Monday 12 October 2015

आपने कल ऐसा आदेश क्यों दिया कि संबोधि—दिवस के नृत्य में केवल संन्यासी ही भाग लेंगे? औरों को भाग लेने से क्यों रोक दिया?
जो मुझमें भाग लेने को तैयार नहीं, उसमें मैं भी भाग लेने को तैयार नहीं। धीरे— धीरे हिम्मत करो। तुम अपने हृदय का द्वार मेरे लिए खोलोगे, तो ही मेरा हृदय का द्वारा तुम्हारे लिए खुल सकता है। नहीं कि तुम्हारे लिए बंद है, लेकिन खुल न सकेगा। मेरे हृदय के खुलने की कुंजी भी तुम्हारे हृदय के खुलने में छिपी है।
तो धीरे— धीरे तो मैं उनके लिए ही रहूंगा, जो डूबे हैं। डूबोगे तो ही मेरे साथ चल सकोगे। भीड़— भाड़ में मुझे रस नहीं है। मैं कोई राजनेता नहीं हूं कि भीड़— भाड़ में मेरी उत्सुकता हो। मेरी उत्सुकता उन थोड़े से लोगों में है जो सच में ही खोजने को तत्पर हैं। और कुछ दाव पर लगाने की भी हिम्मत रखते हैं।
संन्यासी का क्या अर्थ होता है? जिसने कुछ दाव पर लगाया। तुम दाव पर तो कुछ भी नहीं लगाना चाहते हो, पाना तुम सब चाहते हो। ऐसी होशियारी से काम न चलेगा।
तो धीरे— धीरे और तरह से भी संन्यासी में ही मैं उत्सुक रह जाऊंगा। क्योंकि संन्यासी का अर्थ इतना है कि वह मेरे साथ डूबने को तैयार है। ले जाऊं अंधेरे में तो अंधेरे में जाने को तैयार है। संन्यासी का अर्थ है, उसे मुझ पर भरोसा आया।
गैर—संन्यासी संन्यासियों की तरंग में थोड़ी सी बाधा डालता है। इसलिए नाचने से मना कर दिया। गैर—संन्यासी नाचते हुए संन्यासियों के बीच में उनकी भाव—समाधि में बाधा बनता है। क्योंकि वह तो उतना खुला नहीं, वह तो बंद है। जो संन्यास लेने की हिम्मत नहीं कर सका, वह नाच भी सकेगा? और जो नाच सकता है, उसे संन्यास लेने में अड़चन क्या होगी? ये दोनों ही पागलपन के काम हैं।
तो इसके पीछे एक सरणी है। अब मैं चाहूंगा कि यहां एक तरंग हो। इस तरंग में जो लोग जीने को राजी हैं, वे ही उसमें डूबे। जो नहीं हैं राजी, उनके लिए बोलता रहूंगा, ताकि आज नहीं कल वे राजी हो जाएं। तो बोलने के लिए मैं तैयार हूं गैर—संन्यासी से भी। लेकिन धीरे— धीरे जो गहरे तल की बातें हैं, जो भीतर घटती हैं, उनके लिए संन्यासी के अतिरिक्त दूसरे के लिए उपाय नहीं होगा।
मुझे फर्क करने ही होंगे। नहीं तो तुम्हें तो कुछ लाभ नहीं होता है, संन्यासी को नुकसान होता है। तुम सोचते हो, पूछने वाले ने इसीलिए पूछा है कि जैसे उसको कुछ हानि हुई। उसको कुछ हानि नहीं होने वाली। तुम्हारे पास कुछ है नहीं, हानि क्या होगी! तकलीफ तुम्हें सिर्फ यही हुई होगी कि कोई बात ऐसी थी जिसमें तुम्हें प्रवेश का अधिकार न मिला। तुम्हारे अहंकार को चोट लगी होगी। इस अहंकार को लेकर तुम सम्मिलित भी हो जाते तो तुम्हारे कारण केवल एक व्याघात पैदा होता। तुम बेसुरे होते। तुम उन पागलों की भीड़ में समझदार होते। तुम एक पत्थर की तरह होते उस धारा में।
तुम्हारे कारण धारा को बहने में सहायता न मिलती, बाधा पड़ती। तुम्हारा कुछ नहीं खोया है। ही, अगर तुम सम्मिलित होते तो जो संन्यासी नाच रहे थे, उनका कुछ खो जाता। नाचकर वे मेरे साथ किसी गहरी छंदोबद्धता में गिर रहे थे। उसका तुम्हें पता भी नहीं है। इसलिए जिनको हुआ, वही जानते हैं। जिनको नहीं हुआ, उनको तो बाहर से ऐसा लगा कि संन्यासियों को नाचने मिला, हमें नाचने न मिला। तुम्हारे नाचने की आकांक्षा बलवती नहीं है, अन्यथा तुम संन्यासी होने की हिम्मत करोगे, तुम कहोगे कि ठीक है, अगर नाचना है तो यह शर्त भी स्वीकार करेंगे। अगर तुमने कुछ खोया है, तो तुम संन्यास की हिम्मत जुटाओगे। क्योंकि तुम दुबारा वैसा न खोना चाहोगे।
लेकिन नहीं, तुम्हें कुछ अड़चन दूसरी है। तुम्हारी अड़चन यह है कि तुम्हारे साथ कुछ पक्षपात किया गया। तुम्हारे अहंकार को कुछ बाधा पड़ी है। तुम्हें क्यों न नाचने दिया गया! तुम्हारी पात्रता में कौन सी कमी है! कमी है। साहस की कमी है। हिम्मत की कमी है। तुम सत्य को मुफ्त पाना चाहते हो। तुम सत्य को वैसे ही पाना चाहते हो जैसे तुम हो। तुम कुछ भी बदलने को तैयार नहीं हो। तुम दो कदम बढ़ने को तैयार नहीं हो। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम एक कदम चलो तो परमात्मा हजार कदम तुम्हारी तरफ चलता है। लेकिन तुम एक कदम भी चलने को राजी नहीं हो। हालत तो और भी उलटी है। हालत तो ऐसी है कि परमात्मा अगर तुम्हारी तरफ चले तो तुम पीछे हट जाओगे।
एक मजिस्ट्रेट के सामने एक आदमी को पकड़कर लाया गया। क्योंकि वह कार चला रहा था और कोई साठ—सत्तर मील की रफ्तार से जा रहा था, जहा कि बीस मील की रफ्तार से जाने की ही आज्ञा थी, उससे ऊपर नहीं। उस आदमी ने कहा कि सिपाही गलत कह रहा है, ज्यादा से ज्यादा मैं पैंतीस—चालीस की रफ्तार से जा रहा था। मजिस्ट्रेट ने कहा, वह भी ज्यादा है, दुगुनी तो वह भी है। दंड तो उसमें भी होगा, क्योंकि बीस की आशा है, तुम चालीस से जा रहे थे।
लेकिन उसकी बगल में जो दूसरा आदमी बैठा था कार में, उसने कहा कि क्षमा करिए, जहा तक मैं समझता हूं, रफ्तार बीस—पच्चीस से ज्यादा नहीं थी। और उसकी पत्नी ने, जो पीछे बैठी थी, उसने कहा कि मैं भलीभांति जानती हूं कि मेरे पति दस—पंद्रह से ज्यादा की रफ्तार से चलाते ही नहीं।
इसके पहले कि चौथा आदमी जो कि पीछे की सीट पर बैठा था, वह बोले, मजिस्ट्रेट ने कहा, रुको। कहीं ऐसा न हो कि तुम यह कहने लगो कि यह आदमी गाड़ी को पीछे की तरफ ले जा रहा था। अब रुक जाओ, बस! क्योंकि तुम धीरे— धीरे पैंतालीस, चालीस, पच्चीस, पंद्रह पर आ गए, अब कहीं ऐसा न करना कि तुम पीछे गाड़ी को ले जा रहे थे, यह कहने लगो।
परमात्मा तुम्हारी तरफ आए, तो तुमने कभी पूछा है, तुम कहीं गाड़ी को पीछे की तरफ तो न ले जाने लगोगे? तुम हिम्मत से खड़े रहोगे अपनी जगह पर? तुम अपने हाथ आलिंगन के लिए फैलाओगे? क्योंकि मैं जानता हूं इसलिए ऐसा कह रहा हूं। बहुतों को मैं जानता हूं जिनके पास मैं गया हूं और वे पीछे हट गए हैं। इसलिए कह रहा हूं। तो अब कृपा करके मुझे उन पर काम करने दो जो पीछे नहीं हटेंगे, जिनका मुझे भरोसा है। और अगर मैं जाऊंगा उनकी तरफ, दो कदम बढ़कर स्वागत करेंगे। केवल उनमें ही प्रवेश हो सकेगा।
कल जो घटा है, एक तो बाहर से दिखायी पड़ने वाली घटना है कि मैं आंख बंद किए यहां बैठा हूं और लोग नाच रहे हैं। इतना तो कोई भी देख लेगा। इतना देखने के लिए तो कुछ भी आंख चाहिए नहीं। अंधा भी अंदाज लगा लेगा, अनुमान कर लेगा। छोटा बच्चा भी देख लेगा। इसके लिए कोई बहुत बुद्धिमानी की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर तुम्हारे पास थोड़ी भीतर की आंख हो तो तुम कुछ और देखोगे कि कुछ और घट रहा है। मैं एक तरंग में अपने को ले जा रहा हूं और मेरी तरंग के साथ कुछ लोग धीरे— धीरे डुबकी ले रहे हैं। उसमें मैं बाधा नहीं डालना चाहता।
इसलिए गैर—संन्यासी को अब धीरे— धीरे हक कम होते चले जाएंगे। जैसे—जैसे मेरे पास संन्यासियों की संख्या बड़ी होती जाएगी वैसे—वैसे गैर—संन्यासी के लिए हक कम होते जाएंगे। इसके पहले कि तुम्हारे हक बिलकुल खो जाएं, तुम जल्दी करो!

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