Monday 29 June 2015

क तो जिसे हम शरीर कहते हैं और जिसे हम आत्मा कहते हैं, ये ऐसी दो चीजें नहीं हैं कि जिनके बीच सेतु न बनता हो, ब्रिज न बनता हो। इनके बीच कोई खाई नहीं है, इनके बीच जोड़ है।
तो सदा से एक खयाल था कि शरीर अलग है, आत्मा अलग है; और ये दोनों इस भांति अलग हैं कि इन दोनों के बीच कोई सेतु, कोई ब्रिज नहीं बन सकता। न केवल अलग हैं, बल्कि विपरीत हैं एक—दूसरे से। इस खयाल ने धर्म और विज्ञान को अलग कर दिया था। धर्म वह था, जो शरीर के अतिरिक्त जो है उसकी खोज करे, और विज्ञान वह था, जो शरीर की खोज करे— आत्मा के अतिरिक्त जो है, उसकी खोज करे।
स्वभावत:, दोनों तरह की खोज एक को मानती और दूसरे को इनकार करती रही, क्योंकि विज्ञान जिसे खोजता था, उसे वह कहता था शरीर है, आत्मा कहां! और धर्म जिसे खोजता था, उसे वह मानता था : आत्मा है, शरीर कहां!
तो धर्म जब अपनी पूरी ऊंचाइयों पर पहुंचा तो उसने शरीर को इल्‍यूजन और माया कह दिया, कि वह है ही नहीं; आत्मा ही सत्य है, शरीर भ्रम है। और विज्ञान जब अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचा तो उसने कह दिया कि आत्मा तो एक झूठ, एक असत्य है, शरीर ही सब कुछ है। यह भ्रांति आत्मा और शरीर को अनिवार्य रूप से विरोधी तत्वों की तरह मानने से हुई।
अब मैंने सात शरीरों की बात कही। ये सात शरीर….. अगर पहला शरीर हम भौतिक शरीर मान लें और अंतिम शरीर आत्मिक मान लें, और बीच के पांच शरीरों को छोड़ दें, तो इनके बीच सेतु नहीं बन सकेगा। ऐसे ही जैसे जिन सीढ़ियों से चढ़कर आप आए हैं, ऊपर की सीढ़ी बचा लें और पहली सीढ़ी बचा लें नीचे की, और बीच की सीढ़ियों को छोड़ दें, तो आपको लगेगा कि पहली सीढ़ी कहां और दूसरी सीढ़ी कहां! बीच में खाई हो जाएगी। अगर आप सारी सीढ़ियों को देखें तो पहली सीढ़ी भी आखिरी सीढ़ी से जुड़ी है। और अगर ठीक से देखें तो आखिरी सीढ़ी पहली सीढ़ी का ही आखिरी हिस्सा है; और पहली सीढ़ी आखिरी सीढी का पहला हिस्सा है।

No comments:

Post a Comment