुंदर अनुभव था कि सौ लोग अचानक मृत मूर्तियों जैसे हो जाते थे। उससे दर्शकों में एक आघात पैदा होता था, क्योंकि सौ नृत्य, सुंदर और लयबद्ध नृत्य अचानक ठहरकर जम जाते थे। तुम देख रहे हो कि वे घूम रहे हैं, गोल—गोल नाच रहे है और अचानक सब नर्तक ठहर गए। तब तुम्हारा विचार भी ठहर जाता। न्यूयार्क में अनेक को लगा कि यह तो एक बेबूझ, रहस्यपूर्ण नृत्य है, क्योंकि उनके विचार भी उसके साथ तुरंत ठहर जाते थे। लेकिन नर्तकों के लिए नृत्य भीतर चलता रहता था, भीतर नृत्य के वर्तुल छोटे से छोटे होते जाते थे और अंत में वे केंद्रित हो जाते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि सारे नर्तक नाचते हुए मंच के किनारे पर पहुंच गए। लोग सोचते थे कि अब गुरजिएफ उन्हें रोक देंगे, अन्यथा वे दर्शकों की भीड़ पर गिर पड़ेंगे। सौ नर्तक नाचते—नाचते मंच के किनारे पर पहुंच गए हैं। एक कदम और, और वे नीचे दर्शकों पर गिर पड़ेंगे। सारे दर्शक इस प्रतीक्षा में थे कि गुरजिएफ रुको कहकर उन्हें वहीं रोक देगा।
लेकिन उसी क्षण गुरजिएफ ने उनकी तरफ अपनी पीठ कर ली और अपना सिगार जलाने म् लगा, और सौ नर्तकों की पूरी मंडली मंच से नीचे नंगे फर्श पर गिर पड़ी।
सभी दर्शक उठ खड़े हुए, उनकी चीखे निकल गईं। गिरना इस धमाके के साथ हुआ था कि उन्हें लगा कि अनेक दर्शकों के हाथ—पांव टूट गए होंगे। लेकिन एक भी व्यक्ति की चोट नहीं लगी थी, किसी को खरोंच भी नहीं लगी थी।
उन्होंने गुरजिएफ से पूछा कि क्या हुआ कि एक आदमी भी घायल नहीं हुआ, जब कि नर्तकों का नीचे गिरना इतना बड़ा था। यह तो एक असंभव घटना मालूम होती है!
कारण इतना ही था कि उस क्षण नर्तक अपने शरीरों में नहीं थे। वे अपने भीतर के वर्तुलों को मंदतर किए जा रहे थे। और जब गुरजिएफ ने देखा कि वे पूरी तरह अपने शरीरों को भूल गए हैं तब उसने उन्हें नीचे गिरने दिया।
तुम जब शरीर को बिलकुल भूल जाते हो तो कोई प्रतिरोध नहीं रह जाता है। और हड्डी तो टूटती है प्रतिरोध के कारण। जब तुम गिरने लगते हो तो तुम प्रतिरोध करते हो, अपने को गिरने से रोकते हो; गिरते समय तुम गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध संघर्ष करते हो। और वही प्रतिरोध, वही संघर्ष समस्या है। गुरुत्वाकर्षण नहीं, प्रतिरोध से हड्डी टूटती है। अगर तुम गुरुत्वाकर्षण के साथ सहयोग करो, उसके साथ—साथ गिरो, तो चोट लगने की कोई संभावना नहीं है।
सूत्र कहता है : ‘किसी चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा, अनुभव को प्राप्त हो। या किसी अचल वाहन में अपने को मंद से मंदतर होते अदृश्य वर्तुलों में झूलने देने से भी।’
यह तुम ऐसे भी कर सकते हो, वाहन की जरूरत नहीं है। जैसे बच्चे गोल—गोल घूमते हैं वैसे गोल—गोल घूमो। और जब तुम्हारा सिर घूमने लगे और तुम्हें लगे कि अब गिर जाऊंगा तो भी नाचना बंद मत करो, नाचते रही। अगर गिर भी जाओ तो फिक्र मत करो। आंख बंद कर लो और नाचते रहो। तुम्हारा सिर चक्कर खाने लगेगा और तुम गिर जाओगे। तुम्हारा शरीर गिर जाए तो भीतर देखो; भीतर नाचना जारी रहेगा। उसे महसूस करो। वह निकट से निकटतर होता जाएगा और अचानक तुम केंद्रित हो जाओगे।
बच्चे इसका खूब मजा लेते हैं, क्योंकि इससे उन्हें बहुत ऊर्जा मिलती है। लेकिन उनके मां—बाप उन्हें नाचने से रोकते हैं, जो कि अच्छा नहीं है। उन्हें नाचने देना चाहिए, उन्हें इसके लिए उत्साहित करना चाहिए। और अगर तुम उन्हें अपने भीतर के नाच से परिचित करा सको तो तुम उन्हें उसके द्वारा ध्यान सिखा दोगे।
वे इसमें रस लेते हैं, क्योंकि शरीर—शून्यता का भाव उनमें है। जब वे गोल—गोल नाचते हैं तो बच्चों को अचानक पता चलता है कि उनका शरीर तो नाचता है, लेकिन वे नहीं नाचते। अपने भीतर वे एक तरह से केंद्रित हो गए महसूस करते हैं, क्योंकि उनके शरीर और आत्मा में अभी दूरी बनी है, दोनों के बीच अभी अंतराल है। हम सयाने लोगों को वह अनुभव इतनी आसानी से नहीं हो सकता।
जब तुम मां के गर्भ में प्रवेश करते हो तो तुरंत ही शरीर में नहीं प्रविष्ट हो जाते हो, शरीर में प्रविष्ट होने में समय लगता है। और जब बच्चा जन्म लेता है तब भी वह शरीर से पूरी तरह नहीं जुड़ा होता है, उसकी आत्मा शरीर में पूरी तरह स्थित नहीं होती है। दोनों के बीच थोड़ा अंतराल बना रहता है। यही कारण है कि कई चीजें बच्चा नहीं कर सकता है। उसका शरीर तो उन्हें करने को तैयार है, लेकिन वह नहीं कर पाता।
अगर तुमने खयाल किया हो तो देखा होगा कि नवजात शिशु दोनों आंखों से देखने में समर्थ नहीं होते, वे सदा एक आंख से देखते हैं। तुमने गौर किया होगा कि जब बच्चे कुछ देखते हैं, निरीक्षण करते हैं, तो दोनों आंख से नहीं करते। वे एक आंख से ही देखते हैं, उनकी वह आंख बड़ी हो जाती है। देखते क्षण उनकी एक आंख की पुतली फैलकर बडी हो जाएगी और दूसरी पुतली छोटी बनी रहेगी। बच्चे अभी स्थिर नहीं हुए हैं, उनकी चेतना अभी स्थिर नहीं है। उनकी चेतना अभी ढीली—ढीली है। धीरे— धीरे वह स्थिर होगी और तब वे दोनों आंख से देखने लगेंगे।
बच्चे अभी अपने और दूसरे के शरीर में फर्क करना नहीं जानते हैं। यह कठिन है। वे अभी अपने शरीर से पूरी तरह नहीं जुड़े हैं। यह जोड़ धीरे—धीरे आएगा।
ध्यान फिर से अंतराल पैदा करने की चेष्टा है। तुम अपने शरीर से जुड़ गए हो, शरीर के साथ ठोस हो चुके हो। तभी तो तुम समझते हो कि मैं शरीर हूं। अगर फिर से एक अंतराल बनाया जा सके तो फिर समझने लगोगे कि मैं शरीर नहीं हूं शरीर से परे कुछ हूं। इसलिए झूलना और गोल—गोल घूमना सहयोगी होते हैं, वे अंतराल पैदा करते हैं।

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