Tuesday 10 February 2015

मनुष्य उससे ही नहीं बंधता जो करता है; उससे भी बंध जाता है जो करना चाहता है। किया या नहीं, इससे बहुत भेद नहीं पड़ता; करना चाहा था तो बंधन निर्मित हो जाता है। चोरी की या नहीं—अगर की तो अपराध हो जाता है, लेकिन न की हो तो भी पाप तो हो ही जाता है।
पाप और अपराध का यही भेद है। सोचा, तो पाप तो हो गया। कोई पकड़ नहीं सकेगा। कोई अदालत, कोई कानून तुम्हें अपराधी नहीं ठहरा सकेगा, अपने घर में बैठ कर तुम सोचते रहो—डाके डालना, चोरी करनी, हत्या करनी—कौन नहीं सोचता है!
विचार पर समाज का कोई अधिकार नहीं, जब तक कि विचार कृत्य न बन जाए। इस कारण तुम इस भांति में मत पड़ना कि विचार करने में कोई पाप नहीं; क्योंकि तुमने विचार किया, तो परमात्मा के समक्ष तो तुम पापी हो ही गए। तुमने सोचा—इतना काफी है; तुम तो पतित हो ही गए। विचार की तरंग उठी, न बनी कृत्य, इससे भेद नहीं पड़ता; लेकिन तुम्हारे भीतर तो मलिनता प्रविष्ट हो गई।
किया, तो अपराध बन जाता है; न किया, सोचा, तो भी पाप बन जाता है।तुमने देखा, जब तुम भीतर विचार करते हो क्रोध का, तो तुम्हारे लिए तो क्रोध घट ही गया! तुम तो उसी में उबल जाते हो। तुम तो जल जाते हो, तुम तो दग्ध हो जाते हो। फिर तुमने क्रोध किया है या नहीं किया, यह दूसरी बात है। भीतर— भीतर तो छाले पड़ गए, भीतर— भीतर तो घाव हो गए। वह तो क्रोध के भाव में ही हो गए। क्रोध में ही क्रोध का परिणाम है।
इसलिए परमात्मा को धोखा देने का उपाय नहीं है। उसने परिणाम को कारण से दूर नहीं रखा है। आग में हाथ डालो तो ऐसा नहीं कि इस जन्म में हाथ डालोगे और अगले जन्म में जलोगे; हाथ डाला कि जल गये।
यहां भी आदमी ने तरकीबें निकाली हैं। लोग कहते हैं : अभी करोगे, अगले जन्म में भरोगे। क्या मजे की बात कह रहे हैं! वे कह रहे हैं : अभी पाप करोगे, अगले जन्म में मिलेगा फल; इतनी तो अभी सुविधा है! कौन देख आया अगले जन्म की! और तब तक बीच में कुछ पुण्य कर लेंगे, बचने का कुछ उपाय कर लेंगे; पूजा, प्रार्थना, अर्चना कर लेंगे; पंडित, पुरोहित को नौकरी पर लगा देंगे; मंदिर बना देंगे, दान करेंगे, धर्मशाला बना देंगे—कुछ कर लेंगे! अभी तो होता नहीं!

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