Sunday 22 March 2015

जिस व्यक्ति ने समझ लिया कि बाहर कुछ भी नहीं है जो मुझे भर सके, मैं खाली हूं _ और खाली हूं, और खाली हूं तो अब इस खालीपन से राजी हो जाऊं……:। जैसे ही तुम राजी हुए कि एक महत रूपांतरण होता है। जैसे ही तुम राजी हुए, तुम शांत हुए, चित्त की दौड़ मिटी, स्पर्धा गई, अकिंचन— भाव को तुम स्वीकार किए कि ठीक है, यही मेरा होना है, यही मेरा स्वभाव है, शून्यता मेरा स्वभाव है—अकिंचनभव स्वास्थ्यं—तत्‍क्षण तुम्हारे जीवन में एक स्वास्थ्य की घटना घटती है।
‘स्वास्थ्य’ शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ होता है: तुम स्वयं में स्थित हो जाते हो। स्व—स्थित हो जाना स्वास्थ्य है। अभी तो तुम दौड़ रहे हो। तुम विचलित हो, स्मृत हो। अस्वास्थ्य का अर्थ है जो अपने केंद्र पर नहीं है, जो स्वयं में नहीं है; जो इधर—उधर भटका है। कोई धन के पीछे दौड़ा है—अस्वस्थ है, रुग्ण है। कोई पद के पीछे दौड़ा है —अस्वस्थ है; रुग्ण है। कोई किसी और चीज के पीछे दौड़ा है। लेकिन जो दौड़ रहा है किसी और के पीछे, वह अस्वस्थ रहेगा। क्योंकि दौड़ में तुम स्मृत हो जाते हो अपने केंद्र से। जैसे ही दौड़ गई, तुम अपने में ठहरे।
लोग पूछते हैं :’स्वयं में कैसे जाएं?’
स्वयं में जाने में जरा भी कठिनाई नहीं है; इससे सरल कोई बात ही नहीं है। स्वयं में जाना कठिन होगा भी कैसे? क्योंकि तुम स्वयं तो हो ही। स्वयं में तो तुम हो ही। इसलिए असली सवाल यह नहीं है कि हम स्वयं में कैसे जाएं। असली सवाल यही है कि हम ’पर’ से कैसे छूटें। छूटे नहीं कि पहुंचे नहीं। इधर ’पर’ पर पकड़ छोड़ी कि स्वयं में बैठ गए। यह सवाल नहीं है कि हम अपने में कैसे आएं। इतना ही सवाल है कि हम जिन चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं, उनकी व्यर्थता कैसे देखें!
हाय, क्या जीवन यही था!
एक बिजली की झलक में स्वप्न औ’ रसरूप दीखा हाथ फैले तो मुझे निज हाथ भी दिखता नहीं था हाय, क्या जीवन यही था!
एक झोंके में गगन के तारकों ने जा बिठाया मुट्ठियां खोलीं, सिवा कुछ कंकड़ों के कुछ नहीं था हाय, क्या जीवन यही था!
गीत से जगती न थी चीख से दुनिया न घूमी हाय लगते एक से अब गान औ’ क्रंदन मुझे भी छल गया जीवन मुझे भी हाय, क्या जीवन यही था!
जिसे तुमने अब तक जीवन जाना है, उसे खुली आंख से देख लो। बस इतना काफी है। और तुम अकिंचन होने लगोगे।’अकिंचन’ शब्द का ठीक—ठीक अर्थ वही है जो जीसस के वचन का है। जीसस ने कहा है :’ब्लैसेड आर दि पुअर। देअर्स इज दि किंगडम आफ गॉड।’ धन्यभागी हैं दरिद्र उनका ही है राज्य परमात्मा का! और खयाल करना, जीसस नै यह नहीं कहा कि धन्यभागी हैं दरिद्र उनका होगा राज्य परमात्मा का। नहीं, जीसस कहते हैं’देअर्स इज दि किंगडम आफ गॉड।’ उनका ही है राज्य परमात्मा का। है ही इसी क्षण! हो गया! धन्य हैं दरिद्र!
अकिंचन उसी दरिद्रता का नाम है। ऐसी दरिद्रता तो समृद्धि का द्वार बन जाती है। ऐसी दरिद्रता, कि एक बार उसे अंगीकार कर लिया तो फिर तुम कभी दरिद्र होते ही नहीं, क्योंकि फिर प्रभु का सारा राज्य तुम्हारा है।
अकिंचनभव:……।
ऐसा जान कर कि मैं कुछ भी नहीं हूं, ऐसे भाव से कि कुछ भी नहीं है इस जगत में, एक स्वप्न है—एक स्वास्थ्य पैदा होता है; स्वयं में स्थिति बनती है; भागदौड़ जाती है, आपाधापी मिटती है ज्वर छूटता है, बीमारी मिटती है; आदमी अपने घर लौट आता है, अपने में ठहरता है।

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