Thursday 12 March 2015

यहां मैं शराब निश्चित बांटता हूं। मगर वह शराब ऐसी नहीं कि तुम भूल जाओ। वह शराब ऐसी है, जो होश लाए। वह होश लाने वाली शराब है। बेहोशी लाने वाली शराबें तो सब तरफ मिल रही हैं। बेहोशी लाने वाली शराब में कितना मूल्य है? थोड़ी देर को भूल जाओगे, फिर याद आएगी। और घनी होकर आएगी। थोडी देर को भूल जाओगे, तब भी भीतर तो सरकती ही रहेगी।
चिंता से भरा आदमी शराब पी लेता है। चलो, रात गुजर गयी। सुबह फिर चिंताएं वहीं की वहीं खड़ी हैं। और बड़ी होकर खड़ी हैं। क्योंकि रात हल कर ली होतीं, तो उनकी उम्र कम थी। अब रातभर और गुजर गयी। उनकी उम्र ज्यादा हो गयी। वे और मजबूत हो गयीं। उनकी जड़ें और फैल गयीं। फिर शराब पी ली। ऐसे दो—चार—दस दिन गुजार दिए, तो चिंताएं तुम्हारे भीतर गहरी, मजबूती से जड़ जमा लेंगी। उनको हल करना रोज—रोज कठिन हो जाएगा।
बेहोशी से कुछ लाभ नहीं है। और तुम संगीत में भी बेहोशी खोजते हो। और तुम सुंदरी में भी बेहोशी खोजते हो। और तुम संपत्ति में भी बेहोशी खोजते हो। और तुम सम्मान में भी बेहोशी खोजते हो। तुम बेहोशी ही खोजते हो।
यहां तो कम से कम बेहोशी खोजने न आओ। यहां होश खोजो। यहां जागो। निश्चित ही यह जागना भी एक ऐसी अदभुत कीमिया है कि इससे तुम जागोगे भी और मस्त भी हो जाओगे। इसलिए मैं इसको शराब भी कहता हूं। तुम जागोगे भी और डोलोगे भी।
मगर डोलना अगर बेहोशी में हो, तो कुछ मजा न रहा। वह तो नींद का डोलना है। जागकर डोलो। होश से भरे नाचो। होश भी हो और नाच भी हो। होश भी हो और रसधार भी बहे। भीतर होश का दीया जले और बाहर मस्ती हो।
मैं चाहता हूं तुम ऐसे संन्यासी हो जाओ कि जिसके भीतर बुद्ध जैसा दीया जलता हो और जिसके बाहर मीरा जैसी मस्ती हो। तुम ऐसा जोड़ बनो। इस जोड़ पर कोशिश नहीं की गयी है। यह जोड़ अब तक संभव नहीं हुआ है। इसलिए अतीत में संन्यास अधूरा— अधूरा रह गया है; आधा—आधा रह गया है। पूरा संन्यासी होश से भरा होगा और मदमस्त भी होगा। दीया भी जला होगा ध्यान का और प्रेम की धारा भी बहती होगी।
पूर्ण संन्यासी बनो। एक अपूर्व अवसर तुम्हें मिला है, इसे चूकना मत। चूकने की संभावना सदा ज्यादा है। अगर न चूके तो तुम कुछ ऐसा जान लोगे, तुम कुछ ऐसे हो जाओगे, जैसा कि इसके पहले संभव नहीं था।
एकांगी ढंग के संन्यासी हुए हैं। स्थली ढंग का संन्यास भी सुंदर है। संसार से तो बहुत सुंदर है। लेकिन बहुआयामी संन्यास के सामने फीका है। जैसे हीरे पर देखा न, बहुत पहलू होते हैं। जितने पहलू होते हैं, उतनी हीरे की चमक बढ़ती जाती है। ऐसे ही जितने तुम्हारे संन्यास में पहलू होंगे, उतनी चमक बढ़ती जाएगी, उतनी गरिमा बढ़ती जाएगी। उतनी ही तुमसे ज्यादा किरणें प्रगट होंगी।
और ये दो पहलू तो होने ही चाहिए कि तुम्हारे भीतर होश का दीया हो, और तुम्हारे भीतर होश के दीए के साथ—साथ मस्ती की लहर हो। होश का दीया ऐसा न हो कि तुम्हें सुखा जाए, रेगिस्तान बना जाए।
तुममें फूल भी खिले। और तुममें फूल ही खिले, इतना ही नहीं है। क्योंकि अगर फूल ही खिले और भीतर बेहोशी रहे, तो मजा न रहा। भीतर दीए की ज्योति भी फूलों पर पड़ती हो।
फूल अंधेरे में खिले, तो मजा नहीं है। और दीया रेगिस्तान में जले, तो मजा नहीं है। बगिया में जले दीया। फूल भी खिले और दीए में दिखॉयी भी पड़े। मस्ती भी हो और होश में मस्ती दिखायी भी पड़ती रहे। मस्ती बेहोश न हो। और होश गैर—मस्त न हो।
इस नए संन्यास को ही जन्म दे रहा हूं। तुम एक महान प्रयोग में सहभागी हो रहे हो। तुम्हें शायद पता हो अपने सौभाग्य का या न पता हो।

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