Tuesday 1 September 2015

न केंद्रों के संबंध में समझने की बुनियादी बात यह है कि जब तुम भीतर केंद्रित होते हो, जिस क्षण केंद्रित होते हो और जहां भी केंद्रित होते हो, तभी तुम नाभि—केंद्र में उतर जाते हो। अगर तुम हृदय में केंद्रित होते हो तो हृदय अप्रासंगिक है, केंद्रित होना अर्थपूर्ण है। अगर तुम तीसरी आंख में केंद्रित होते हो तो तीसरी आंख बुनियादी बात नहीं है, बुनियादी बात है कि तुम्हारी चेतना केंद्रित हुई। इसलिए जो भी केंद्रित होने का बिंदु हो, अगर एक बार तुम केंद्रित हो गए तो तुम नाभि—केंद्र में उतर जाओगे।
अस्तित्वगत रूप से नाभि बुनियादी केंद्र है। लेकिन तुम्हारा क्रियात्मक केंद्र कहीं भी हो सकता है। तुम अपने आप उस केंद्र से नाभि—केंद्र में उतर जाओगे। इसके संबंध में सोचने की जरूरत नहीं है। और यह बात न सिर्फ हृदय—केंद्र या त्रिनेत्र—केंद्र के लिए सही है, अगर तुम बुद्धि या सिर में भी केंद्रित हो गए तो वहां से भी तुम नाभि—केंद्र में ही उतरोगे। केंद्रित होना असली बात है।
लेकिन बुद्धि में केंद्रित होना कठिन है। उसकी अपनी समस्याएं हैं। हृदय—केंद्र प्रेम, श्रद्धा और समर्पण पर निर्भर है। सिर संदेह और नकार पर निर्भर है। समग्रता से इनकार करना असंभव है, समग्रता से संदेह करना भी असंभव है। लेकिन कभी—कभार ऐसा हुआ है, क्योंकि कभी—कभार असंभव भी संभव होता है। किसी समय तुम्हारा संदेह ऐसी तीव्रता को उपलब्ध होता है कि विश्वास करने योग्य कुछ भी नहीं बचता, संदेह करने वाला मन भी विश्वास योग्य नहीं रहता। जब संदेह को स्वयं पर संदेह होने लगता है और सब कुछ संदेह में बदल जाता है, उस हालत में भी तुम तुरंत नाभि—केंद्र में उतर जाओगे।
लेकिन यह घटना बहुत दुर्लभ है। श्रद्धा सरल है। समग्रता से संदेह करने की बजाय समग्रता से श्रद्धा करना आसान है। तुम नहीं कहने की बजाय ही आसानी से कह सकते हो।
इसलिए अगर तुम सिर में भी केंद्रित हो तो केंद्रित होना बुनियादी बात है, तुम वहां से भी अपने अस्तित्वगत मूल में उतर जाओगे। इसलिए कहीं भी केंद्रित होओ। मेरुदंड से काम चलेगा, हृदय से काम चलेगा, सिर से भी काम चलेगा। या तुम अपने शरीर में दूसरे केंद्र भी ढूंढ ले सकते हो।
बौद्ध नौ चक्रों की बात करते हैं। हिंदू सात चक्रों की बात करते हैं। तिब्बती तेरह चक्रों की बात करते हैं। तुम अपना चक्र या केंद्र खोज ले सकते हो। इनके बारे में अध्ययन करने की जरूरत नहीं है। शरीर का कोई भी बिंदु केंद्रित होने का बिंदु बनाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, तंत्र काम—केंद्र को इसके लिए उपयोग करता है। तंत्र तुम्हारी चेतना को समग्रता से इस केंद्र पर लाने के लिए प्रयत्न करता है। तो काम—केंद्र से भी चलेगा। ताओवादी पांव के अंगूठे से केंद्र का काम लेते हैं। अपनी चेतना को पांव के अंगूठे पर ले जाओ, वहां स्थित रहो और शेष शरीर को भूल जाओ। पूरी चेतना को अंगूठे पर जमा कर दो। उससे भी चलेगा। क्योंकि यह बात प्रासंगिक नहीं है कि तुम कहां केंद्रित हो रहे हो, बुनियादी बात यह है कि तुम केंद्रित हो रहे हो।
स्मरण रहे कि घटना केंद्रित होने के कारण घटती है, केंद्र के कारण नहीं। केंद्र महत्व का नहीं है, केंद्रित होना महत्व का है। हम जिन एक सौ बारह विधियों की चर्चा करने जा रहे हैं उनमें अनेक—अनेक केंद्र उपयोग में आने वाले हैं, उससे हैरान मत होना, घबराना मत। इस फिक्र में मत लग जाना कि कौन केंद्र महत्व का है, कौन असली है। कोई भी केंद्र चलेगा। तुम अपनी पसंद का चुन लेना।
अगर तुम्हारा चित्त बहुत कामुक है तो काम—केंद्र को चुनना अच्छा रहेगा। उसका उपयोग करो, क्योंकि तुम्हारी चेतना सहज उसकी ओर प्रवाहित हो रही है। तब उसे ही चुनना बेहतर है। लेकिन काम—केंद्र को चुनना कठिन हो गया है। वह सबसे ज्यादा स्वाभाविक केंद्र है, उसकी ओर तुम्हारी चेतना जैविक रूप से आकर्षित होती है। फिर क्यों न इस जैविक ऊर्जा को आंतरिक रूपांतरण के लिए उपयोग में लाओ? उसे अपने केंद्रित होने का बिंदु बना लो। लेकिन सामाजिक संस्कार, काम—दमन की शिक्षा, नैतिक उपदेश, इन चीजों ने मिल कर बहुत नुकसान किया है। नतीजा यह हुआ है कि तुम अपने काम—केंद्र से विच्छिन्न हो गए हो, कट गए हो। सच तो यह है कि हमारे मन में जो हमारी असली छवि है उसमें काम—केंद्र है ही नहीं। तुम कल्पना में अपने शरीर को देखो, तुम जननेंद्रिय को उसके बाहर छोड़ दोगे।
यही कारण है कि अनेक लोग समझते हैं कि उनकी जननेंद्रिय उनसे पृथक है, उनका हिस्सा नहीं है। और यही कारण है कि उसके संबंध में इतनी गोपनीयता है, इतनी छिपाव है। अगर किसी दूसरे ग्रह का वासी यहां आए और तुम्हें देखे तो उसे सोचना मुश्किल होगा कि तुम्हारा कोई काम—केंद्र भी है। अगर वह तुम्हारी बातचीत सुने तो उसे समझना कठिन होगा कि तुम्हारे जीवन में कामवासना भी है। वह तुम्हारे समाज में घूमे, तुम्हारे औपचारिक संसार में, तो उसे पता भी नहीं चलेगा कि यहां सेक्स भी है।
हमने भेद खड़ा कर लिया है, अवरोध खड़ा कर लिया है, हमने अपने से काम—केंद्र को अलग किया हुआ है। कामवासना के कारण ही हमने शरीर को दो हिस्सों में बांट रखा है। ऊपरी भाग हमारे मन में ऊंचा माना जाता है और निचला भाग नीचा माना जाता है। नीचे का अंग निंदित है। उसे निचला अंग कहकर हम केवल यह सूचना नहीं देते कि वह निम्न स्थिति है, हम उसका मूल्यांकन भी करते हैं। तुम स्वयं नहीं मानते कि नीचे का शरीर तुम हो।
अगर कोई तुमसे पूछे कि तुम अपने शरीर में कहं। हो, तो तुम अपने सिर की तरफ उदगम की अंगुली उठाओगे, क्योंकि वह सबसे ऊंचा है। इसी. वजह से भारत के ब्राह्मण कहते हें कि हम खोज मैं अंग तुम्हारे अंग हैं, तुम नहीं हो।
इसी विभाजन के लिए हमने अपनी पोशाक के भी दो हिस्से किए हैं, एक ऊपरी शरीर के लिए और दूसरा निचले शरीर के लिए। यह एक सूक्ष्म विभाजन है। और इसमें निचला शरीर तुम्हारा अंग नहीं रह जाता है। वह बस तुममें लटका हुआ है—यह दूसरी बात है।
यही कारण है कि काम—केंद्र को केंद्रित होने के लिए उपयोग में लाना कठिन है। लेकिन अगर तुम उसका उपयोग कर सको तो वह सबसे उत्तम है। क्यों? क्योंकि जैविक रूप से तुम्हारी ऊर्जा उसी केंद्र की ओर प्रवाहित है।
तो जब तुम्हें कामवासना महसूस हो, अपनी आंखें बंद कर लो और भाव करो कि तुम्हारी ऊर्जा काम—केंद्र की ओर बह रही है। उसे अपना ध्यान बना लो। अपने को काम—केंद्र में केंद्रित अनुभव करो। तब अचानक तुम ऊर्जा की गुणवत्ता में बदलाहट पाओगे। तब कामुकता विसर्जित हो जाएगी और काम—केंद्र ज्योतित हो उठेगा, ऊर्जा से भर जाएगा, जीवंत हो उठेगा। और इसी केंद्र पर तुम्हें तुम्हारा जीवन अपने शिखर पर अनुभव होगा।
तुम अगर सच में केंद्रित हुए तो उस क्षण कामवासना बिलकुल भूल जाएगी और तुम्हारी ऊर्जा काम—केंद्र से चलकर तुम्हारे पूरे शरीर में प्रवाहित होने लगेगी, यहां तक कि शरीर के पार जाकर पूरे ब्रह्मांड में फैलने लगेगी। और अगर तुम काम—केंद्र पर समग्रता से केंद्रित हो तो तुम अचानक अपने मूल स्रोत नाभि—केंद्र में उतर जाओगे।
तंत्र ने काम—केंद्र का उपयोग किया है। और मैं समझता हूं कि मनुष्य के रूपांतरण के लिए तंत्र सर्वाधिक वैज्ञानिक मार्ग है। यह इसलिए कि कामवासना का उपयोग वैज्ञानिक है। जब मन अपने आप ही उसकी ओर बह रहा है तो क्यों न इस स्वाभाविक प्रवाह को वाहन के रूप में काम में लाया जाए।
तंत्र और नीतिवादी शिक्षा में यही बुनियादी भेद है। नीतिवादी शिक्षक काम—केंद्र को रूपांतरण के लिए उपयोग में नहीं ला सकते, क्योंकि वे भयभीत हैं। और जो काम—ऊर्जा से डरा हुआ है उसे अपने को रूपांतरित करना बहुत—बहुत कठिन होगा। क्योंकि वह नाहक धारा से लड़ रहा है, नदी के विपरीत तैर रहा है।
नदी के साथ बहना आसान है, बहो। और अगर तुम किसी संघर्ष के बिना बह सकते हो तो तुम इस केंद्र का उपयोग करो।
केंद्रित होने के लिए कोई भी केंद्र चलेगा। तुम अपने केंद्र भी निर्मित कर सकते हो। परंपरावादी होने की जरूरत नहीं है। सभी केंद्र उपाय हैं—केंद्रित होने के उपाय। और जब तुम केंद्रित हो जाओगे, तुम अपने ही आप नाभि—केंद्र पर सरककर पहुंच जाओगे। केंद्रित चेतना अपने मूल स्रोत पर वापस पहुंच जाती है।

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