यदि कोई स्त्री ब्रह्मचर्य धारण करना चाहे और अपने शरीर से पृथक रहना चाहे तो वह यह पुरूष की उपेक्षा अधिक आसानी से कर सकती है। एक बार शरीर से अनासक्ति सध जाए तो वह अपने शरीर को पूरी तरह भूल सकती है।
पुरूष बहुत सरलता से नियंत्रण कर सकता है; लेकिन उसका चित उसके शरीर से ज्यादा बंधा है। इसी कारण से नियंत्रण उसके लिए संभव है; लेकिन यह नियंत्रण उसे रोज-रोज करना होगा। सतत करना होगा। और चूंकि स्त्री की कामवासना अनाक्रामक है, इसलिए वह इस दिशा में अधिक विश्राम पूर्ण हो सकती है। अधिक अनासक्त हो सकती है। लेकिन अनासक्ति कठिन है।
तीसरी आँख के जरिए तुम उन चीजों को देखने में समर्थ हो जाते हो जो है, लेकिन जिन्हें सामान्य आंखों से नहीं देखा जा सकता। देखने की जितनी विधियां है वे सभी तीसरी आँख को प्रभावित करती है। कारण यह है कि देखने में जो ऊर्जा बाहर की और, संसार की और प्रवाहित होती है, वह अचानक रोक दिए जाने के कारण बहने के नए मार्ग ढूँढ़ती है और निकट पड़ने के कारण तीसरी आँख पर पहुंच जाती है।
तिब्बत में तो तीसरी आँख के लिए शल्य-चिकित्सा तक का उपाय किया गया था। कभी-कभी ऐसा होता है कि हजारों वर्षों से निष्क्रिय पड़े रहने के कारण तीसरी आँख बिलकुल बंद हो जाती है। मूंद जाती है। इस हालत में अगर तुम सामान्य आंखों की गति रोक दो तो तुम बेचैनी महसूस करोगे। कारण यह है कि आँख की ऊर्जा को गति करने का मार्ग नहीं मिला। इस ऊर्जा को मार्ग देने के लिए तिब्बत में तीसरी आँख की आपरेशन किया जाने लगा। यह संभव है। और अगर यह आपरेशन न किया जाए तो कई अड़चनें आ सकती है।
भारत में हम इसके लिए चंदन, या घी तथा अन्य चीजों का उपयोग करते है। उन्हें तीसरी आँख पर लगाते है और उसे तिलक कहते है। उसे तीसरी आँख की जगह पर लगाकर बहार से थोड़ी ठंडक दी जाती है। ताकि भीतर की गर्मी से, जलन से बाहर की चमड़ी न जले। इस आग से चमड़ी ही नहीं जलती है, कभी-कभी सिर की हड्डी में छेद तक हो जाता है।
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