Monday 9 March 2015

गुरु का अर्थ ही यही है कि वह तुम्हें तलाशे। जब तुम्हें जरूरत हो, तब उसका हाथ पहुंच ही जाना चाहिए। तुम्हारी जरूरत हो और उसका हाथ न पहुंचे, तो फिर गुरु गुरु नहीं है। तुम कितने ही दूर होओ, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम हजारों मील दूर होओ, इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तुम्हारी वास्तविक जरूरत होगी, गुरु का हाथ तुम्हारे पास पहुंचेगा ही। पहुंचना ही चाहिए। वही तो अनुबंध है—शिष्य और गुरु के बीच। वही तो गांठ है—शिष्य और गुरु के बीच। वही तो सगाई है—शिष्य और गुरु के बीच।

बुद्ध ने दो तरह की समाधि कही है. समथ समाधि और विपस्सना समाधि। समथ समाधि का अर्थ होता है लौकिक समाधि। और विपस्सना समाधि का अर्थ होता है अलौकिक समाधि। समथ समाधि का अर्थ होता है संकल्प से पायी गयी समाधि—योग से, विधि से, विधान से, चेष्टा से, यत्न से। और विपस्सना का अर्थ होता है. सहज समाधि। चेष्टा से नहीं, यत्न से नहीं, योग से नहीं, विधि से नहीं—बोध से, सिर्फ समझ से। विपस्सना शब्द का अर्थ होता है अंतर्दृष्टि।
फर्क समझना। तुमने सुना कि क्रोध बुरा है। तो तुमने क्रोध को रोक लिया। अब तुम क्रोध नहीं करते हो। तो तुम्हारे चेहरे पर एक तरह की शाति आ जाएगी। लेकिन चेहरे पर ही। भीतर तो क्रोध कहीं पड़ा ही रहेगा। क्योंकि तुमने दबा दिया है सुनकर। अगर तुम्हारी समझ में आ गया कि क्रोध गलत है—शास्त्र कहते हैं, इसलिए नहीं, बुद्ध कहते हैं, इसलिए नहीं, मैं कहता हूं इसलिए नहीं—तुमने जाना अपने जीवंत अनुभव से, बार—बार क्रोध करके कि क्रोध व्यर्थ है। यह प्रतीति तुम्हारी गहन हो गयी, इतनी गहन हो गयी कि इस प्रतीति के कारण ही क्रोध असंभव हो गया, तुम्हें दबाना न पड़ा। तुम्हें विधि—विधान न करना पड़ा। तुम्हें अनुशासन आरोपित न करना पड़ा। तो दूसरी दशा घटेगी। तब तुम्हारे भीतर भी शांति होगी, बाहर भी शाति होगी।
समथ समाधि में बाहर से तो सब हो जाता है, भीतर कुछ चूक जाता है। विपस्सना समाधि पूरी समाधि है। बाहर भीतर एक जैसा होता है, एकरस हो जाता है।
इसलिए पहली को बुद्ध ने लौकिक कहा, दूसरी को अलौकिक। पहली से तुम ब्राह्मण तक नहीं पहुंच पाओगे। पहली से क्षत्रिय तक। संकल्प; जूझते हुए; लड़ते हुए; प्रयास से। दूसरी से तुम ब्राह्मण होओगे। प्रसाद से।
इसलिए बुद्ध ने कहा जो दो धर्मों को जान लेता, समथ और विपस्सना, वह पहुंच गया।
पहले आदमी को समथ से जाना पड़ता है। फिर समथ की हार पर विपस्सना का जन्म होता है।
ऐसा ही बुद्ध को हुआ। छह वर्ष तक उन्होंने जो साधा, वह समथ समाधि थी। फिर छह वर्ष के बाद, उस आखिरी रात जो घटा, वह विपस्सना समाधि थी।

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