Saturday 20 June 2015

पूछा जा रहा है कि ओशो कुंडलिनी जाग्रत हो तो कभी— कभी किन्हीं केंद्रों पर अवरोध हो जाता है? रुक जाती है। तो उसके रुक जाने का कारण क्या है? और गति देने का उपाय क्या है?
कारण कुछ और नहीं सिर्फ एक है कि हम पूरी शक्ति से नहीं पुकारते और पूरी शक्ति से नहीं जगाते। हम सदा ही अधूरे हैं और आशिक हैं। हम कुछ भी करते हैं तो आधा—आधा, हाफ हाटेंडली करते हैं। हम कुछ भी पूरा नहीं कर पाते। बस इसके अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। अगर हम पूरा कर पाएं तो कोई बाधा नहीं है।
लेकिन हमारी पूरे जीवन में सब कुछ आधा करने की आदत है। हम प्रेम भी करते हैं तो आधा करते हैं। और जिसे प्रेम करते हैं उसे घृणा भी करते हैं। बहुत अजीब सा मालूम पड़ता है कि जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे घृणा भी करते हैं। और जिसे हम प्रेम करते हैं और जिसके लिए जीते हैं, उसे हम कभी मार डालना भी चाहते हैं। ऐसा प्रेमी खोजना कठिन है जिसने अपनी प्रेयसी के मरने का विचार न किया हो। ऐसा हमारा मन है, आधा—आधा। और विपरीत आधा चल रहा है। जैसे हमारे शरीर में बायां और दायां पैर है, वे दोनों एक ही तरफ चलते हैं, लेकिन हमारे मन के बाएं—दाएं पैर उलटे चलते हैं। वही हमारा तनाव है। हमारे जीवन की अशांति क्या है? कि हम हर जगह आधे हैं।
अब एक युवक मेरे पास आया, और उसने मुझे कहा कि मुझे बीस साल से आत्महत्या करने का विचार चल रहा है। तो मैंने कहा, पागल, कर क्यों नहीं लेते हो? बीस साल बहुत लंबा वक्त है। बीस साल से आत्महत्या का विचार कर रहे हो तो कब करोगे? मर जाओगे पहले ही, फिर करोगे? वह बहुत चौंका। उसने कहा, आप क्या कहते हैं? मैं तो आया था कि आप मुझे समझाएंगे कि आत्महत्या मत करो। मैंने कहा, मुझे समझाने की जरूरत है? बीस साल से तुम कर ही नहीं रहे हो! और उसने कहा कि जिसके पास भी मैं गया वही मुझे समझाता है कि ऐसा कभी मत करना। मैंने कहा, उन समझाने वालों की वजह से ही न तो तुम जी पा रहे हो और न तुम मर पा रहे हो; आधे—आधे हो गए हो। या तो मरो या जीओ। जीना हो तो फिर आत्महत्या का खयाल छोड़ो, और जी लो। और मरना हो तो मर जाओ, जीने का खयाल छोड़ दो।
वह दो—तीन दिन मेरे पास था। रोज मैं उससे यही कहता रहा कि अब तू जीवन का खयाल मत कर, बीस साल से सोचा है मरने का तो मर ही जा। तीसरे दिन उसने मुझसे कहा, आप कैसी बातें कर रहे हैं? मैं जीना चाहता हूं। तो मैंने कहा, मैं कब कहता हूं कि तुम मरो। तुम ही पूछते थे कि मैं बीस साल से मरना चाहता हूं।
अब यह थोडा सोचने जैसा मामला है. कोई आदमी बीस साल तक मरने का सोचे, तो यह आदमी मरा तो है ही नहीं, जी भी नहीं पाया है। क्योंकि जो मरने का सोच रहा है, वह जीएगा कैसे? हम आधे—आधे हैं। और हमारे पूरे जीवन में आधे—आधे होने की आदत है। न हम मित्र बनते किसी के, न हम शत्रु बनते, हम कुछ भी पूरे नहीं हो पाते।
और आश्चर्य है कि अगर हम पूरे भी शत्रु हों तो आधे मित्र होने से ज्यादा आनंददायी है।
असल में, पूरा होना कुछ भी आनंददायी है। क्योंकि जब भी व्यक्तित्व पूरा का पूरा उतरता है, तो व्यक्तित्व में सोई हुई सारी शक्तियां साथ हो जाती हैं। और जब व्यक्तित्व आपस में बंट जाता है, स्जिट हो जाता है, दो टुकड़े हो जाता है, तब हम आपस में भीतर ही लड़ते रहते हैं। अब जैसे कुंडलिनी जाग्रत न हो, बीच में अटक जाए, तो उसका केवल एक मतलब है कि आपके भीतर जगाने का भी खयाल है, और जग जाए, इसका डर भी।
आप चले भी जा रहे हैं मंदिर की तरफ, और मंदिर में प्रवेश की हिम्मत भी नहीं है। दोनों काम कर रहे हैं। आप ध्यान की तैयारी भी कर रहे हैं और ध्यान में उतरने का, ध्यान में छलांग लगाने का साहस भी नहीं जुटा पाते हैं। तैरने का मन है, नदी के किनारे पहुंच गए हैं, और तट पर खड़े होकर सोच रहे हैं। तैरना भी चाहते हैं, पानी में भी नहीं उतरना चाहते! इरादा कुछ ऐसा है कि कहीं कमरे में गद्दा—तकिया लगाकर, उस पर लेटकर हाथ—पैर फड़फड़ाकर तैरने का मजा मिल जाए तो ले लें।
नहीं, पर गद्दे—तकिए पर तैरने का मजा नहीं मिल सकता। तैरने का मजा तो खतरे के साथ जुड़ा है।
आधापन अगर है तो कुंडलिनी में बहुत बाधा पड़ेगी। इसलिए अनेक मित्रों को अनुभव होगा कि कहीं चीज जाकर रुक जाती है। रुक जाती है तो एक ही बात ध्यान में रखना, और कोई बहाने मत खोजना। बहुत तरह के बहाने हम खोजते है—कि पिछले जन्म का कर्म बाधा पड़ रहा होगा, भाग्य बाधा पड़ रहा होगा, अभी समय नहीं आया होगा। ये हम सब बातें सोचते हैं ये सब बातें कोई भी सच नहीं हैं। सच सिर्फ एक बात है कि आप पूरी तरह जगाने में नहीं लगे हैं। अगर कहीं भी कोई अवरोध आता हो, तो समझना कि छलांग पूरी नहीं ले रहे हैं। और ताकत से कूदना, अपने को पूरा लगा देना, अपने को समग्रीभूत छोड़ देना। तो किसी केंद्र पर, किसी चक्र पर कुंडलिनी रुकेगी नहीं। वह तो एक क्षण में भी पार कर सकती है पूरी यात्रा, और वर्षों भी लग सकते हैं। हमारे अधूरेपन की बात है। अगर हमारा मन पूरा हो तो अभी एक क्षण में भी सब हो सकता है।
कहीं भी रुके तो समझना कि हम पूरे नहीं हैं, तो पूरा साथ देना, और शक्ति लगा देना। और शक्ति की अनंत—अनंत सामर्थ्य हमारे भीतर है। हमने कभी किसी काम में कोई बड़ी शक्ति नहीं लगाई है। हम सब ऊपर—ऊपर जीते हैं। हमने अपनी जड़ों को कभी पुकारा ही नहीं। इसीलिए बाधा पड़ सकती है। और ध्यान रहे, और कोई बाधा नहीं है।

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