Saturday 15 August 2015

बहुत कीमती सूत्र कृष्ण इसमें कह रहे हैं। वे कह रहे हैं, प्रकृति के गुणों से मोहित हुए……।
इस मोहित शब्द को थोड़ा गहरे में समझना जरूरी है। मोहित हुए अर्थात सम्मोहित हुए, हिम्नोटाइब्द। सुना होगा आपने कि सिंह के सामने शिकार जब जाता है, तो भाग नहीं पाता, सम्मोहित हो जाता है, हिम्नोटाइब्द हो जाता है, खड़ा रह जाता है; भूल ही जाता है कि भागना है। सिंह की आंखों में देखता हुआ अवरुद्ध हो जाता है, मैग्नेटाइब्द हो जाता है, रुक ही जाता है। भागना ही भूल जाता है। यह भी भूल जाता है कि मृत्यु सामने खड़ी है। अजगर के बाबत तो कहा जाता है कि शिकार अपने आप खिंचा हुआ उसके पास चला आता है। आकाश में उड़ता हुआ पक्षी खिंचता हुआ चला आता है; कोई परवश, कोई खींचे चला जाता है।
संस्कृत का यह शब्द है, पशु। इसका मतलब इतना ही होता है कि जो पाश में बंधा हुआ खिंचा चला आता है, उसे पशु कहते हैं। जैसे एक गाय को हमने बांध लिया रस्सी में और खींचे चले आ रहे हैं। गाय पाश में बंधी हुई खिंची चली आती है। ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के गुणों में खिंचा हुआ पशु की तरह वर्तन करता है, मोहित हो जाता है, हिप्नोटाइब्द हो जाता है। इसमें दो—तीन बातें हिप्नोटिज्य की खयाल में लें, तो खयाल में आ सकेगा।
एक चेहरा सुंदर लगता है आपको, खिंचे चले जाते हैं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि चेहरे में क्या सौंदर्य हो सकता है! आप’ कहेंगे, होता है, बिलकुल होता है। लेकिन फिर आपको सम्मोहन के संबंध में बहुत पता नहीं है। मेरे एक मित्र, जिनको सुंदर चेहरों पर बड़ा ही आकर्षण था। उनसे मैंने कहा, आकर्षण है क्या सुंदर चेहरों में? उन्होंने कहा, है। फिर भी मैंने कहा, क्या है? नाक थोड़ी लंबी होती है कि थोड़ी छोटी होती है, तो आपके हृदय की धडकन में क्यों फर्क पड़ता है? आंख थोड़ी बड़ी होती है कि छोटी होती है, कि चेहरा थोडा अनुपात में होता है कि गैर—अनुपात में होता है, इससे आपके भीतर क्या होता है? उन्होंने कहा, होता है। आप सौंदर्य को नहीं मानते?
तो मैंने उन्हें सम्मोहित करके बेहोश किया। जब वे बेहोश हो गए, तो पास में पड़े हुए तकिए को मैंने उनके पास रखा और मैंने कहा, यह तकिया इतना सुंदर है, जितनी कोई स्त्री आपने कभी नहीं देखी है। इसे पास में लो, आलिंगन करो, ओं, प्यार करो। उन्होंने तकिए को पास में लिया, खूब प्रेम किया। फिर मैंने उनसे कहा कि जब तुम होश में आ जाओगे, आधा घंटे बाद, फिर तुममें प्रेम की लहर आएगी और इस तकिए को तुम फिर छाती से लगाओगे। पोस्ट—हिम्नोटिक सजेशन! आधा घंटे बाद होश में आने के बाद, आधा घंटे बाद तुम विवश हो जाओगे, तुम्हारे बस में न रहेगा, बस तुम उठाओगे तकिए को, छाती से लगाओगे और चूमोगे।
फिर वे होश में आ गए। फिर हम सब बैठकर गपशप करने लगे। फिर सब ठीक बात हो गई। घड़ी मैं देख रहा हूं। तकिया उनके पास में पड़ा है। उसे उठाकर मैंने आलमारी में बंद कर दिया। उनकी आंखें देख रहा हूं। पच्चीस मिनट, तीस मिनट और बेचैनी उनकी शुरू हुई। जो लोग भी बैठे थे, वे भी देख रहे हैं कि अब वे बेचैन हो गए हैं। वे बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं। अब वे ठीक उसी हालत में हैं, जैसी हालत में कामुकता से भरा हुआ आदमी हो जाता है। लेकिन तकिए के प्रति कोई कामुकता होती है? उठे।
मैंने कहा, कहां जा रहे हैं? उन्होंने कहा कि जरा वह तकिया मुझे देखना है, क्योंकि मुझे वह बहुत पसंद पड़ा, उसी तरह का तकिया मैं भी बाजार से खरीदना चाहता हूं। अब वे रेशनलाइज कर रहे हैं। उनको भी पता नहीं है। अब वे तर्क दे रहे हैं। मैंने कहा, छोडो भी, मैं तुम्हें यहीं बताए देता हूं कि तकिया कहां से लिया गया है। वहां से तुम तकिया ले लेना। उन्होंने कहा कि नहीं, जरा मैं देखना ही चाहता हूं। उनकी चाल देखने जैसी थी; जैसे भौंरा फूल के पास जाता है, बस वैसे ही वे आलमारी खोलकर। लेकिन सब हम बैठे हैं। तकिए को उठाकर देखते हैं उसे, उनकी आंखें, उनके हाथ। वह तकिया बड़ा जीवित हो गया है, क्योंकि अनकाशस में सम्मोहित कर रहा है। तकिया उन्हें खींच रहा है, क्योंकि तकिया सुंदर है, यह भाव गहरे अचेतन में उनके प्रवेश कर गया है।
एक क्षण उन्होंने हमारी तरफ देखा, फिर जैसे बेहोश आदमी, फिर वे हमारी फिक्र भूल गए, फिर उन्होंने तकिए को छाती से लगाकर चूमना शुरू कर दिया। हमने कहा भी कि यह क्या पागलपन कर रहे हो! पर वे पागलपन कर चुके थे। फिर बैठ गए। पसीना आ गया। घबड़ा गए और कहने लगे, मैंने यह क्या किया? यह हुआ क्या? मैंने कहा, ठीक ऐसे ही स्त्री और पुरुष सुंदर मालूम हो रहे हैं। ठीक ऐसे ही। वह प्रकृति के द्वारा डाला गया मोह है, वह प्रकृति के द्वारा डाली गई हिम्मोसिस है। वह हमारे अचेतन में जन्मों—जन्मों से डाला गया, बांधा गया वासना का बीज है। वह काम कर रहा है। वह काम करता है, फिर वह जुड़ जाता है। वह चीजों से भी जुड जाता है।
कृष्ण कह रहे हैं, प्रकृति के गुणों से मोहित हुआ पुरुष……।
वही दुख है, वही पीड़ा है सब की। हम किन—किन चीजों से मोहित होते हैं, जरा खयाल करना, तो बड़ी हैरानी होगी। अगर चित्र देखें, फिल्म देखें, पेंटिंग्स देखें, कविताएं उठाएं, नाटक पढ़ें, उपन्यास देखें, अगर सारी मनुष्य जाति का पूरा का पूरा साहित्य, जिसको हम बड़ा भारी साहित्य कहते हैं, उसे उठाकर देखें, तो बड़ी हैरानी होगी। कुछ चीजों से आब्सेशन आदमी को पैदा हो गया है, पागल की तरह। और किसी को खयाल में नहीं है कि क्या हो गया है। और कभी खयाल में नहीं आता कि प्रकृति के गुण इस भांति मोहित कर सकते हैं!
अब स्त्रियों के स्तन सारी मनुष्य जाति को पीड़ित किए हुए हैं। सारे चित्र, सारी तस्वीरें, कविताएं, साहित्य, उन्हीं से भरा हुआ है। सब कवि, सब चित्रकार पागल मालूम पड़ते हैं। स्त्री के स्तन में क्या है? लेकिन छोटे बच्चे की पहली पहचान स्तन से होती है। पहला प्रेम और पहला ज्ञान स्तन से जुड़ता है। पहला एसोसिएशन, उसके दिमाग में पहला इंप्रेशन स्तन का बनता है। फिर वह जिंदगीभर पीछा करता है। वह सम्मोहित हो गया। अब वह बूढ़ा हो गया, अभी भी वह स्तन से सम्मोहित है।
यह बचपन में पड़ी पहली छाप है। इसको बायोलाजिस्ट कहते हैं, यह ट्रॉमेटिक इंप्रेशन है। वे कहते हैं, चूंकि बच्चे के चित्त पर सबसे पहली छाप मां के स्तन की पड़ती है, इसलिए बुढ़ापे के मरते दम तक स्तन पीछा करता है। और कुछ भी नहीं। बस, सम्मोहित हो गया आदमी, फिर बड़े से बड़ा कालिदास हो, कि भवभूति हो, कि पिकासो हो, कि कोई भी हो, बड़े से बड़ा चित्रकार, बड़े से बड़ा कवि, बस वह उसी में उलझा हुआ है। आश्चर्यजनक है।
लेकिन कृष्ण कहते हैं, प्रकृति के गुण को न समझने से और उनसे सम्मोहित हो जाने से, हिम्नोटाइब्द हो जाने से आदमी अज्ञान में, मोह में, आसक्ति में, दुख में पड़ता है। और नासमझों से भरा हुआ जगत है। ये सभी इसी तरह मनोवैज्ञानिक फेटिश शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं, आदमी अंगों से प्रभावित हो तो हो, वस्त्रों से, वस्तुओं से, उन तक से प्रभावित और पागल हो जाता है। उन सबसे भी उसके संबंध जुड़ जाते हैं और उनके पीछे भी वह उसी तरह मोहित होकर घूमने लगता है। यह जो स्थिति है चित्त की, इस स्थिति से जो नहीं जागेगा, वह कभी धर्म के सत्य को नहीं जान सकता। वह सिर्फ प्रकृति के गुणों में ही भटकता रहेगा।
रंग मोहित करते हैं। अब रंगों में क्या हो सकता है? लेकिन भारी मोहित करते हैं। किसी को एक रंग अच्छा लगता है, तो वह दीवाना हो जाता है। उसको पागल किया जा सकता है, उसी रंग के साथ। बहुत बडा चित्रकार हुआ वानगाग, वह पीले रंग से आब्सेस्ट था। पीला रंग देखे, तो पागल हो जाए। धूप में खड़ा रहे, सूरज की धूप में खड़ा रहे, क्योंकि पीली धूप बरसे। जहा पीले फूल खिल जाएं, फिर वह घर के भीतर न आ सकता था। एक साल आरलिस की धूप में खडे होकर वह पीले रंग को देखता रहा। और इतनी धूप में खड़े होने की वजह से पागल हुआ, दिमाग विक्षिप्त हो गया। लेकिन पीला रंग उसके लिए पागलपन था। जरूर कहीं बचपन में कोई ट्रॉमेटिक एक्सपीरिएंस, बचपन में कभी कोई ऐसी घटना घट गई, जिससे वह पीले रंग से बिलकुल आब्सेस्ट हो गया।
नेपोलियन इतना बड़ा हिम्मत का आदमी, शेर से लड़ जाए, लेकिन बिल्ली से डरे। सिंहों से जूझ जाए, लेकिन बिल्ली को देख ले, तो पूंछ दबाकर भाग जाए। क्या हो गया? छह महीने का था—क्योंकि नेपोलियन जैसे आदमी की जिंदगी उपलब्ध है, इसलिए जानने में आसानी है—छह महीने का था, पालने पर सोया था, एक जंगली बिलाव ने उसकी छाती पर पैर रख दिया। छह महीने का बच्चा, जंगली बिलाव, छाती पर पैर—चित्र बैठ गया गहरे, अनकाशस में उतर गया। फिर नेपोलियन बड़ा हो गया। सब बात भूल गई। लेकिन बिल्ली दिखे कि नेपोलियन फिर छह महीने का हो जाए। बिल्ली दिखी कि वे रिग्रेस किए, वे वापस छह महीने के हुए।

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