Sunday 21 June 2015

एक मित्र पूछते हैं कि ओशो जन्म के साथ ही भूख होती है नीदं होती है प्यास होती है लेकिन प्रमु की प्यास तो होता है?
स बात को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। प्यास तो प्रभु की भी जन्म के साथ ही होती है, लेकिन पहचानने में बड़ा समय लग जाता है। जैसे उदाहरण के लिए बच्चे सभी सेक्स के साथ पैदा होते हैं, लेकिन पहचानने में चौदह साल लग जाते हैं। काम की, सेक्स की भूख तो जन्म के साथ ही होती है, लेकिन चौदह—पंद्रह साल लग जाते हैं उसकी पहचान आने में। और पहचान आने में चौदह—पंद्रह साल क्यों लग जाते हैं? प्यास तो भीतर होती है, लेकिन शरीर तैयार नहीं होता। चौदह साल में शरीर तैयार होता है, तब प्यास जग पाती है। अन्यथा सोई पड़ी रहती है।
परमात्मा की प्यास भी जन्म के साथ ही होती है, लेकिन शरीर तैयार नहीं हो पाता। और जब भी शरीर तैयार हो जाता है तब तत्काल जग जाती है। तो कुंडलिनी शरीर की तैयारी है। लेकिन आप कहेंगे कि यह अपने आप क्यों नहीं होता?
कभी—कभी अपने आप होता है। लेकिन—इसे समझ लें— मनुष्य के विकास में कुछ चीजें पहले व्यक्तियों को होती हैं, फिर समूह को होती हैं। जैसे उदाहरण के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि पूरे वेद को पढ़ जाएं, ऋग्वेद को पूरा देख जाएं, तो ऐसा नहीं लगता कि ऋग्वेद में सुगंध का कोई बोध है। ऋग्वेद के समय के जितने शास्त्र हैं सारी दुनिया में, उनमें कहीं भी सुगंध का कोई भाव नहीं है। फूलों की बात है, लेकिन सुगंध की बात नहीं है। तो जो जानते हैं, वे कहते हैं कि ऋग्वेद के समय तक आदमी की सुगंध की जो प्यास है वह जाग नहीं पाई थी। फिर कुछ लोगों को जागी।
अभी भी सुगंध मनुष्यों में बहुत कम लोगों को ही अर्थ रखती है, बहुत कम लोगों को। अभी सारे लोगों में सुगंध की इंद्रिय पूरी तरह जाग नहीं पाई है। और जितनी विकसित कौंमें हैं, उतनी ज्यादा जाग गई है, जितनी अविकसित कौमें हैं, उतनी कम जागी है। कुछ तो कबीले अभी भी दुनिया में ऐसे हैं जिनके पास सुगंध के लिए कोई शब्द नहीं है। पहले कुछ लोगों को सुगंध का भाव जागा, फिर वह धीरे— धीरे गति की और वह कलेक्टिव माइंड, सामूहिक मन का हिस्सा बना।
और भी बहुत सी चीजें धीरे— धीरे जागी हैं, जो कभी नहीं थीं, एक दिन था कि नहीं थीं। रंग का बोध भी बहुत हैरान करनेवाला है। अरस्तू ने अपनी किताबों में तीन रंगों की बात की है। अरस्तू के जमाने तक यूनान में लोगों को तीन रंगों का ही बोध होता था। बाकी रंगों का कोई बोध नहीं होता था। फिर धीरे— धीरे बाकी रंग दिखाई पड़ने शुरू हुए। और अभी भी जितने रंग हमें दिखाई पड़ते हैं, उतने ही रंग हैं, ऐसा मत समझ लेना। रंग और भी हैं, लेकिन अभी बोध नहीं जगा। इसलिए कभी एल एस डी, या मेस्कलीन, या भांग, या गांजा के प्रभाव में बहुत से और रंग दिखाई पड़ने शुरू हो जाते हैं, जो हमने कभी भी नहीं देखे हैं। और रंग हैं अनंत। उन रंगों का बोध भी धीरे— धीरे जाग रहा है।
अभी भी बहुत लोग हैं जो कलर ब्लाइंड हैं। यहां अगर हजार मित्र आए हों, तो कम से कम पचास आदमी ऐसे निकल आएंगे जो किसी रंग के प्रति अंधे हैं। उनको खुद पता नहीं होगा। उनको खयाल भी नहीं होगा। कुछ लोगों को हरे और पीले रंग में कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ता। साधारण लोगों को नहीं, कभी—कभी बड़े असाधारण लोगों को, बर्नार्ड शॉ को खुद कोई फर्क पता नहीं चलता था हरे और पीले रंग में। और साठ साल की उम्र तक पता नहीं चला कि उसको पता नहीं चलता है। वह तो पता चला साठवीं वर्षगांठ पर किसी ने एक सूट भेंट किया। वह हरे रंग का था। सिर्फ टाई देना भूल गया था, जिसने भेंट किया था। तो बर्नार्ड शॉ बाजार टाई खरीदने गया। वह पीले रंग की टाई खरीदने लगा। तो उस दुकानदार ने कहा कि अच्छा न मालूम पड़ेगा इस हरे रंग में यह पीला। उसने कहा कि क्या कह रहे हैं? बिलकुल दोनों एक से हैं। उस दुकानदार ने कहा, एक से! आप मजाक तो नहीं कर रहे? क्योंकि बर्नार्ड शॉ आमतौर से मजाक करता था। सर, आप मजाक तो नहीं कर रहे? इन दोनों को एक रंग कह रहे हैं आप! यह पीला है, यह हरा है। उसने कहा, दोनों हरे हैं। पीला यानी? तब बर्नार्ड शॉ ने आंख की जांच करवाई तो पता चला पीला रंग उसे दिखाई नहीं पड़ता; पीले रंग के प्रति वह अंधा है।
एक जमाना था कि पीला रंग किसी को दिखाई नहीं पड़ता था। पीला रंग मनुष्य की चेतना में नया रंग है। तो बहुत से रंग नये आए हैं मनुष्य की चेतना में। संगीत सभी को अर्थपूर्ण नहीं है, कुछ को अर्थपूर्ण है। उसकी बारीकियों में कुछ लोगों को बड़ी गहराइयां हैं। कुछ के लिए सिर्फ सिर पीटना है। अभी उनके लिए स्वर का बोध गहरा नहीं हुआ है। अभी मनुष्य—जाति के लिए संगीत सामूहिक अनुभव नहीं बना। और परमात्मा तो बहुत ही दूर, आखिरी, अतींद्रिय अनुभव है। इसलिए बहुत थोड़े से लोग जाग पाते हैं। लेकिन सबके भीतर जागने की क्षमता जन्म के साथ है।
लेकिन जब भी हमारे बीच कोई एक आदमी जाग जाता है, तो उसके जागने के कारण भी हममें बहुतों की प्यास जो सोई हो वह जागना शुरू हो जाती है। जब कभी कोई एक कृष्ण हमारे बीच उठ आता है, तो उसे देखकर भी, उसकी मौजूदगी में भी हमारे भीतर जो सोया है वह जागना शुरू हो जाता है।

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