Wednesday 5 August 2015

अब हम कबीर के इस सूत्र को समझने की कोशिश करें।
तब तुम समझ पाओगे क्यों कबीर कहता है, कहै कबीर दिवाना! नहीं तो तुम न समझ पाओगे, क्यों कबीर अपने को खुद पागल कहता है? कैसी बेबूझ दुनिया है! प्रज्ञावान पागल समझे जाते हैं, मूढ़ ज्ञानी। जिन्हें कुछ भी पता नहीं है, जिन्होंने शब्दों का कचरा इकट्ठा कर लिया है। या खोपड़ी से शास्त्र भर लिए हैं, वे ज्ञानी हैं, वे पंडित हैं।
कबीर काशी में रहे जीवन भर। पंडितों की दुनिया! स्वभावतः उन सभी पंडितों ने कहा होगा पागल है। काशी…! वहां तो सबसे ज्यादा बड़े अंधों की भीड़ है। वहां तो सब तरह के मूढ़ प्रतिष्ठित हैं, जिनके पास शब्दों का जाल है। वेद, उपनिषद है, गीता, पुराण है। जिन्हें गीता पुराण, वेद, उपनिषद कंठस्थ हैं। शब्दों के अतिरिक्त जिन्होंने कुछ भी नहीं जाना। दीवालों पर बनी छायाओं को जिन्होंने इकट्ठा किया है–बड़ी मेहनत से, बड़े श्रम से, बड़ी कुशलता से। वे बड़े निष्णात हैं तर्क में। क्योंकि शब्द तो छाया है सत्य की। और तर्क तो सिर्फ सांत्वना है।
इसलिए कबीर अपने को खुद कहते हैं: कहै कबीर दिवाना।
एक-एक शब्द को सुनने की, समझने की कोशिश करो। क्योंकि कबीर जैसे दीवाने मुश्किल से कभी होते हैं। उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। और उनकी दीवानगी ऐसी है, कि तम अपना अहोभाग्य समझना अगर उनकी सुराही की शराब से एक बूंद भी तुम्हारे कंठ में उतर जाए। अगर उनका पागलपन तुम्हें थोड़ा सा भी छू ले तो तुम स्वस्थ हो जाओगे। उनका पागलपन थोड़ा सा भी तुम्हें पकड़ लें, तुम कभी कबीर जैसा नाच उठो और गा उठो, तो उससे बड़ा कोई धन्यभाग नहीं। वही परम सौभाग्य है। सौभाग्यशालियों को ही उपलब्ध होता है।
जब मैं भूला रे भाई, मेरे सतगुरु जुगत लखाई।
करिया करम अचार मैं छाड़ा, छाड़ा तीरथ नहाना।
सगरी दुनिया भई सयानी, मैं ही इक बौराना।।
जब मैं भूला रे भाई–क्या भूल है? क्या तुम भूल गए हो? तुम स्वयं को भूल गए हो, सब तुम्हें याद है। वेद कंठस्थ है सिद्धांत, शास्त्र याद। सिर्फ एक को तुम भूल गए हो, वह तुम स्वयं हो। और उसे जाने बिना सब ज्ञान व्यर्थ है। और जिसने उस एक को जान लिया, उसने सब जान लिया। उस एक के जानने में सब जान लिए जाते; सब वेद, कुरान, बाइबिल। उस एक को चूकने में सब चूक जाता है।
क्योंकि वही एक तुम्हारे भीतर चैतन्य को स्रोत है। उस एक से ही तुम परमात्मा से जुड़े हो। वह एक तुम्हारे भीतर आया हुआ परमात्मा है। जैसे तुम्हारी खिड़की में से आ गया आकाश तुम्हारे घर को भरे; ऐसा तुम्हारे उस एक में से आ गया आकाश–परमात्मा–तुमको भरे। उस एक को भर तुम भूल गए हो।
उसकी तरफ पीठ, सारी संसार की तरफ आंख है। भागे फिरते हो, ज्ञान का संग्रह करते चले जाते हो। धन का संग्रह करते चले जाते हो। एक बात भूल ही जाते हो वह कौन है, जिसके लिए तुम संग्रह कर रहे हो? वह कौन है, जो संग्रह कर रहा है? वह कौन है जो शास्त्र पढ़ रहा है? शास्त्र तो याद रह जाता है, वह कौन है, जो शास्त्र पढ़ रहा है? वह कौन है, जो सबके प्रति साक्षी है? वह कैन है चैतन्य का स्रोत तुम्हारे भीतर?
जब मैं भूला रे भाई, मेरे सतगुरु जुगत लखाई।
कबीर कहते हैं, जब मैं भूल गया–विस्मरण, अज्ञान है। इसलिए तुम ज्ञान से अज्ञान को न मिटा सकोगे; स्मरण से मिटा सकोगे। इसे ठीक से समझ लो। विस्मरण अज्ञान है। तुम भूल गए हो, कि तुम कौन हो? इसकी पुनर्याद, पुनर्स्मरण चाहिए। ज्ञान से यह न होगा।
क्योंकि ऐसा नहीं है कि तुम्हें कुछ जानकारी की कमी है, तो जानकारी बढ़ जाएगी, तो ज्ञान हो जाएगा। तुम्हारे मन में अभी हजार जानकारियां हैं, दस हजार हो जाएंगी। इससे तुम्हारा अज्ञान न टूटेगा। तुम महापंडित हो जाओगे, लेकिन तुम्हारी मूढ़ता बरकरार रहेगी। क्योंकि मूढ़ता का पांडित्य के होने से और टूटने का कोई संबंध नहीं है। मूढ़ता है भूलना; विस्मरण। इसलिए स्मरण से तुम्हें अपनी याद आ जाएगी, मैं कौन हूं।
इसलिए कबीर दो शब्दों में समझे जा सकते हैं–विस्मरण और स्मरण; जिसको कबीर ने सुमिरन कहा है, सुरति कहा है। सुरति संस्कृति के स्मृति शब्द का अपभ्रंश है। स्मृति आ जाए, सुरति आ जाए, सुमिरन आ जाए। लेकिन लोग बड़े अजीब हैं। कबीर के माननेवालों को भी मैं जानता हूं। वे माला फेरते हैं। उनसे पूछो क्या कर रहे हो? वे कहते हैं सुमिरन कर रहे हैं। सुमिरन को उन्होंने जाप बना लिया।
सुमिरन का अर्थ है स्मरण जिसको गुरजिएफ ने सेल्फ-रिमेंबरिंग कहा है–आत्मस्मृति। जिसको बुद्ध ने सम्यक-स्मृति कहा है–राइट माइंडफुलनेस। जिसको महावीर ने विवेक कहा है–याद।
लेकिन कैसे तुम्हें याद आएगी? तुम तो भूल गए हो। तुम्हें कोई याद दिलाए, तो ही आएगी। तुम्हें खुद कैसे याद आएगी?
रात तुम सोते हो। सुबह पांच बजे उठते हो, ट्रेन पकड़नी है, क्या करते हो? कोई जुगत चाहिए। अलार्म भर देते हो। अलार्म जुगत है। तुम न जाग सकोगे पांच बजे। कोई तुम्हें जगाए। घड़ी भी जगा सकती है। यंत्र है सिर्फ। लेकिन तुम स्वयं न जाग सकोगे। या किसी को कह देते हो पड़ोस में, कि जगा देना।
कोई जागा हुआ जगा सकता है। किसी सोए आदमी से मत कह देना, कि जगा देना। वो पहले ही घुर्रा रहे हैं और तुम उनसे जाकर कहो, कि भाई सुनो। पांच बजे जगा देना। उससे कुछ हल न होगा। उन्होंने सुना ही नहीं। उनको खुद ही कोई जगानेवाले की जरूरत थी। कोई जागा हुआ चाहिए।
और समस्त योग का अर्थ है, जुगत। जुगत शब्द बड़ा प्यारा है।
अंग्रेजी में उसके लिए शब्द है–डिवाईस, तरकीब। हजारों तरह की तरकीबें उपयोग की गई हैं आदमी को जगाने के लिए। लेकिन अगर तुम खुद ही करोगे, तो खतरा है।
मैंने सुना है, कि अमेरिका का बहुत बड़ा वैज्ञानिक एडीसन भुलक्कड़ था। भूल जाता था। अक्सर जो लोग बहुत सोचते हैं वे भुलक्कड़ हो जाता हैं। सोचना इतना ज्यादा हो जाता है, कि सबकी याद रखनी मुश्किल हो जाती है। तो वह हर चीज को, जब भुलक्कड़ हो गया…और उसने एक हजार आविष्कार किए हैं। इसलिए बड़ी पैनी बुद्धि का आदमी था। कभी वह कोई चीज आधी पूरी करके…पूरी न कर पाया है। आधी की है, आधा कोई आविष्कार कर लिया है। फिर भूल जाएं वर्षों तक; तो बड़ा नुकसान होने लगा।
तो किसी ने उसे सुझाव दिया कि तुम ऐसा क्यों नहीं करते, कि हर चीज को लिख लिया, ताकि याद बनी रहे। उसने लिखना शुरू कर दिया। तो अलग-अलग कागजों पर लिख कर रखता जाता; वे कागज खो जाते, कि कहां रख दिया? किसी ने कहा, तुम भी पागल हो। अलग-अलग कागजों पर क्यों लिखते हो? डायरी क्यों नहीं बना लेते? उसने डायरी बना ली। डायरी खो गई।
आदमी भूलनेवाला हो, तो इससे क्या फर्क पड़ता है? तुम चाहे कागज पर लिखो चाहे तुम डायरी पर लिखो। इससे फर्क ही क्या पड़ता है? क्योंकि वह आदमी तो बुनियादी वही है। वह डायरी भूल गया एक दिन। उसने कहा इससे तो कागज ही बेहतर थे। एक भूलता था, तो बाकी तो बचते थे। यह पूरा गया। डायरी में सब लिखा था। अब डायरी कहां है?
आदमी अपने से ही कोशिश करेगा तो उसका जो बुनियादी गुण है, उसके पार नहीं जा सकता। इसलिए आध्यात्मिक जीवन में गुरु की अनिवार्यता है। गुरु का केवल इतना ही अर्थ है, कोई जो जाग गया। कोई जो तुम्हें भूलने न देगा। कोई जो तुम्हें कोड़े लगाता रहेगा। कोई जो तुम्हें हिलाता रहेगा। कोई जो तुम्हें करवट ले कर फिर सपने में न खो जाने देगा।
तुम्हारा सारा अतीत नींद की तैयारी है। गुरु के रहते भी तुम जाग जाओगे, यह पक्का नहीं है। लेकिन गुरु के बिना तो बिलकुल पक्का है, तुम जाग न सकोगे। हां, यह हो सकता है कि तुम नींद में ही सपना देखने लगो, कि जाग गए। यह भी होता है। तुमने कभी नींद में भी ऐसा सपना देखा होगा कि जब तुम जाग गए।
इसलिए अलार्म भी बहुत काम नहीं दे सकता। अलार्म बज रहा है। तुम सो रहे हो। तुम एक सपना पैदा कर लेते हो कि मंदिर में प्रार्थना चल रही है। घंटी बज रही है। तुमने खतम कर दी घड़ी। तुमने तरकीब निकाल दी। नींद ने रास्ता बना लिया। क्योंकि अगर अलार्म हो तो जागना पड़ेगा। तो नींद ने एक सपना पैदा किया। नींद ने कहा कि अहा! कैसी सुंदर आरती उतर रही है। सवाल न रहा। नींद में तुम अलार्म भी बंद कर सकते हो। करवट ले सकते हो। घड़ी मुर्दा है।

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