Sunday 17 May 2015

एक मित्र ने पूछा है कि यदि मां के पेट में पुरुष और स्त्री आत्मा के जन्मने के लिए अवसर पैदा करते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आत्माएं अलग— अलग हैं और सर्वव्यापी आत्मा नहीं है। उन्होने यह भी पूछा है कि मैने तो बहुत बार कहा है कि एक ही सत्य है एक ही परमात्मा है एक ही आत्मा है फिर ये दोनों बातें तो कंट्राडिक्टरी विरोधी मालूम होती हैं।
ये दोनों बातें विरोधी नहीं हैं। परमात्मा तो एक ही है, आत्मा तो वस्तुत: एक ही है, लेकिन शरीर दो प्रकार के हैं। एक शरीर जिसे हम स्थूल शरीर कहते हैं, जो हमें दिखाई पड़ता है, एक शरीर जो सूक्ष्म शरीर है, जो हमें दिखाई नहीं पड़ता है। एक शरीर की जब मृत्यु होती है, तब स्थूल शरीर तो गिर जाता है, लेकिन जो सूक्ष्म शरीर है, वह जो सटल बाडी है, वह नहीं मरती है। आत्मा दो शरीरों के भीतर वास कर रही है, एक सूक्ष्म शरीर और एक स्थूल शरीर। मृत्यु के समय स्थूल शरीर गिर जाता है। यह जो मिट्टी —पानी से बना हुआ शरीर है, यह जो हड्डी—मांस —मज्जा की देह है, यह गिर जाती है। फिर अत्यंत सूक्ष्म विचारों का, सूक्ष्म संवेदनाओं का, सूक्ष्म वायब्रेशंस का, सूक्ष्म तंतुओं का शरीर शेष रह जाता है।
वह तंतुओं से घिरा हुआ शरीर आत्मा के साथ फिर यात्रा शुरू करता है और फिर नए जन्म के लिए स्थूल शरीर में प्रवेश करता है। जब एक मां के पेट में नई आत्मा का प्रवेश होता है, तो उसका अर्थ है सूक्ष्म शरीर का प्रवेश। मृत्यु के समय सिर्फ स्थूल शरीर गिरता है, सूक्ष्म शरीर नहीं। लेकिन परम मृत्यु के समय—जिसे हम मोक्ष कहते हैं —उस परम मृत्यु के समय स्थूल शरीर के साथ ही सूक्ष्म शरीर भी गिर जाता है। फिर आत्मा का कोई जन्म नहीं होता, फिर वह आत्मा विराट में लीन हो जाती है। वह जो विराट में लीनता है, वह एक ही है। जैसे एक बूंद सागर में गिर जाती है।
तीन बातें समझ लेनी जरूरी हैं। आत्मा का तत्व एक है। उस आत्मा के तत्व के संबंध में आकर दो तरह के शरीर सक्रिय होते हैं—एक स्थूल शरीर और एक सूक्ष्म शरीर। स्थूल शरीर से हम परिचित हैं, सूक्ष्म शरीर से योगी परिचित होता है। और योग के भी जो ऊपर उठ जाते हैं, वे उससे परिचित होते हैं जो आत्मा है।
सामान्य आंखें देख पाती हैं स्थूल शरीर को। योग —दृष्टि, ध्यान देख पाता है सूक्ष्म शरीर को। लेकिन ध्यानातीत, बियांड योग, सूक्ष्म के भी पार, उसके भी आगे जो शेष रह जाता है, उसका तो समाधि में अनुभव होता है। ध्यान से भी जब व्यक्ति ऊपर उठ जाता है, तो समाधि फलित होती है। और उस समाधि में जो अनुभव होता है, वह परमात्मा का अनुभव है।
साधारण मनुष्य का अनुभव शरीर का अनुभव है, साधारण योगी का अनुभव सूक्ष्म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्मा का अनुभव है। परमात्मा एक है, सूक्ष्म शरीर अनंत हैं, स्थूल शरीर अनंत हैं। वह जो सूक्ष्म शरीर है, वह है कॉजल बाडी। वह जो सूक्ष्म शरीर है, वही नए स्थूल शरीर ग्रहण करता है। हम यहां देख रहे हैं कि बहुत से बल्‍ब जले हुए हैं। विद्युत तो एक है, विद्युत बहुत नहीं है। वह ऊर्जा, वह शक्ति, वह इनर्जी एक है, लेकिन दो अलग बल्बों से वह प्रकट हो रही है। बल्‍ब का शरीर अलग — अलग है, उसकी आत्मा एक है। हमारे भीतर से जो चेतना झांक रही है, वह चेतना एक है। लेकिन उस चेतना के झांकने में दो उपकरणों का, दो वेहिकल्स का प्रयोग किया गया है। एक सूक्ष्म उपकरण है, सूक्ष्म देह; और दूसरा उपकरण है, स्थूल देह।
हमारा अनुभव स्थूल देह तक ही रुक जाता है। यह जो स्थूल देह तक रुक गया अनुभव है, यही मनुष्य के जीवन का सारा अंधकार और दुख है। लेकिन कुछ लोग सूक्ष्म शरीर पर भी रुक सकते हैं। जो लोग सूक्ष्म शरीरों पर रुक जाते हैं, वे ऐसा कहेंगे कि आत्माएं अनंत हैं। लेकिन जो सूक्ष्म शरीर के भी आगे चले जाते हैं, वे कहेंगे, परमात्मा एक है, आत्मा एक है, ब्रह्म एक है।
मेरी इन दोनों बातों में कोई विरोध नहीं है। मैंने जो आत्मा के प्रवेश के लिए कहा, उसका अर्थ है वह आत्मा जिसका अभी सूक्ष्म शरीर गिर नहीं गया है। इसलिए हम कहते हैं कि जो आत्मा परम मुक्ति को उपलब्ध हो जाती है, उसका जन्म —मरण बंद हो जाता है। आत्मा का तो कोई जन्म —मरण है ही नहीं, वह तो न कभी जन्मी है और न कभी मरेगी। वह जो सूक्ष्म शरीर है, वह भी समाप्त हो जाने पर कोई जन्म —मरण नहीं रह जाता है। क्योंकि सूक्ष्म शरीर ही कारण बनता है नए जन्मों का।
सूक्ष्म शरीर का अर्थ है, हमारे विचार, हमारी कामनाएं, हमारी वासनाएं, हमारी इच्छाएं, हमारे अनुभव, हमारा शान, इन सबका जो संग्रहीभूत, जो इंटिग्रेटेड सीड है, इन सबका जो बीज है, वह हमारा सूक्ष्म शरीर है। वही हमें आगे की यात्राओं पर ले जाता है। लेकिन जिस मनुष्य के सारे विचार नष्ट हो गए, जिस मनुष्य की सारी वासनाएं क्षीण हो गईं, जिस मनुष्य की सारी इच्छाएं विलीन हो गईं, जिसके भीतर अब कोई भी इच्छा शेष न रही, उस मनुष्य को जाने के लिए कोई जगह नहीं बचती, जाने का कोई कारण नहीं रह जाता। जन्म की कोई वजह नहीं रह जाती।

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