Sunday 18 October 2015

सिख होने की वजह से मैं नानक से प्रभावित हूं। आपकी वाणी और दर्शन से भी प्रभावित हूं। कृपया बताएं कि कौन सा मार्ग अपनाऊं?
तुम्‍हें भेद कहा दिखायी पड़ा? चुनाव तो तब होता है जब भेद हो। कि नानक कुछ कहते हों, मैं कुछ और कह रहा होऊं, तब चुनाव का सवाल है। अगर तुमने नानक को चाहा है, तो तुम नानक को ही मुझमें देख लोगे। अगर तुमने मुझे चाहा है, तो तुम मुझको ही नानक में देख लोगे, भेद कहां है?
यहां एक अपूर्व घटना घट रही है। यहां जीसस को चाहने वाले लोग हैं, उन्होंने जीसस को मुझमें देख लिया। उन्होंने मुझको भी चाहा उनके प्रेम के कारण। उनका प्रेम सेतु बन गया और मैं और जीसस एक हो गए। यहां कबीर को चाहने वाले लोग हैं। यहां महावीर को चाहने वाले लोग हैं। यहां बुद्ध को चाहने वाले लोग हैं। यहां जरथुस्त्र को चाहने वाले लोग हैं। मोहम्मद को चाहने वाले लोग हैं। यहां सारे धर्मों के लोग हैं। पृथ्वी पर तुम्हें ऐसी कोई दूसरी जगह न मिलेगी, जहा सारे धर्मों के लोग हों। और यहां कोई सर्व— धर्म —समन्वय का पाठ नहीं पढाया जा रहा है, मजा यह है। यहां मैं कह ही नहीं रहा कि सब धर्म एक हैं। सब धर्म बड़े अलग—अलग हैं, बड़े भिन्न—भिन्न हैं, बड़े विशिष्ट हैं।
तो फिर जोड़ क्या है? जोड़, नानक को प्रेम करने वाला जब मेरे प्रेम में पड़ जाता है, तो उसका प्रेम ही मेरे और नानक के बीच सेतु हो जाता है। फिर वह नानक की वाणी को कुछ इस ढंग से समझेगा, कुछ इस रंग से समझेगा कि वह मेरी वाणी हो जाएगी। वह मेरी वाणी को कुछ इस ढंग और रंग से समझेगा कि मेरी वाणी में उसे नानक का स्वर सुनायी पड़ने लगेगा। प्रेम ने भेद कभी जाना नहीं, प्रेम तो अभेद जानता है।
तुम इस चिंता में ही मत पड़ो। यहां कोई विरोध है ही नहीं। यहां कुछ भेद है ही नहीं। तुम अगर मेरे प्रेम में डूबे तो नानक नाराज न होंगे, इतना आश्वासन मैं तुम्हें देता हूं। और तुम अगर नानक के प्रेम में बने रहे, तो मैं नाराज नहीं हूं इतना आश्वासन तुम्हें देता हूं। सच तो यह है, अगर तुम गौर से देखोगे तो तुम्हें बात समझ में आ जाएगी। तुमने नानक को प्रेम किया और तुम मुझे भी प्रेम कर सके, उसी प्रेम में यह खबर मिल गयी कि जो मैं कह रहा हूं वह नानक से भिन्न नहीं है, अभिन्न है। अन्य नहीं है, अनन्य है। इसीलिए तो तुम मेरे प्रेम में सरक आए। और मेरे प्रेम में बहुत तरह के लोग सरक आए हैं। तरह—तरह के लोग। जिनके जीवन में एक—दूसरे से मिलने की कभी कोई संभावना नहीं थी।
क्या हुआ है? कुछ अपूर्व घटा है। यह कोई धर्म—समन्वय नहीं है। धर्म—समन्वय में मेरी उत्सुकता ही नहीं है। यह टुटपुजियों का धंधा है, जो धर्म—समन्वय की बात करते हैं। क्योंकि मैं मानता हूं, बुद्ध अनूठी बात कहते हैं। नानक अनूठी बात कहते हैं। समन्वय किया नहीं जा सकता।
लेकिन, किसी सदगुरु की विराटता में समन्वय हो सकता है। मेरे पास छोटा हृदय नहीं है, संकीर्ण दरवाजा नहीं है। मेरे बहुत दरवाजे हैं, एक दरवाजा नहीं है।
तुम नानक को प्रेम करते हो, तो मेरा एक दरवाजा है जो नानक से प्रेम करने वाले के लिए है, उससे तुम मेरे भीतर आ जाओ। तुम जीसस को प्रेम करते हो, तुम नानक वाले दरवाजे से भीतर न आ सकोगे, मेरा एक और दरवाजा है, जिसका नाम जीसस। तुम उससे मेरे भीतर आ जाओ। भीतर आकर तुम मुझे पाओगे, वह एक ही है। लेकिन दरवाजे बहुत हैं।
जीसस का एक प्रसिद्ध वचन है कि मेरे प्रभु के मंदिर के बहुत द्वार हैं और मेरे प्रभु के मंदिर में बहुत कक्ष हैं।
रामकृष्ण कहते थे, पहाड़ पर तुम चढ़ों, अलग— अलग दिशाओं से, कहीं से भी चढ़ो, कैसे भी चढ़ो—डोली में, पैदल, घोड़े पर, दौड़ते कि आहिस्ता, कि बूढ़े कि जवान, कि स्त्री कि पुरुष, कि इस रंग में, उस रंग में—लेकिन जब तुम चोटी पर पहूंचते हो तो तुम एक ही जगह पहुंच जाते हो।
मैं जहां खड़ा हूं, अगर तुमने उस तरफ आंख उठायी तो तुमने जिनको भी कभी प्रेम किया है, तुम मुझे पाओगे, मैं उन सबकी परिपूर्ति हूं।
—जीसस से एक आदमी ने पूछा, क्या आप पुराने पैगंबरों के खिलाफ हैं? जीसस ने कहां, नहीं, मैं उन्हें परिपूर्ण करने आया हूं। आई हैव कम नाट टु डिस्ट्राय, बट टु फुलफिल। मैं उन्हें पूरा करने आया हूं विनष्ट करने नहीं।
लेकिन एक बात पक्की है कि मैं कोई सिख नहीं हूं। न मैं ईसाई हूं न मैं जैन हूं न मैं बौद्ध हूं न मैं हिंदू न मैं मुसलमान। मैं हो भी नहीं सकता किसी एक के साथ, क्‍योंकि मुझे सबके साथ होना है। सब मेरे हैं, इसलिए मैं कोई चुनाव नहीं कर सकता।
लेकिन तुम्हारी आंखों में अगर नानक का रंग लगा है, तो वैसा दरवाजा भी मेरे ह्रदय का है, तुम उसी दरवाजे से आ जाओ। तुम नानक की परिपूर्ति पाओगे। तुम नानक को पुन: जीवित पाओगे। इसलिए चिंता न लो।

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