Thursday 12 February 2015

जीवन—सत्य की खोज दो मार्गों से हो सकती है। एक पुरुष का मार्ग है—आक्रमण का, हिंसा का, छीन—झपट का। एक सी का मार्ग है—समर्पण का, प्रतिक्रमण का।
विज्ञान पुरुष का मार्ग है; विज्ञान आक्रमण है। धर्म सी का मार्ग है; धर्म नमन है।
इसे बहुत ठीक से समझ लें।
इसलिए पूर्व के सभी शास्त्र परमात्मा को नमस्कार से शुरू होते है। वह नमस्कार केवल औपचारिक नहीं है। वह केवल एक परंपरा और रीति नहीं है। वह नमस्कार इंगित है कि मार्ग समर्पण का है, और जो विनम्र है, केवल वे ही उपलब्ध हो सकेंगे। और, जो आक्रमक है, अहंकार से भरे है; जो सत्य को भी छीन—झपटकर पाना चाहते है; जो सत्य के भी मालिक होने की आकांक्षा रखते है; जो परमात्मा के द्वार पर एक सैनिक की भांति पहुंचे हैं—विजय करने, वे हार जायेंगे। वे छ को भला छीन—झपट लें, विराट उनका न हो सकेगा। वे व्यर्थ को भला लूटकर घर ले आयें; लेकिन जो सार्थक है, वह उनकी लूट का हिस्सा न बनेगा।
इसलिए विज्ञान व्यर्थ को खोज लेता है; सार्थक चूक जाता है। मिट्टी, पत्थर, पदार्थ के संबंध में जानकारी मिल जाती है, लेकिन आत्‍मा और परमात्मा की जानकारी छूट जाती है। ऐसे ही जैसे तुम राह चलते एक स्‍त्री पर हमला कर दो, बलात्कार हो जाएगा, स्‍त्री का शरीर भी तुम कब्जा कर लोगे, लेकिन उसकी आत्मा तुम्हें नहीं मिल सकेगी। उसका प्रेम तुम न पा सकोगे।
तो जो लोग आक्रमण की तरह जाते है परमात्मा की तरफ, वे बलात्कारी है। वे परमात्मा के शरीर पर भला कब्जा कर लें— इस प्रकृति पर, जो दिखाई पड़ती है, जो दृश्य है— उसकी चीर—फाड़ कर, विश्लेषण करके, उसके कुछ राज खोज लें, लेकिन उनकी खोज वैसी ही क्षुद्र होगी, जैसे किसी पुरुष ने किसी स्‍त्री पर हमला किया हो, बलात्कार किया हो। स्‍त्री का शरीर तो उपलब्ध हो जायेगा, लेकिन वह उपलब्धि दो कौड़ी की है; क्योंकि उसकी आत्मा को तुम छू भी न पाओगे। और अगर उसकी आत्मा को न छूआ, तो उसके भीतर प्रेम की जो संभावना थी— वह जो छिपा था बीज प्रेम का— वह कभी अकुंरित न होगा। उसकी प्रेम की वर्षा तुम्हें न मिल सकेगी। विज्ञान बलात्कार है। वह प्रकृति पर हमला है; जैसे कि प्रकृति कोई शत्रु हो; जैसे कि उसे जीतना है, पराजित करना है। इसलिए विज्ञान तोड़—फोड़ में भरोसा करता है— विश्लेषण तोड़—फोड़ है; काट—पीट में भरोसा करता


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