Wednesday 1 July 2015

ईथरिक बॉडी के बाद तीसरा शरीर है, जिसे हमने एस्ट्रल बॉडी, सूक्ष्म शरीर कहा। वह ईथर का भी सूक्ष्मतम रूप है। अभी विज्ञान उस पर नहीं पहुंचा है। अभी विज्ञान इस खयाल पर तो पहुंच गया है कि अगर पदार्थ को हम विश्लेषण करें, एनालिसिस करें और तोड़ते चले जाएं, तो अंत में ऊर्जा बचती है। उस ऊर्जा को हम ईथर कह रहे हैं। अगर ईथर को भी तोड़ा जा सके और उसके भी सूक्ष्मतम अंश बनाए जा सकें, तो जो बचेगा वह एस्ट्रल है—सूक्ष्म शरीर है वह। वह सूक्ष्म का भी सूक्ष्म रूप है।
अभी विज्ञान वहा नहीं पहुंचा, लेकिन पहुंच जाएगा। क्योंकि कल वह भौतिक को स्वीकार करता था, आणविक को स्वीकार नहीं करता था। कल वह कहता था पदार्थ ठोस चीज है; आज वह कहता है. ठोस जैसी कोई चीज ही नहीं है; जो भी है, सब गैर—ठोस है, नॉन—सालिड हो गया सब। यह दीवाल भी जो हमें इतनी ठोस दिखाई पड़ रही है, ठोस नहीं है; यह भी पोरस है, इसमें भी छेद हैं, और चीजें इसके आर—पार जा रही हैं। फिर भी हम कहेंगे कि छेदों के आसपास, जिनके बीच छेद हैं, वे तो कम से कम ठोस अणु होंगे! वे भी ठोस अणु नहीं हैं। एक—एक अणु भी पोरस है। अगर हम एक अणु को बड़ा कर सकें तो जमीन और चांद और तारे और सूरज के बीच जितना फासला है, उतना अणु के कणों के बीच फासला है। अगर उसको इतना बड़ा कर सकें तो फासला इतना ही हो जाएगा।
फिर वे जो फासले को भी जोड़नेवाले अणु हैं, हम कहेंगे, कम से कम वे तो ठोस हैं! लेकिन विज्ञान कहता है, वे भी ठोस नहीं हैं, वे सिर्फ विद्युत कण हैं। कण भी अब विज्ञान मानने को राजी नहीं है; क्योंकि कण के साथ पदार्थ का पुराना खयाल जुड़ा हुआ है। कण का मतलब होता है. पदार्थ का टुकड़ा। वे कण भी नहीं हैं, क्योंकि कण तो एक जैसा रहता है। वे पूरे वक्त बदलते रहते हैं। लहर की तरह हैं, कण की तरह नहीं। जैसे पानी में एक लहर उठी, जब तक आपने कहा कि लहर उठी, तब तक वह कुछ और हो गई। जब आपने कहा, वह रही लहर! तब तक वह कुछ और हो गई। क्योंकि लहर का मतलब ही यह है कि वह आ रही है, जा रही है। लेकिन अगर हम लहर भी कहें तो भी पानी की लहर एक भौतिक घटना है।
इसलिए विज्ञान ने एक नया शब्द खोजा है, जो कि कभी था नहीं आज से तीस साल पहले, वह है कांटा। अभी हिंदी में उस शब्द के लिए कहना मुश्किल है। इसलिए कहना मुश्किल है, जैसे हिंदी के पास शब्द है ब्रह्म और अंग्रेजी में कहना मुश्किल है; क्योंकि कभी जरूरत पड़ गई थी कुछ अनुभव करनेवाले लोगों को, तब यह शब्द खोज लिया गया था। पश्चिम उस जगह नहीं पहुंचा कभी, इसलिए इस शब्द की उन्हें कभी जरूरत नहीं पड़ी। इसलिए धर्म की बहुत सी भाषा के शब्द पश्चिम को सीधे लेना पड़ते हैं—जैसे ओम्। उसका कोई अनुवाद दुनिया की किसी भाषा में नहीं हो सकता। वह कभी किन्हीं आध्यात्मिक गहराइयों में अनुभव की गई बात है। उसके लिए हमने एक शब्द खोज लिया था। लेकिन पश्चिम के पास उसके लिए कोई समांतर शब्द नहीं है कि उसका अनुवाद किया जा सके।
ऐसे ही ‘कांटा’ पश्चिम के विज्ञान की बहुत ऊंचाई पर पाया गया शब्द है जिसके लिए दूसरी भाषा में कोई शब्द नहीं है। कांटा का अगर हम मतलब समझना चाहें, तो कांटा का मतलब होता है. कण और तरंग एक साथ। इसको कसीव करना मुश्किल हो जाएगा। कोई चीज कण और तरंग एक साथ! कभी वह तरंग की तरह व्यवहार करता है और कभी कण की तरह व्यवहार करता है— और कोई भरोसा नहीं उसका कि वह वैसा व्यवहार करे।

No comments:

Post a Comment