Thursday 2 July 2015

जीवन क्या है, मनुष्य इसे भी नहीं जानता है। और जीवन को ही हम न जान सकें, तो मृत्यु को जानने की तो कोई संभावना ही शेष नहीं रह जाती। जीवन ही अपरिचित और अज्ञात हो, तो मृत्यु परिचित और ज्ञात नहीं हो सकती है। सच तो यह है कि चूंकि हमें जीवन का पता नहीं, इसलिए ही मृत्यु घटित होती प्रतीत होती है। जो जीवन को जानते ‘हैं, उनके लिए मृत्यु एक असंभव शब्द है, जो न कभी घटा, न घटता है, न घट सकता है। जगत में कुछ शब्द बिलकुल ही झूठे हैं, उन शब्दों में कुछ भी सत्य नहीं है। उन्हीं शब्दों में मृत्यु भी एक शब्द है, जो नितांत असत्य है। मृत्यु जैसी घटना कहीं भी नहीं घटती। लेकिन हम लोगों को तो रोज मरते देखते हैं, चारों तरफ रोज मृत्यु घटती हुई मालूम होती है। गांव—गांव में मरमट हैं। और ठीक से हम समझें तो ज्ञात होगा कि जहां—जहां हम खड़े हैं, वहां —वहां न मालूम कितने मनुष्यों की अर्थी जल चुकी है। जहां हम निवास बनाए हुए हैं, उस भूमि के सभी स्थल मरघट रह चुके हैं।
करोड़ों —करोड़ों लोग मरे हैं, रोज मर रहे हैं, और अगर मैं यह कहूं कि मृत्यु जैसा झूठा शब्द नहीं है मनुष्य की भाषा में, तो आश्चर्य होगा। एक फकीर था तिब्बत में मारपा। उस फकीर के पास कोई गया और पूछने लगा कि मैं जीवन और मृत्यु के संबंध में कुछ पूछने आया हूं। मारपा बहुत हंसने लगा और उसने कहा, अगर जीवन के संबंध में पूछना हो, तो जरूर पूछो, क्योंकि जीवन का मुझे पता है। रही मृत्यु, तो मृत्यु से आज तक मेरा कोई मिलना नहीं हुआ, मेरी कोई पहचान नहीं है। मृत्यु के संबंध में पूछना हो, तो उनसे पूछो जो मरे ही हुए हैं या मर चुके हैं। मैं तो जीवन हूं मैं जीवन के संबंध में बोल सकता हूं, बता सकता हूं। मृत्यु से मेरा कोई परिचय नहीं।
यह बात वैसी ही है जैसी आपने सुनी होगी कि एक बार अंधकार ने भगवान से जाकर प्रार्थना की थी कि यह सूरज तुम्हारा, मेरे पीछे बहुत बुरी तरह पड़ा हुआ है। मैं बहुत थक गया हूं। सुबह से मेरा पीछा होता है और सांझ मुश्किल से मुझे छोड़ा जाता है। मेरा कसूर क्या है? दुश्मनी कैसी है यह? यह सूरज क्यों मुझे सताने के लिए मेरे पीछे दिन —रात दौड़ता रहता है? और रात भर में मैं दिन भर की थकान से विश्राम भी नहीं कर पाता हूं कि फिर सुबह सूरज द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है। फिर भागो! फिर बची! यह अनंत काल से चल रहा है। अब मेरी धैर्य की सीमा आ गई और मैं प्रार्थना करता हूं? इस सूरज को समझा दें।
सुनते हैं, भगवान ने सूरज को बुलाया और कहा कि तुम अंधेरे के पीछे क्यों पड़े हो? क्या बिगाड़ा है अंधेरे ने तुम्हारा? क्या है शत्रुता? क्या है शिकायत? सूरज कहने लगा, अंधेरा! अनंत काल हो गया मुझे विश्व का परिभ्रमण करते हुए, लेकिन अब तक अंधेरे से मेरी कोई मुलाकात नहीं’ हुई। अंधेरे को मैं जानता ही नहीं। कहां है अंधेरा? आप उसे मेरे सामने बुला दें, तो मैं क्षमा भी मांग लूं और आगे के लिए पहचान लूं कि वह कौन है ताकि उसके प्रति कोई भूल न हो सके।
इस बात को हुए भी अनंत काल हो गए। भगवान की फाइल में यह बात वहीं की वहीं पड़ी है। वह अब तक अंधेरे को सूरज के सामने नहीं बुला सके हैं। नहीं बुला सकेंगे। यह मामला हल नहीं होने का है। सूरज के सामने अंधकार कैसे बुलाया जा सकता है? अंधकार की कोई सत्ता ही नहीं है, कोई एग्झिस्टेंस नहीं है। अंधकार की कोई पॉजिटिव, कोई विधायक स्थिति नहीं है। अंधकार तो सिर्फ प्रकाश के अभाव का नाम है। वह तो प्रकाश की गैर मौजूदगी है, वह तो एबसेस है, वह तो अनुपस्थिति है। तो सूरज के सामने ही सूरज की अनुपस्थिति को कैसे बुलाया जा सकता है?
नहीं! अंधकार को सूरज के सामने नहीं लाया जा सकता है। सूरज तो बहुत बड़ा है, एक छोटे से दीये के सामने भी अंधकार को लाना मुश्किल है। दीये के प्रकाश के घेरे में अंधकार का प्रवेश मुश्किल है। दीये के सामने मुठभेड़ मुश्किल है। प्रकाश है जहां, वहां अंधकार कैसे आ सकता है! जीवन है जहां, वहां मृत्यु कैसे आ सकती है! या तो जीवन है ही नहीं, और या फिर मृत्यु नहीं है। दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।
हम जीवित हैं, लेकिन हमें पता नहीं कि जीवन क्या है। इस अज्ञान के कारण ही हमें ज्ञात होता है कि मृत्यु भी घटती है। मृत्यु एक अज्ञान है। जीवन का अज्ञान ही मृत्यु की घटना बन जाती है। काश! हम उस जीवन से परिचित हो सकें जो भीतर है, तो उसके परिचय की एक किरण भी सदा—सदा के लिए इस अज्ञान को तोड़ देती है कि मैं मर सकता हूं, या कभी मरा हूं, या कभी मर जाऊंगा। लेकिन उस प्रकाश को हम जानते नहीं हैं जो हम हैं, और उस अंधकार से हम भयभीत होते हैं जो हम नहीं हैं। उस प्रकाश से हम परिचित नहीं हो पाते जो हमारा प्राण है, जो हमारा जीवन है, जो हमारी सत्ता है; और उस अंधकार से हम भयभीत होते हैं, जो हम नहीं हैं।
मनुष्य मृत्यु नहीं है, मनुष्य अमृत है। समस्त जीवन अमृत है। लेकिन हम अमृत की ओर आख ही नहीं उठाते हैं। हम जीवन की तरफ, जीवन की दिशा में कोई खोज ही नहीं करते हैं, एक कदम भी नहीं उठाते। जीवन से रह जाते हैं अपरिचित और इसलिए मृत्यु से भयभीत प्रतीत होते हैं। इसलिए प्रश्न जीवन और मृत्यु का नहीं है, प्रश्न है सिर्फ जीवन का।

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