Tuesday 7 July 2015

प्रेम हो तो छिपाए भी नहीं छिपता; और प्रेम न हो तो कितना ही बताओ, बताया नहीं जा सकता।
प्रेम के होने में ही उसकी अभिव्यक्ति है। जैसे सूरज निकलता है, तब सूरज के होने का और क्या प्रमाण चाहिए? सूरज का होना ही काफी प्रमाण है।
प्रेम की रोशनी सूरज से भी ज्यादा है; तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती, क्योंकि सूरज को देखने के लिए तो तुम्हारे पास आंख है, प्रेम को देखने के लिए तुम्हारे पास आंख नहीं। प्रेम हो तो छिपाए नहीं छिपता। प्रेम का होना इस जगत में सबसे सघनीभूत घटना है; उससे ज्यादा सूक्ष्म कुछ भी नहीं है, उससे ज्यादा विराट भी कुछ नहीं है। प्रेम यानी परमात्मा की झलक।
इसीलिए तो जिससे तुम्हें प्रेम हो जाए, उसमें परमात्मा दिखाई पड़ने लगता है। अगर तुम्हें अपने प्रेमी में परमात्मा न दिखाई पड़े तो प्रेम हुआ ही नहीं, कुछ और—हुआ होगा; तुमने कुछ और समझ लिया। जहां भी प्रेम हो, वहां परमात्मा दिखाई पड़ना शुरू हो जाता है। प्रेम की आंख हो तो परमात्मा पैदा हो जाता है।
और जीवन जुड़ा है। हर चीज एक—दूसरे से जुड़ी है। घास का पौधा भी चांद—तारों से जुड़ा है। घास का पौधा भी कंपता है तो चांद—तारे कैप जाते हैं। सब कुछ संयुक्त है।
उपनिषदों ने कहा है, यह सृष्टि ऐसे है, यह विश्व ऐसे है, जैसे मकड़ी का जाल। एक कोने से मकड़ी के जाल को जरा सा हिलाओ, पूरा जाल हिल जाता है, दूर—दूर तक के कोने हिल जाते हैं।
यह कायनात का आहंग है कि सहरे—हयात
चटक कली की सितारों को गुदगुदाती है
चटक कली की सितारों को गुदगुदाती है—छोटी सी कली! पर दूर के बड़े—बड़े सितारे भी छोटी कली के खिलने से खिल जाते हैं।
तुम अगर मेरे प्रेम में हो तो तुम इसकी फिक्र छोड़ दो कि मुझे पता चलेगा कि नहीं; चल ही जाएगा। मेरे पास प्रेम को देखने की आंख है। तुम्हें बताने की जरूरत भी न पड़ेगी। तुम्हें यह न कहना पड़ेगा कि तुम्हें प्रेम है।
तुम्हारी उलझन भी मैं समझता हूं क्योंकि तुम्हारे पास अभी प्रेम की आंख नहीं, तो तुम डरते हो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे भीतर प्रेम हो और मुझे पता भी न चले। तुम्हारे भय को मैं समझता हूं। तुम्हारे भय से मेरी सहानुभूति है, लेकिन इसकी तुम चिंता ही छोड़ दो। तुम्हें प्रेम है तो मुझे पता चल ही जाएगा। तुम सिर्फ प्रेम में डूबने की फिक्र करो। ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि प्रेम हो और पता न चले।
लेकिन साधारणत: हमें प्रेम को जतलाना पड़ता है, बतलाना पड़ता है। प्रेमी एक—दूसरे से कहते नहीं थकते कि मुझे तुमसे प्रेम है; मुझे तुमसे प्रेम है। यह सिर्फ इस बात की खबर है कि उन्हें डर है कि कहीं ऐसा तो न होगा कि हम यहा जलते ही रहें और दूसरी तरफ पता ही न चले! इधर हम मरते ही रहें और दूसरी तरफ खबर भी न हो!
पर ऐसा कभी हुआ ही नहीं। ऐसा कभी होता ही नहीं। प्रेम इतनी बड़ी घटना है, छिपाए नहीं छिपती। तुम्हारा रोआं—रोआं कहने लगता है, तुम्हारे होने का ढंग कहने लगता है। तुम उठते और ढंग से हो, तुम बोलते और ढंग से हो, तुम्हारी आंखें बदल जाती हैं, तुम्हारे चेहरे की आभा बदल जाती है। प्रेम इतने विराट का उतर आना है तुममें कि तुम्हारी सारी सीमाएं डावाडोल हो जाती हैं। तुम एक मस्ती से भरकर चलते हो, जैसे शराबी चलता है।
और जिसने प्रेम की शराब पी ली, फिर उसे शराब की जरूरत नहीं रह जाती 1 शराब की जरूरत ही इसलिए पड़ती है कि कहीं प्रेम की शराब से चूकना हो गया है। दुनिया में शराब बढ़ती चली जाती है, क्योंकि प्रेम घटता चला जाता है। मस्ती तो चाहिए ही; एक बेखुदी तो चाहिए ही; अन्यथा आदमी जीए कैसे, किस सहारे जीए? कुछ भीतर लबालब, कुछ भरापन तो चाहिए ही; अन्यथा आदमी जीए किसलिए? किस कारण जीए? एक मस्ती तो चाहिए ही; अन्यथा चलना बोझ हो जाता है, उठना बोझ हो जाता है। किसलिए उठो? क्या प्रयोजन है?
जीवन एक सौभाग्य नहीं मालूम होता प्रेम के बिना, जीवन एक दुर्भाग्य बन जाता है। तब लोग जीवन को घसीटते हैं। तब जीवन तुम्हारे साथ लंगड़ाता है। तब जीवन का आशीर्वाद तुम्हें उपलब्ध नहीं होता, उलटे ऐसा लगता है कि किस दुष्ट परमात्मा ने यह मजाक की!
फियोदोर दोस्तोवस्की का प्रसिद्ध उपन्यास है ब्रदर्स कर्माझोव। अनूठा! अपने तरह का अकेला! विश्व—साहित्य में फिर वैसी दूसरी कोई कृति नहीं। उसमें एक नास्तिक पात्र है, जो जीवन से ऐसा उदास, इतना बुझा—बुझा हो गया है कि वह एक दिन परमात्मा की तरफ, आकाश की तरफ आंख उठाकर कहता है कि मुझे तुझमें भरोसा तो नहीं; मैं जानता तो नहीं कि तू है, लेकिन अगर कहीं तू हो और मुझे मिल जाए तो मैं यह जीवन तुझे वापस लौटाना चाहता हूं। यह जो तूने मुझे जीवन में प्रवेश का अधिकार दिया, यह तू वापस ले ले। न होना भला इस होने से।
प्रेम के बिना होने से न होना भला हो जाता है। और अगर प्रेम हो तो न होना भी एक गहन होने को अपने भीतर समा लेता है। होने की तो बात ही छोड़ो, न होना भी सुखद हो जाता है। होना तो परिपूर्ण आनंद हो जाता है, न होना भी सौभाग्यपूर्ण हो जाता है।
प्रेम जीवन की ज्योति है। प्रेम के बिना घर ऐसे है, जैसे दीया बुझ गया हो और अंधेरा घर! प्रेम के बिना जीवन ऐसे है, जैसे वीणा के तार टूट गए हों, संगीत से खाली और शून्य वीणा! प्रेम के बिना जीवन ऐसा है, जैसे वृक्ष तो हो और फूल न आए हों और फूलों ने आने से इनकार कर दिया हो—बांझ वृक्ष! प्रेम जीवन को भरता है। प्रेम के बिना जीवन की प्याली खाली है; प्रेम हो तो भर जाती है।
और जब तक प्रेम न हो, तब तक तुम्हें लगता ही रहेगा—खाली….खाली… खाली.! एक उदासी, एक संताप, एक चिंता, व्यर्थ की भागदौड़! कहीं कोई सार नहीं, कहीं कोई अर्थ नहीं, कहीं कोई लय नहीं। जैसे किसी ने मजाक किया हो; जैसे परमात्मा शुभ न हो, शैतान हो; जैसे उसने मजाक किया हो, तुम्हें सताने के लिए पैदा किया हो; कि तुम किलबिलाओ, कि तुम परेशान होओ, कि तुम पीड़ित होओ और वह दुष्ट आततायी ऊपर से बैठकर इस खेल को देखे!
प्रेम जैसे ही तुम्हें छूता है—जैसे सुबह की ठंडी हवा आ जाए, पुलक—पुलक ताजा हो जाए; जैसे रात चांद उग आए, सब तरफ चांदी फैल जाए।

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