Monday 7 September 2015

मनुष्य की संवेदहीन्ता के कारण क्या हैं? और उन्हें कैसे दूर किया जाए?
बच्चा जब जन्म लेता है, तो बच्चा असहाय होता है; खासकर मनुष्य का बच्चा तो पूर्णत: असहाय होता है। उसे जीवित रहने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह निर्भरता एक सौदा है। इस सौदे में बच्चे को अनेक चीजें देनी पड़ती हैं। संवेदनशीलता उनमें से एक है।
बच्चा बहुत संवेदनशील होता है। उसका पूरा शरीर संवेदनशील होता है। लेकिन वह असहाय है, वह स्वतंत्र नहीं है। वह मां—बाप पर, परिवार पर, समाज पर निर्भर है। उसे पराधीन रहना है। इस पराधीनता और असहायपन के कारण उसके मां—बाप, परिवार उस पर बहुत सी चीजें लादते हैं और उसे उनके सामने झुकना पड़ता है। अन्यथा वह जीवित नहीं रह सकता; वह मर जाएगा। इसलिए उसे बहुत सी चीजें बदले में खोनी होती हैं। उनमें से सबसे गहरी और महत्वपूर्ण चीज संवेदनशीलता है। वह अपनी संवेदनशीलता खो देता है। क्यों?
क्योंकि बच्चा जितना संवेदनशील होता है वह उतने कष्ट में पड़ता है, वह उतना ही नाजुक और असुरक्षित होता है। छोटी सी उत्तेजना और वह रोने लगता है। यह रोना मां—बाप बंद कराना चाहते हैं, लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते। लेकिन अगर बच्चा हर उत्तेजना को जीता जाए तो वह परिवार के लिए उपद्रव बन जाता है। और बच्चे उपद्रव बन ही जाते हैं। फलत: मां—बाप को बच्चे की संवेदनशीलता को घटाना पड़ता है। बच्चे को प्रतिरोध सीखना पड़ता है। बच्चे को नियंत्रण सीखना पड़ता है। धीरे— धीरे बच्चे का मन दो टुकड़ों में बंट जाता है। तब वह अनेक उत्तेजनाओं को महसूस करना छोड़ देता है, क्योंकि वे उत्तेजनाएं अच्छी नहीं मानी जाती हैं। उनके लिए उसे सजा मिलती है।
बच्चे का पूरा शरीर कामुक होता है। वह अपनी अंगुलियों को चूसता है। वह अपने पूरे शरीर से आनंद लेता है। उसका पूरा शरीर कामुक है, वह अपने पूरे शरीर की छानबीन करता है। यह उसके लिए बड़ी बात है। लेकिन इस छानबीन में एक क्षण आता है जब बच्चा अपनी जननेंद्रिय पर पहुंच जाता है और तब वह एक समस्या बन जाती है। समस्या इसलिए खड़ी होती है कि उसके मां—बाप दमित लोग हैं। जिस क्षण बच्चा अपनी जननेंद्रिय को छूता है, मां—बाप छ होने लगते है।
यह बात गहराई से देखने की है। मां—बाप की मुद्रा जैसे ही बदलती है, बच्चे उसे भांप लेते हैं। उन्हें लगता है कि कुछ भूल हो गई। मां—बाप चिल्लाकर कहते हैं, उसे छुओ मत! तब बच्चे को लगता है कि जननेंद्रिय कोई बुरी चीज है और उसे दबाना जरूरी है। और जननेंद्रिय शरीर का सबसे नाजुक, सबसे जीवंत और सबसे संवेदनशील अंग है। और जब बच्चे को जननेंद्रिय को छूने और उसका आनंद लेने से रोक दिया जाता है तो उसकी संवेदनशीलता का स्रोत ही नष्ट हो जाता है।
यह बच्चा संवेदनहीन हो जाएगा। और वह ज्यों—ज्यों बड़ा होगा, उसकी संवेदनहीनता भी बढ़ती जाएगी। इस सौदे में पहली बलि संवेदनशीलता की चढ़ती है। यह सौदा जरूरी है—लेकिन उतना ही बुरा। और जब तुम्हें यह समझ में आने लगे तो सौदे को रह कर संवेदनशीलता को फिर से प्राप्त करना चाहिए।
इस सौदे का एक दूसरा भी कारण है, वह सुरक्षा है।
मैं कई वर्षों तक एक मित्र के साथ उनके घर में रहता था। पहले ही दिन मैंने देखा कि वे अपने नौकर को देखने से कतराते हैं। वे धनी आदमी हैं, लेकिन वे कभी अपने नौकर की तरफ आंखें नहीं उठाते हैं। वैसे ही वे अपने बच्चों को नहीं देखते हैं। वे दौड़ते हुए अपने बंगले में प्रवेश करते थे और वैसे ही बाहर जाते समय दौड़कर बंगले से निकलते थे और कार में घुस जाते थे।
एक दिन मैंने उनसे पूछा कि बात क्या है? उन्होंने कहा कि अगर नौकरों की तरफ देखूं तो वे सोचते हैं कि मेरा रुख दोस्ताना है और वे तुरंत पैसों की या इस—उस चीज की मांग कर बैठते हैं। वही अड़चन बच्चों से बात करने में है। तब तुम उनके मालिक नहीं रह जाते हो। तब तुम उनका नियंत्रण नहीं कर सकते हो।
इस आदमी ने अपने चारों तरफ संवेदनहीनता का जाल खड़ा कर लिया है। उसे डर है कि नौकर से बात करने पर, उसके साथ सहानुभूति दिखाने पर, उसे कुछ धन या और कुछ देना पड़ेगा। ऐसे हर आदमी देर— अबेर सीख जाता है कि संवेदनशील होना उपद्रव में पड़ना है। तो तुम अपने चारों ओर एक अवरोध खड़ा कर लेते हो, एक सुरक्षा की दीवार बना लेते हो। फिर तुम आसानी से बाहर सड़क पर निकल सकते हो। वहां भिखमंगे भीख मांग रहे हैं और दरिद्रों की झोपड़पट्टियां खड़ी हैं। लेकिन अब तुम्हें उन्हें देखकर कोई भाव नहीं उठता है। सच तो यह है कि तुम उन्हें देखते ही नहीं।
इस कुरूप समाज में आदमी को अपने चारों तरफ एक सूक्ष्म दीवार खड़ी करनी पड़ती है, जहां वह छिपा रहे। अन्यथा खुला रहने पर खतरा है, तब जीवित रहना ही मुश्किल हो जाएगा। संवेदनहीनता का एक बड़ा कारण यह है।
संवेदनहीनता तुम्हें इस कुरूप दुनिया में चैन से जीने की सुविधा जुटाती है, लेकिन इसके लिए तुम्हें बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है। यह सौदा बड़ा महंगा है। इस दुनिया में तो तुम शांति से रह लेते हो, लेकिन परमात्मा में, समग्र में तुम प्रवेश करने से वंचित रह जाते हो। तुम्हारा यह जगत तो सम्हल जाता है, लेकिन तुम्हारा दूसरा जगत खो जाता है। इस जगत के लिए संवेदनहीनता भली है और उस जगत के लिए संवेदनशीलता शुभ है।
अगर तुम सच में उस जगत में उत्सुक हो तो संवेदनशीलता को फिर जगाना जरूरी है। और उसके लिए सुरक्षा की दीवारों को तोड़ना होगा। निश्चित ही, तुम असुरक्षित हो जाओगे। तुम्हें बहुत दुख झेलना पड़ सकता है। लेकिन यह दुख उस आनंद के सामने कुछ नहीं है जो संवेदनशीलता के जरिए हासिल होता है। तुम जितने संवेदनशील हो जाओगे तुममें उतनी ही करुणा का उद्वेग होगा।
लेकिन तुम्हें पीड़ा भी होगी, क्योंकि तुम्हारे चारों तरफ नरक फैला है। चूकि अभी तुम बंद हो इसलिए उसका अहसास नहीं होता है। एक बार खुल जाओगे तो दोनों के प्रति खुल जाओगे—इस दुनिया के नरक के प्रति और उस दुनिया के स्वर्ग के प्रति। तुम दोनों की ओर खुल जाओगे। और यह असंभव है कि कोई एक छोर पर बंद रहे और दूसरे छोर पर खुला। सच तो यह है कि या तो तुम बंद रह सकते हो या खुले। बंद रहने की हालत में दोनों ओर ही बंद रहना होगा, और खुलने की हालत में दोनों ओर खुला रहना पड़ेगा।
स्मरण रखो, बुद्ध आनंद से भरे हैं तो दुख से भी भरे हैं। पर उनका यह दुख अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए है। स्वयं तो वे प्रगाढ़ आनंद में हैं, लेकिन दूसरों के लिए दुखी हैं।
महायान बौद्ध कहते हैं कि जब बुद्ध निर्वाण के द्वार पर पहुंचे तो द्वारपाल ने द्वार खोल दिया, लेकिन बुद्ध ने भीतर प्रवेश करने से इनकार कर दिया। यह एक पौराणिक कथा है, लेकिन बहुत सुंदर है। द्वारपाल ने द्वार खोला, लेकिन बुद्ध ने प्रवेश करने से इनकार कर दिया। द्वारपाल ने कहा कि आप भीतर क्यों नहीं जाते हैं! सदियों—सदियों से हम आपकी प्रतीक्षा करते रहे हैं। रोज सुनते थे कि बुद्ध आ रहे हैं, बुद्ध आ रहे हैं। सारा स्वर्ग आपके लिए पलकें बिछाए है। आप प्रवेश करें! आपका स्वागत है! बुद्ध ने कहा कि जब तक प्रत्येक मनुष्य इस द्वार के भीतर प्रवेश नहीं करता तब तक मैं नहीं प्रवेश करूंगा। मैं यहीं प्रतीक्षा करूंगा। जब तक एक भी मनुष्य बाहर है तब तक स्वर्ग मेरे लिए नहीं है।
बुद्ध दूसरों के लिए दुखी हैं, अपने लिए प्रगाढ़ आनंद में हैं। इस समांतर घटना को देखते हो? तुम स्वयं दुख में हो, गहरे दुख में हो और सोचते हो कि सभी दूसरे जीवन के मजे ले रहे हैं। बुद्ध के साथ ठीक उलटा घटित हुआ है। वे स्वयं प्रगाढ़ आनंद में हैं और जानते हैं कि दूसरे दुखी हैं।
ये विधियां संवेदनहीनता को दूर करने की विधियां हैं। इसे कैसे दूर किया जाए, इस पर हम और भी चर्चा करेंगे।

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