Monday 9 February 2015

मनुष्य के जीवन में जो भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, वह है समय। समय–जो दिखाई भी नहीं पड़ता। समय–जिसकी कोई परिभाषा भी नहीं की जा सकती है। समय–जो हमें जन्म से लेकर मृत्यु तक घेरे हुए है, वैसे जैसे मछली को सागर घेरे हुए है। लेकिन न जिसका हमें कोई स्पर्श होता है, न जो हमें दिखाई पड़ता है, न हम जिसका कोई स्वाद ही ले सकते हैं–हम निरंतर उसकी बात करते हैं। और कहीं गहरे में कुछ अनुभव भी होता है कि वह है। लेकिन जैसे ही पकड़ने जाते हैं परिभाषा में, हाथ से छूट जाता है।
समय भी ऐसे ही मनुष्य को घेरे हुए है। और जटिलता थोड़ी ज्यादा है। सागर के किनारे तो फेंकी जा सकती है मछली, समय के किनारे मनुष्य को फेंकना इतना आसान नहीं है। और मछली को तो कोई दूसरा मछुआ सागर के किनारे तो फेंक सकता है रेत में, आपको कोई दूसरा आदमी समय के किनारे रेत में नहीं फेंक सकता। आप ही चाहें तो फेंक सकते हैं। मछली खुद ही छलांग ले ले, तो ही किनारे पर पहुंच सकती है।
ध्यान समय के बाहर छलांग है।इसलिए ध्यानियों ने कहा है: ध्यान है कालातीत, बियांड टाइम।
ध्यानियों ने कहा है, जहां समय मिट जाता है, वहां समझना कि समाधि आ गई। जहां समय का कोई भी पता नहीं चलता, जहां न कोई अतीत है, न कोई भविष्य, न कोई वर्तमान; जहां समय की धारा नहीं है, जहां समय ठहर गया, टाइमलेस मोमेंट, समय-रहित क्षण आ गया–तब समझना कि ध्यान हो गया।
ध्यान और समय विपरीत हैं।अगर समय है सागर, तो ध्यान सागर से छलांग है।
और जटिलता है। और जटिलता यह है कि मछली सागर के बाहर तड़पती है, सागर में उसका जीवन है। और हम समय में तड़पते हैं, और समय के बाहर हमारा जीवन है। हम समय में तड़पते ही रहते हैं। समय के भीतर कोई आदमी तड़पन से मुक्त नहीं हो पाता है।
समय के भीतर दुख अनिवार्य है।समय में रहते हुए पीड़ा के बाहर जाने का कोई उपाय नहीं है। हां, एक उपाय है, वह धोखा है। और वह है बेहोश हो जाना। बेहोश होकर हम समय भूल जाते हैं, समय के बाहर नहीं होते हैं। जैसे मछली को बेहोशी का कोई इंजेक्शन दे दे, रहे सागर में ही। लेकिन सागर के बाहर जैसे ही हो जाएगी, क्योंकि बेहोश हो जाएगी। जिसका बोध ही नहीं है, उससे हम बाहर मालूम पड़ते हैं।
समय के भीतर जितनी पीड़ाएं हैं, उनका हल बेहोशी है। इसलिए नाराज मत होना लोगों पर, अगर कोई शराब पी रहा है। वह भी ध्यान की तलाश कर रहा है। कोई और मादकता में डूब रहा है–कोई संगीत में, कोई नृत्य में। कोई काम-वासना में लीन हो रहा है–वह भी मूर्च्छा खोज रहा है। वह यह कोशिश कर रहा है कि यह जो समय की पीड़ा का सागर है, इसके बाहर कैसे हो जाऊं?

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