Wednesday 8 July 2015

सुबह की आज जो रंगत है वह पहले तो न थी
क्या खबर आज खरामा सरे—गुलजार है कौन
आज मेरे बगीचे से कौन गुजर गया?
सुबह की आज जो रंगत है वह पहले तो न थी
सुबह तो बहुत हुईं, लेकिन सुबह पहली बार होती है, जब प्रेम होता है।
सुबह की आज जो रंगत है वह पहले तो न थी
क्या खबर आज खरामा सरे—गुलजार है कौन
कौन आज सुबह—सुबह मेरे बगीचे से गुजर गया? कौन मेरे हृदय से गुजर गया है? सब अधखिली कलियां चटक गयीं, फूल बन गयीं। मुर्झाए पौधे जीवंत हो गए, हरे हो गए। मरुस्थल जगमगा उठा, दीपमालिका सज गई।
शाम गुलनार हुई जाती है, देखो तो सही
यह जो निकला है लिए मशअले—रुखसार है कौन
यह कौन मेरे हृदय में मशाल लेकर निकल गया?
शाम गुलनार हुई जाती है, देखो तो सही
यह जो निकला है लिए मशअले—रुखसार है कौन
प्रेम आता है, एक झंझावात की तरह जगा जाता है।
प्रेम आता है, नींद तोड़ जाता है।
प्रेम आता है, प्रकाश से भर जाता है।
प्रेम आता है, तत्‍क्षण ‘लगता है, अब जीवन में गति आई, गंतव्य आया, कहीं पहुंचने जैसी कोई बात हुई। नाव को दिशा मिलती है।
मैं तो समझ लूंगा, अगर तुम्हें यह समझ में आ गया हो—
सुबह की आज जो रंगत है वह पहले तो न थी
अगर तुम्हें यह समझ में आ गया हो कि आज दिल का हाल कुछ और! किसी ने छुआ है और वीणा जाग उठी है। किसी ने छुआ है और वीणा गुनगुनाने लगी है। किसी ने छुआ है और मौन बोल उठा है।
तुम्हें भर पता हो! तुम मेरी फिक्र छोड़ो। तुम्हें पता चले इसके पहले मुझे पता चल जाएगा। तुम्हें पता चलेगा उसके पहले मुझे पता चल जाएगा। क्योंकि तुम भी अपने हृदय के उतने करीब नही हो, जितना मैं तुम्हारे हृदय के करीब हूं। तुम्हें पता चलने में थोड़ी देर लग जाएगी, तुम अपने से थोड़े ज्यादा दूर हो। मैं तुमसे ज्यादा करीब हूं क्योंकि मैं अपने करीब हूं।
जो अपने करीब है, वह सबके करीब है, क्योंकि अपने करीब होना सबके करीब हो जाना है। उस भीतर के जगत में अपना और पराया कोई है? उस भीतर के जगत में मैं और तू कोई है? जिस दिन मैं अपने करीब हुआ, उसी दिन मैं तुम्हारे करीब हो गया हूं।
हो सकता है, प्रेम तुम्हारे भीतर जगे, तुम्हें थोड़ी देर से पता चले। तुम पहले तो चौकोगे; पहले तो तुम भरोसा न कर सकोगे; पहले तो तुम संदेह से भरोगे कि यह क्या हुआ है? जरूर कोई कल्पना होगी, कोई मन का खेल—फिर कोई खेल, फिर कोई स्वप्‍न ने पकड़ा मालूम हुआ।
पहले तो तुम लाख उपाय करोगे इसे झुठलाने के कि यह नहीं है, क्योंकि यह खतरा है, यह जोखिम है। यहां चलना खतरे से खाली नहीं है। पहले तो तुम सम्हालोगे। तुम्हारे पैर तो कभी न लड़खड़ाए थे। तुम तो सदा सम्हलकर चले थे। तुम तो बड़े होशियार थे और आज यह कैसी दीवानगी छाई जाती है? और आज यह क्या हुआ जाता है? पैर लड़खड़ाने लगे। तुमने तो कभी पी न थी, आज यह तुम्हें क्या हुआ है?
तुम पहले तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाओगे। तुम्हारा सारा अतीत डगमगा जाएगा। ऐसे तो तुम कभी भी न थे। यह कुछ नया हुआ है! तुम इंकार करोगे, क्योंकि मन जो अतीत है, उससे ही बंधा रहना चाहता है। मन नए से भयभीत है। इसीलिए तो मन परमात्मा को कभी भी नहीं खोज पाता, क्योंकि परमात्मा नित—नूतन है।
मन तो बंधी लकीर का फकीर है, बंधे—बंधाए रास्तों पर सुविधापूर्ण दौड़ता रहता है। ट्रामगाड़ी है, बंधी पटरियों पर दौड़ती रहती है ऐसा मन है। जब पहली दफा तुम पाओगे कि पटरियां नीचे से हट गयीं, बिना पटरियों के तुम अनजान में उतरे जाते हों—घबड़ा जाओगे, ठिठककर खड़े हो जाओगे, पुराने सूत्र को पकड़ने की चेष्टा करोगे, नए से बचना चाहोगे।
लेकिन प्रेम आ जाए तो तुम बच न सकोगे, देर—अबेर तुम्हें स्वीकार करना ही पड़ेगा। क्योंकि प्रेम का आनंद ऐसा है। अपरिचित है माना, क्योंकि आनंद ही तुम्हें अपरिचित है; अनजान है माना, क्योंकि जो तुमने जाना है, वह जानने योग्य भी कहा था? उतरते हो किसी ऐसे लोक में, जिसका हाथ में कोई नक्शा नहीं है।
डर स्वाभाविक है, लेकिन डर भी तभी तक है जब तक प्रेम की घटना नहीं घटी है। एक बार घटे तो धीरे—धीरे डर छूट जाता है। कौन प्रेम को छोड़ेगा भय के लिए? थोड़ी देर जद्दोजहद होगी, थोड़ी देर तुम लड़ोगे, थोड़ी देर तुम बचोगे, थोड़ी देर तुम उपाय करोगे, लेकिन प्रेम सब व्यर्थ कर जाता है। प्रेम तुमसे बड़ा है; तुम्हारे उपाय कारगर नहीं हो सकते।
तुम से पहले मुझे पता चल जाता है। अस्तित्व की भाषा है; और जिसने अपने को जाना, उसने अस्तित्व की भाषा जानी।
इतने लोग मेरे पास आते हैं, जब कोई प्रेम से आता है तो उसके आने का ढंग ही और। जब कोई प्रेम से आता है, तभी आता है; बाकी आते मालूम पड़ते हैं, जाते मालूम पड़ते हैं। बाकी आते हैं, जाने के लिए; प्रेम से भरकर जो आता है, वह आ गया; फिर कोई जाना नहीं है। प्रेम में कोई लौटने का उपाय नहीं है।
तो अगर तुम्हें लगता हो, अगर तुम्हें खबर मिली हो, संदेशा पहुंच गया हो, तुम्हारे हृदय की खबर तुम्हारे मस्तिष्क तक आ गई हो, जहां तुम विराजमान हो; सिर में जहां तुम बैठे हो, वहा तक अगर हृदय के तार झंकार पहुंच गए हों तो तुम मेरी फिक्र मत करो। तुमने न जाना था, उसके पहले ही मैंने स्वीकार कर लिया है। मैं उसकी प्रतीक्षा ही कर रहा हूं। तुम्हारे भीतर प्रेम का जन्म हो, यही तो मेरी सारी सतत चेष्टा है। क्योंकि प्रेम से ही परमात्मा का सूत्र हाथ में आएगा।
घबड़ाना मत और इस चिंता में मत पड़ना कि मैं स्वीकार करूंगा या नहीं! प्रेम को कब कौन अस्वीकार कर पाया है? प्रेम को अगर कभी अस्वीकार किया गया है तो प्रेम के कारण नहीं, प्रेम में छिपी वासना के कारण। प्रेम को अगर कभी अस्वीकार किया गया है तो प्रेम के कारण नहीं, किसी और चीज के कारण, जिसने प्रेम का ढोंग बना रखा था।
एक युवक मेरे पास आया और उसने कहा, मैं एक युवती के प्रेम में हूं क्या वह मुझे स्वीकार करेगी? मैंने कहा, मुझे उस युवती का कोई पता नहीं, लेकिन प्रेम का मुझे पता है; अगर प्रेम है तो प्रेम अस्वीकार होता ही नहीं। तू फिर से सोच, प्रेम है? वह थोड़ा डगमगाया; उसने कहा, कह नहीं सकता। तो फिर मैंने कहा, जब तेरे ही पैर डगमगा रहे हैं, अभी तुझे ही साफ नहीं है। तू फिर सोचकर आ। तू सात दिन इस पर ध्यान कर। युवती की तो तू फिक्र छोड़ दे, उससे कुछ लेना—देना नहीं है। जीवन के नियम के विपरीत तो कोई कभी गया नहीं है। तुझे अगर प्रेम है तो तू फिर से सोचकर आ। सात दिन बाद वह आया और उसने कहा कि क्षमा करें, प्रेम मुझे नहीं है; सिर्फ वासना थी। प्रेम का मैंने नाम दिया था।
वासना तो स्वीकार हो जाती है—यह आश्चर्य है, चमत्कार है। जब प्रेम अस्वीकार होगा, तो चमत्कार होगा। वैसा चमत्कार कभी हुआ नहीं।
और मेरे प्रेम में जो पड़ते हैं.. मेरे प्रेम में पड़कर तुम पा क्या सकते हो? सिर्फ खो सकते हो। मेरे प्रेम में पड़कर तुम्हें मिलेगा क्या? मिटोगे। मेरे प्रेम में पड़कर तुम विसर्जित होओगे, विलीन होओगे।
तो मुझसे तो प्रेम बन ही नहीं सकता, अगर तुम्हारी कोई भी मांग हो, कोई भी कामना हो। मुझसे प्रेम का अर्थ तो प्रार्थना ही है।

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