Monday 22 June 2015

म सबके भीतर है जन्म के साथ ही वह प्यास भी, वह भूख भी, लेकिन वह जाग नहीं पाती। बहुत कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यही है…….सबसे बडा कारण तो यही है कि जो बड़ी भीड़ है हमारे चारों तरफ, उस भीड़ में वह प्यास कहीं भी नहीं है। और अगर किसी व्यक्ति में उठती भी है तो वह उसे दबा लेता है, क्योंकि वह उसे पागलपन मालूम होती है। चारों तरफ जहां सारे लोग धन की प्यास से भरे हों, यश की प्यास से भरे हों, वहां धर्म की प्यास पागलपन मालूम पड़ती है। और चारों तरफ के लोग संदिग्ध हो जाते हैं कि कुछ दिमाग तो नहीं खराब हो रहा है! आदमी अपने को दबा देता है। उठ नहीं पाती, जग नहीं पाती सब तरफ से दमन हो जाता है। और जो हमने दुनिया बनाई है, उस दुनिया में हमने परमात्मा को जगह नहीं छोड़ी, क्योंकि जैसा मैंने कहा बड़ा खतरनाक है परमात्मा को जगह छोड़ना, हमने वह जगह नहीं छोड़ी है।
पत्नी डरती है कि कहीं पति के जीवन में परमात्मा न आ जाए। क्योंकि परमात्मा के आने से पत्नी तिरोहित भी हो सकती है। पति डरता है, कहीं पत्नी के जीवन में परमात्मा न आ जाए। क्योंकि अगर परमात्मा आ गया तो पति परमात्मा का क्या होगा? यह सब्‍स्‍टियूट परमात्मा कहां जाएगा? इसकी जगह कहां होगी?
हमने जो दुनिया बनाई है, उसमें परमात्मा को जगह नहीं रखी है। और परमात्मा वहां डिस्टरबिंग साबित होगा। वह अगर वहां आता है तो वहां गड़बड़ होगी। गड़बड़ सुनिश्चित है। वहां कुछ न कुछ अस्तव्यस्त होगा। वहां नींद टूटेगी, कहीं कुछ होगा कहीं कुछ चीजें बदलनी पड़ेगी। हम ठीक वही तो नहीं रह जाएंगे जो हम थे। तो इसलिए हमने उसे घर के बाहर छोड़ा है। लेकिन कहीं वह जग ही न जाए उसकी प्यास, इसलिए हमने झूठे परमात्मा अपने घरों में बना लिए—कि अगर किसी को जगे भी, तो यह रहे भगवान। एक पत्थर की मूर्ति खड़ी है, उसकी पूजा करो। ताकि असली भगवान की तरफ प्यास न चली जाए। तो सब्‍स्‍टियूट गॉड्स हमने पैदा किए हुए हैं। यह आदमी की सबसे बड़ी कनिंगनेस, सबसे बड़ी चालाकी, सबसे बड़ा षड्यंत्र है। परमात्मा के खिलाफ जो बड़े से बड़ा षड्यंत्र है, वह आदमी के बनाए हुए परमात्मा हैं।
इनकी वजह से जो प्यास उसकी खोज में जाती, वह उसकी खोज में न जाकर मंदिरों और मस्जिदों के आसपास भटकने लगती है, जहां कुछ भी नहीं है। और जब वहां कुछ भी नहीं मिलता तो आदमी को लगता है कि इससे तो अपना वह घर ही बेहतर; इस मंदिर और मस्जिद में क्या रखा हुआ है! तो मंदिर—मस्जिद हो आता है, घर लौट आता है। उसे पता नहीं कि मंदिर— मस्जिद बहुत धोखे की ईजाद हैं।
मैंने तो सुना है कि एक दिन शैतान ने लौटकर अपनी पत्नी को कहा कि अब मैं बिलकुल बेकार हो गया हूं अब मुझे कोई काम ही न रहा। उसकी पत्नी बहुत हैरान हुई, जैसे कि पत्‍निया हैरान होती हैं अगर कोई बेकार हो जाए। उसकी पत्नी ने कहा, आप और बेकार! लेकिन आप कैसे बेकार हो गए? आपका काम तो शाश्वत है! लोगों को बिगाड़ने का काम तो सदा चलेगा; यह बंद तो होनेवाला नहीं। यह कैसे बंद हो गया? आप कैसे बेकार हो गए? उस शैतान ने कहा, मैं बेकार बड़ी मुश्किल से हो गया, बड़े अजीब ढंग से हो गया। अब मेरा जो काम था वह मंदिर और मस्जिद, पंडित और पुजारी कर देते हैं; मेरी कोई जरूरत नहीं है। आखिर भगवान से ही लोगों को भटकाता था। अब भगवान की तरफ कोई जाता ही नहीं! बीच में मंदिर खड़े हैं, वहीं भटक जाता है। हम तक कोई आता ही नहीं मौका कि हम भगवान से भटकाएं।
परमात्मा की प्यास तो है। और बचपन से ही हम परमात्मा के संबंध में कुछ सिखाना शुरू कर देते हैं, उससे नुकसान होता है; जानने के पहले यह भ्रम पैदा होता है कि जान लिया। हर आदमी परमात्मा को जानता है! प्यास पैदा ही नहीं हो पाती और हम पानी पिला देते हैं। उससे ऊब पैदा हो जाती है और घबड़ाहट पैदा हो जाती है। परमात्मा अरुचिकर हो जाता है हमारी शिक्षाओं के कारण; कोई रुचि नहीं रह जाती। और इतना ठूंस देते हैं, दिमाग को ऐसा स्टफ कर देते हैं—गीता, कुरान, बाइबिल से, महात्माओं से, साधुओं—संतों से, वाणियों से इस बुरी तरह सिर भर देते हैं कि मन यह होता है कि कब इससे छुटकारा हो। तो परमात्मा तक जाने का सवाल नहीं उठता।
हमने जो व्यवस्था की है वह ईश्वर—विरोधी है, इसलिए प्यास बड़ी मुश्किल हो गई। और अगर कभी उठती है तो आदमी फौरन पागल मालूम होने लगता है। तत्काल पता चलता है कि यह आदमी पागल हो गया है, क्योंकि वह हम सबसे भिन्न हो जाता है। वह और ढंग से जीने लगता है; वह और ढंग से श्वास लेने लगता है; सब उसका तौर—तरीका बदल जाता है। वह हमारे बीच का आदमी नहीं रह जाता, वह स्ट्रेजर हो जाता है, वह अजनबी हो जाता है।
हमने जो दुनिया बनाई है, वह ईश्वर—विरोधी है। बड़ा पक्का षड्यंत्र है। और अभी तक हम सफल ही रहे हैं। अभी तक हम सफल ही हुए चले जा रहे हैं। हम ईश्वर को बिलकुल बाहर कर दिए हैं। उसकी ही दुनिया से हमने उसे बिलकुल बाहर किया हुआ है। और हमने एक जाल बनाया है जिसके भीतर उसके घुसने के लिए हमने कोई दरवाजा नहीं छोड़ा है। तो प्यास कैसे जगे? लेकिन, प्यास भला न जगे, प्यास का भला पता न चले, लेकिन तड़पन भीतर और गहरी घूमती रहती है जिंदगी भर। यश मिल जाता है, फिर भी लगता है कुछ खाली रह गया; धन मिल जाता है और लगता है कि कुछ अनमिला रह गया; प्रेम मिल जाता है और लगता है कि कुछ छूट गया जो नहीं मिला, नहीं पाया जा सका।

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