Wednesday 20 May 2015

आकार क्‍या है? कैसे हम आकार कहते हैं? इस जगत में कुछ भी है जो साकार है?
इस जगत में सभी कुछ निराकार है। लेकिन हमारे पास देखने वाली आंखें सीमित हैं। इसलिए निराकार भी हमें आकार ही दिखाई पड़ता है। आप अपनी खिड़की से आकाश को देखते हैं, तो खिड़की के बराबर चौखटे में ही आकाश दिखाई पड़ता है। आप अपने नीले चश्मे से जगत को देखते हैं, तो जगत नीला दिखाई पड़ता है। आपकी देखने की क्षमता के कारण आकार निर्मित होता है, अन्यथा आकार कहीं भी नहीं है।
आप कहेंगे, यह तो बात कुछ जंचती नहीं। हमारे शरीर का तो कम से कम आकार है!
वहां भी आकार नहीं है। कहां आपका शरीर समाप्त होता है, आपको पता है? अगर सूरज ठंडा हो जाए—दस करोड़ मील दूर है— अगर ठंडा हो जाए, तो आपके शरीर का आपको पता है क्या होगा? उसी वक्त ठंडा हो जाएगा। तो आपका शरीर आपकी चमड़ी पर नहीं समाप्त होता। वह दस करोड़ मील दूर जो सूरज है, वह भी आपके शरीर का हिस्सा है। क्योंकि उसके बिना आप जी नहीं सकते। वह जो दस करोड़ मील दूर सूरज है, वह भी आपके शरीर का हिस्सा है, क्योंकि आपका शरीर उसके बिना जी नहीं सकता। शरीर जुड़ा है उससे।
कहां आपका शरीर खत्म होता है? आपके ऊपर? अगर आपके पिता न होते, तो आप हो सकते थे?
पीछे लौटें! तब आपको पता चलेगा, अरबों—खरबों वर्षों का जो इतिहास है, उससे आपका शरीर निर्मित हुआ है। करोड़ों—करोड़ों वर्ष से जीवाणु चल रहा है, वह आपका शरीर बना है। अगर उस श्रृंखला में एक जीवाणु अलग हो जाए, तो आप नहीं होंगे। तो समय में पूरा इतिहास आपमें समाया हुआ है। अभी इस क्षण सारा जगत आपमें समाया हुआ है। अगर इस जगत में जरा भी फर्क हो जाए, आप नहीं होंगे।
तो आपका शरीर अनंत—अनंत शक्तियों का एक मेल है। आपको जितना दिखाई पड़ता है, उसको आप शरीर मान लेते हैं। और अगर यह सच है कि अनंत इतिहास आपमें समाया हुआ है, तो अनंत भविष्य भी आपमें समाया हुआ है। वह आपसे ही पैदा होगा।
आप कहां शुरू होते हैं? कहां समाप्त होते हैं? आपने अपने जन्म—दिन को अपना जन्म—दिन समझ लिया है, यह आपकी समझ की सीमा है। कब आप पैदा हुए? आपका जीवाणु चल रहा है अरबों—अरबों, खरबों वर्षों से। जब आप पैदा नहीं हुए थे, तब वह आपकी मां में था, आपके पिता में था। और जब आपके मां—बाप भी पैदा नहीं हुए थे, तब वह किसी और में था। लेकिन वह चल रहा है। आप थे अनंत काल से। और आप जब नहीं होंगे, तब भी वह चलता रहेगा अनंत काल तक।
कहां आपका शरीर समाप्त होता है? कहां शुरू होता है? कहां है सीमा उसकी? अभी इस क्षण में भी कहां है उसकी सीमा? किस जगह हम मानें कि यहां मेरा शरीर समाप्त हुआ? सूरज को हम अपने शरीर का हिस्सा मानें या न मानें? यह बडा सवाल है। वैज्ञानिक पूछते हैं कि इसमें कहां हम समाप्त करें शरीर को?
हमने पत्थर की भी मूर्तियां बनाईं। जिन्होंने पत्थर की मूर्तियां बनाईं, बड़े होशियार लोग थे। क्योंकि उन्हें एक दफा दिखाई पड़ गया, तो फिर पत्थर में भी दिखाई पड़ने लगा। एक दफा दिखाई पड़ जाए, तो कहीं भी दिखाई पड़ेगा। फिर पत्थर में भी वही दिखाई पड़ेगा। फिर कोई कारण नहीं है। फिर कहीं कोई बाधा नहीं है। फिर कोई रुकावट रोक नहीं सकती। जो मुझे दिख गया एक दफा, वह फिर मैं कहीं भी देख लूंगा।
लेकिन देखने के लिए बड़ी बात यह नहीं है कि राम भगवान हैं या नहीं। यह बड़ा सवाल नहीं है। यह असंगत है। बड़ा सवाल यह है कि मेरे पास भगवान को देखने की आंख है या नहीं!
बुद्ध के पिछले जन्म की घटना है कि बुद्ध पिछले जन्म में, जब वे अज्ञानी थे और बुद्ध नहीं हुए थे.। अज्ञान का एक ही मतलब है हमारे मुल्क में कि जब तक उनको पता नहीं चला था कि मैं भगवान हूं। जब तक वे जानते थे कि मैं आदमी हूं। तब जब वे अज्ञानी थे, उनके गांव में एक बुद्धपुरुष का आगमन हुआ। तो बुद्ध उनका दर्शन करने गए। उनके चरणों में गिरकर नमस्कार किया। और जब वे नमस्कार करके खड़े हुए, तो बहुत चकित हो गए। समझ में नहीं पड़ा कि क्या हो गया! वे जो बुद्धपुरुष थे, उन्होंने बुद्ध के चरणों में सिर रखकर नमस्कार किया।
तो बुद्ध बहुत घबड़ा गए और उन्होंने कहा, आप यह क्या करते हैं! इससे मुझे पाप लगेगा। मैं आपके पैर छुऊं, यह उचित है। क्योंकि आप पा चुके हैं, मैं अभी भटक रहा हूं। आप मंजिल हैं, मैं अभी रास्ता हूं। मैं आपके चरणों में झुकूं, यह ठीक है। अभी मेरी खोज बाकी है, आपकी खोज पूरी हो गई। आप क्यों मेरे चरणों में झपकते हो?
तो उन बुद्धपुरुष ने बुद्ध को कहा, तुझे वही दिखाई पड़ता है पर छोटा तूफान आता है। जमीन पर जो युद्ध होते हैं, उनका पीरियाडिकल जो वर्तुल है, वह ग्‍यारह साल है।

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