Thursday 12 February 2015

जब भी तुम उत्सुक होते हो ध्यान में, तो तुम क्या करते हो? तुम अपने कृत्यों के जगत का एक छोटा-सा कोना ध्यान को दे देते हो, जबकि ध्यान कृत्य नहीं है। तुम दुकान करते हो, बाजार जाते हो-करना ही पड़ेगा। काम- धंधा, जीवन की चर्या, बाहर कि परिधि पर चलती ही रहेगी। उसी परिधि पर एक कोना तुम ध्यान के लिए भी देते हो। तुम सोचते हो कि चलो बाजार जाने के पहले दो क्षण मंदिर हो आयें।
इस फर्क को खयाल में ले लेना।
तुम जो करते हो उसी में तुम ध्यान को भी जोड़ लेते हो; और पच्चीस काम करते हो, उसी में एक काम ध्यान है। तुम्हारे संसार में हजार व्यस्ततायें हैं, उसी में ईश्वर भी एक और व्यस्तता है। तब तुम ईश्वर से वंचित रह जाओगे। ईश्वर परिधि पर हो ही नहीं सकता। जहां दुकान है, बाजार है, काम है-वहां से ईश्वर का कोई संबंध नहीं। ईश्वर तुम्हारा अंतस्तल है, जहां तुम हो। काम के जगत में नहीं है वह। तुम्हारा जहां सब काम विश्राम हो जाता है, सिर्फ तुम्हीं बचते हो; जहां कोई कर्ता नहीं बचता, जहां सिर्फ साक्षी बचता है-वही उसका घर है।
ईश्वर तुम्हारे एक अंग को नहीं घेरेगा वह महान है, विराट है, तुम पूरे ही उससे घिरोगे तो ही तुम्हें घेर पाएगा। तुमने अगर कहा कि कुछ थोड़ा-सा समय तुझे भी देंगे, तो तुम भटकोगे। जिस दिन तुम अपने को पूरा ही दे दोगे…। इसका यह अर्थ नहीं कि तुम कोई काम न कर पाओगे। तुम काम और भी भली- भांति कर पाओगे; लेकिन तब तुम्हारे प्रत्येक काम में ईश्वर की धुन बजने लगेगी। तब वह तुम्हारे भीतर होगा-जैसे श्वांस चल रही है। तुम बाजार जाते हो तो तुम श्वांस लेना बंद तो नहीं कर देते। तुम दुकान पर बैठते हो, तब तुम श्वांस लेना बंद तो नहीं कर देते। तुम किसी से बात करते हो, तो तुम श्वांस लेना बंद तो नहीं कर देते। श्वांस कृत्य का हिस्सा नहीं है। तुम सब करते रहते हो, भीतर श्वांस चलती रहती है। ऐसे ही, जब परमात्मा तुम्हारे भीतर का हिस्सा होगा, तुम सब करते रहोगे और उसकी धारा तुम्हारे भीतर अहर्निश बहती रहेगी।
तुम्हारे करने से उसकी कोई प्रतियोगिता नहीं है। वह संसार का हिस्सा नहीं है। करने से संसार बनता है। कृत्य से संसार बनता है। इसलिए हम कहते हैं कि जब तक कोई कर्म में जुड़ा है, तब तक संसार में बना रहेगा; जब अकर्म को उपलब्ध होता है, तब परमात्मा को उपलब्ध होता है।
अकर्म का अर्थ है—तुम्हारा अस्तित्व, जहां करने का कोई सवाल नहीं; जहा तुम सिर्फ हो, तुम्हारा होना मात्र; वहां से तुम जुडो।

No comments:

Post a Comment