जो कहता है, परमात्मा हो तो हम प्रार्थना करेंगे, वह आस्तिक नहीं, नास्तिक है। जो कहता है, प्रेम है, हम तो प्रेम करेंगे, वह आस्तिक है। वह जहा उसकी नजर पड़ेगी वहां हजार परमात्मा पैदा हो जाएंगे। प्रेम से भरी हुई आंख जहा पड़ेगी वहीं मंदिर निर्मित हो जाएंगे। जहां प्रेम से भरा हुआ हृदय धड़केगा, वहीं एक और नया काबा बन जाएगा, एक नई काशी पैदा होगी। क्योंकि जहा प्रेम है, वहां परमात्मा प्रगट हो जाता है।
प्रेम भरी आंख कण-कण में परमात्मा को देख लेती है। और तुम कहते हो, पहले परमात्मा हो तब हम प्रेम करेंगे। तो तुम्हारा प्रेम खुशामद होगी। तुम्हारा प्रेम-प्रेम न होगा, सिर का झुकना होगा-हृदय का बहना नहीं।
असली सवाल प्रेमपात्र का नहीं है, असली सवाल प्रेमपूर्ण हृदय का है। बुद्ध ने इस बात पर बड़ा अदभुत जोर दिया। इसलिए बुद्ध ने परमात्मा की बात नहीं की। और जितने लोगों को परमात्मा का दर्शन कराया, उतना किसी दूसरे व्यक्ति ने कभी नहीं कराया। ईश्वर को चर्चा के बाहर छोड़ दिया और लाखों लोगों को ईश्वरत्व दिया। भगवान की बात ही न की और संसार में भगवत्ता की बाढ़ ला दी। इसलिए बुद्ध जैसा अदभुत पुरुष मनुष्य के इतिहास में कभी हुआ नहीं। बात ही न उठाई परमात्मा की और न मालूम कितने हृदयों को झुका दिया।
और ध्यान रखना, बुद्ध के साथ सिर को झुकने का तो सवाल ही न रहा। न कोई भय का कारण है, न कोई परमात्मा है, न डरने की कोई वजह है। न परमात्मा से पाने का कोई लोभ है। मौज से झुकना है, आनंद से झुकना है। अपने ही अहोभाव से झुकना है, अनुग्रह से झुकना है।
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