Friday 6 March 2015

जीवन है मध्य में, जहां योग और भोग का मिलन होता है, जहां योग और भोग गले लगते हैं। जो शरीर को ही मानता है, वह आज नहीं कल अध्यात्म की तरफ यात्रा शुरू कर देगा। पश्चिम में अध्यात्म की बड़ी प्रतिष्ठा होती जा रही है रोज। कारण? कारण वही है—शाश्वत कारण।

मैं तुम्हें वही सिखा रहा हूं कि जीवन की परिपूर्णता को अंगीकार करो। इनकार मत करना कुछ। तुम देह भी हो; तुम आत्मा भी हो। और तुम दोनों नहीं भी हो। तुम्हें दोनों में रहना है और दोनों में रहकर दोनों के पार भी जाना है। तुम न तो भौतिकवादी बनना, न अध्यात्मवादी बनना। दोनों भूलें बहुत हो चुकीं हैं। जमीन काफी तड़फ चुकी है। तुम अब दोनों का समन्वय साधना, दोनों के बीच संगीत उठाना। दोनों का मिलन बहुत प्यारा है। दोनों के मिलन को मैं धर्म कहता हूं।
ये तीन शब्द समझो. भौतिकवादी—नास्तिक। तथाकथित आत्मवादी— आस्तिक। दोनों के मध्य में, जहां न तो तुम आस्तिक हो, न तो नास्तिक, जहां ही और ना का मिलन हो रहा है—जैसे दिन और रात मिलते हैं संध्या में, जैसे सुबह रात और दिन मिलते हैँ—ऐसे जहां हा और ना का मिलन हो रहा है, जहां तुम नास्तिक भी हो, आस्तिक भी, क्योंकि तुम जानते हो तुम दोनों का जोड़ हो। देह को इनकार करोगे, आज नहीं कल देह बगावत करेगी। आत्मा को इनकार करोगे, आत्मा बगावत करेगी। और बगावत ही पतन का कारण होता है।
मैं तुमसे कहता हूं. संसार और संन्यास दोनों के बीच एक लयबद्धता बनाओ। घर में रहो, और ऐसे जैसे मंदिर में हो। दुकान पर बैठो, ऐसे जैसे पूजागृह में। बाजार में और ऐसे जैसे हिमालय पर हो। भीड़ में और अकेले। चलो संसार में और संसार का पानी तुम्हें छुए भी नहीं, ऐसे चलो। ऐसे होशपूर्वक चलो। तब स्वास्थ्य पैदा होता है।
परमात्मा ने तुम्हें शरीर और आत्मा दोनों बनाया है। और तुम्हारे महात्मा तुम्हें समझा रहे हैं कि तुम सिर्फ आत्मा हो! लाख तुम्हारे महात्मा समझाते रहें कि तुम सिर्फ आत्मा हो, कैसे झुठलाओगे इस सत्य को जो परमात्मा ने तुम्हें दिया है कि तुम देह भी हो!

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