Thursday 9 April 2015

चेतना की पूरी अलग ही गुणवत्ता है जो नहीं सोचने से आती है: न ठीक, न गलत से, बस नहीं सोचने की दशा। तुम बस देखते हो, तुम बस होशपूर्ण होते हो, लेकिन तुम सोचते नहीं। और यदि कोई विचार आता है...वे आते हैं, क्योंकि विचार तुम्हारे नहीं हैं, वे बस हवा में तैर रहे हैं। यहां चारों तरफ विचार तैर रहे हैं, विचारों का क्षेत्र तैयार हो गया है। ऐसे ही जैसे कि यहां हवा है, तुम्हारे चारों तरफ पर विचार हैं, और ये स्वतः घुसते चले जाते हैं। यह तभी रुकते हैं जब तुम अधिक से अधिक होश से भरते हो। इसमें कुछ ऐसा है ः यदि तुम अधिक होश से भरते हो, विचार विलीन हो जाते हैं, वे पिघल जाते हैं, क्योंकि होश की ऊर्जा विचारों से अधिक बड़ी है। 

होश विचारों के लिए आग की तरह है। यह ऐसे ही है जैसे कि तुम घर में दीपक जलाओ और अंधेरा प्रवेश नहीं कर सकता, तुम प्रकाश को बंद कर दो--चारों तरफ से अंधेरा प्रवेश कर जाता है; बगैर एक मिनट लिए, एक क्षण भी लिए, वह वहां होता है। जब घर में प्रकाश जलता है, अंधेरा प्रवेश नहीं कर सकता। विचार अंधेरे की तरह होते हैं :वे तब ही प्रवेश करते हैं जब भीतर प्रकाश न हो। होश आग है: तुम अधिक होश से भरते हो, कम से कम विचार प्रवेश करते हैं। यदि तुम अपने होश से पूरे एकीकृत हो जाते हो, विचार तुम्हारे में प्रवेश नहीं करते; तुम अभेद्य दुर्ग हो गए, कुछ भी प्रवेश नहीं कर सकता। ऐसा नहीं है कि तुम बंद हो गए, याद रखना--तुम पूरी तरह से खुले हो; पर तुम्हारी ऊर्जा दुर्ग बन जाती है। और जब कोई विचार तुम्हारे में प्रवेश नहीं कर सकता, वे आएंगे और तुम्हारे पास से गुजर जाएंगे। तुम उन्हें आते देखोगे, और बस, जब वे तुम्हारे करीब आएंगे वे मुड़ जाएंगे। तब तुम किसी तरफ मुड़ सकते हो, तब तुम नर्क में भी चले जाओ--तुम्हें कुछ भी छू नहीं सकता। बुद्धत्व का यही अर्थ है। 


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