Thursday 9 July 2015

आपने कहा कि तुम अभी अहंकार से भरे हो। यह अहंकार है क्या? और यह कैसे पता चले कि क्या—क्या अहंकार है और क्या—क्या अहंकार नहीं है?
जो पता चलाना चाह रहा है, वही अहंकार है। अहंकार तरकीब खोज रहा है अब। वह कहता है ठीक, चलो माना; चलो कौन विवाद करे? स्वीकार! अब यह तो पता कर लो, क्या—क्या अहंकार है और क्या—क्या अहंकार नहीं है?
सभी कुछ अहंकार है। तुम्हारे पास जो भी है, सभी कुछ अहंकार है। इसको मैं बेशर्त कहता हूं। क्योंकि शर्त बांधी कि अहंकार उसी शर्त में बच जाएगा; तुम जो बचाओगे, उसी में छिप जाएगा।
तुम अगर कहोगे, प्रार्थना तो अहंकार नहीं? प्रेम तो अहंकार नहीं? तो फिर अहंकार उसी आडू में बच जाएगा। ये अहंकार की तरकीबें हैं! आडू खोजना। वह कहता है, प्रार्थना तो अहंकार नहीं! तो चलो, प्रार्थना के पीछे ही छिप जाएं; अब से प्रार्थना ही करेंगे। और तब तुम कहने लगोगे कि मैं परमात्मा का पूजक! परमात्मा का पुजारी! मेरी पूजा देखो, मेरे जैसा पुजारी और कोई भी नहीं। मेरा प्रेम देखो, मेरे जैसा प्रेमी तुम कहीं पाओगे ‘ अहंकार वहीं खड़ा हो जाएगा।
अगर मैंने तुमसे कहा, विनम्रता अहंकार नहीं है, तो विंनम्रतीं के पीछे खड़ा हो जाएगा। अहंकार कहेगा, मुझसे विनम्र कभी कोई हुआ है!
अहंकार ने ऐसी बहुत सी शरण—स्थल खोज रखी हैं। किसी ने कहा दान, किसी ने कहा पूजा, किसी ने कहा नमाज, किसी ने कहा त्याग, किसी ने कहा उपवास, किसी ने कहा संन्यास—बस, अहंकार वहीं छिप जाएगा। अहंकार को अड़चन थोड़े ही है किसी चीज में छिप जाने से!
कोई धन की ही थोड़े ही जरूरत है, निर्धन का भी अहंकार होता है। अमीर ही थोड़े ही अकड़कर चलते हैं, गरीब भी अकड़कर चलते हैं। अमीर अकड़कर चलता है धन के कारण, गरीब अकड़कर चलते हैं निर्धनता के कारण। वे कहते हैं, हम गरीब भले! क्या रखा है चांदी के ठीकरों में? गरीबी बड़ी नियामत है।
शहर का आदमी अकड़कर चलता है, क्योंकि शहर का है, गांव का आदमी अकड़कर चलता है, क्योंकि गांव का है। जिनके पास बहुत बुद्धि है, वे अकड़कर चलते हैं कि हम बड़े बुद्धिमान हैं; जिनके पास बुद्धि नहीं, वे कहते हैं, क्या रखा है बुद्धि में? हम तो सीधे—सादे आदमी हैं।
अकड़ के लिए कोई भी बहाना काफी है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं बेशर्त, तुम्हारे पास जो भी है, सभी अहंकार है। जिस दिन तुम्हारे पास जो भी है, सभी अहंकार की समझ तुम्हें आ जाएगी, अहंकार को बचने की जगह न रही; फिर अहंकार कहीं छिप न सकेगा।
समझदारी भी शरण बन जाती है, नासमझी भी शरण बन जाती है। भोग तो शरण बनता ही है, त्याग भी शरण बन जाता है।
त्यागियों का अहंकार देखते हो, कैसा दीप्त! कैसा चमकता हुआ! भोगी का अहंकार थोड़ा बोथला होता है, त्यागी के अहंकार में धार होती है। अभी—अभी उसकी तलवार पर धार रखकर आई है। भोगी तो थोड़ा डरता भी है, क्योंकि कहता है, भोगी हूं कैसे कहूं? सारी दुनिया को पता है। त्यागी डरता भी नहीं; वह कहता है, त्यागी हूं। त्यागी बताना चाहता है—सारी दुनिया को पता चल जाए। भोगी तो थोड़ा छिपाता भी है। पापी तो डरता है, छिपाता है, किसी को पता न चल जाए; त्यागी बतलाता है, प्रदर्शनवादी हो जाता है। तुमने पापियों की शोभा—यात्राएं देखीं? महात्माओं की निकलती हैं, रथ निकलते हैं।
बड़ी कठिनाई है। मगर कठिनाई को जड़ से पकड़ लो तो बड़ी नहीं है, जरा सी है। ही, जड़ से ही न पकड़ो तो फिर कठिनाई है।
तुम एक कमरे को साफ कर लोगे, अहंकार दूसरे कमरे में छिप जाएगा। भवन बड़ा है, इसमें बहुत कमरे हैं। फिर तो यह लुका—छिपी चलती रहेगी जन्मों—जन्मों। ऐसा ही तो चलता रहा है। एक तरफ से बचे, दूसरी तरफ से पकड़े गए। दूसरी तरफ से बचे तो तीसरी तरफ से पकड़े गए।
यह लुका—छिपी का खेल बंद करो। मैं तुमसे कहता हूं सभी अहंकार है, क्योंकि तुम अहंकार हो। तुम्हारा सब अहंकार है—सब!
थोड़ा ज्यादा लगेगा; लगेगा मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूं जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूं। अगर अहंकार से छूटना हो तो यही गहरी समझ चाहिए। और अगर यह तुम्हें दिखाई पड़ जाए, एक आह निकल जाएगी। अगर यह तुम्हें दिखाई पड़ जाए तो कुछ बचेगा तुम्हारे भीतर, जिसका तुम्हें अभी पता ही नहीं; जो अभी सब भाति छिपा है तुम्हारे अहंकार में, अहंकार के हटते ही प्रगट होगा।
अस्तित्व तो होगा, तुम न होओगे। शुद्ध अस्तित्व होगा, तुम्हारी सीमा न होगी। आंगन की दीवालें गिर जाएंगी और आंगन आकाश हो जाएगा।
आंगन पूछता है, दीवाल का कौन सा हिस्सा है, जो मेरी सीमा बनाता है? जो हिस्सा सीमा बनाता हो, उसको गिरा दें। लेकिन आंगन की दीवाल पूरी की पूरी सीमा बनाती है; ऐसा कुछ नहीं है कि एक—आध हिस्सा सीमा बनाता है। अगर एक—आध हिस्सा सीमा बनाता है तो तुम वहां दरवाजा लगा देना; लेकिन इससे आँगन-आंगन ही रहेगा। दरवाजे वाला आंगन हो जाएगा, आकाश नहीं हो जाएगा आंगन।
सारी दीवालों को विदा करना होगा—बेशर्त!
समझ चाहिए। तुम मुझसे मत पूछो कि क्या अहंकार नहीं है? क्योंकि मैंने कुछ भी कहा, अगर मैं कहूं आत्मा…।

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