ओशो कहते हैं, ‘‘महावीर एक बहुत बड़ी संस्कृति के अंतिम व्यक्ति हैं, जिस संस्कृति का विस्तार कम से कम दस लाख वर्ष है।’’ यद्यपि महावीर केन्द्र पर हैं, परंतु उनके माध्यम से जैन धर्म के अनेक विविध आयामों एवं रहस्यों को ओशो ने अपनी वाणी द्वारा समकालीन एवं बोधगम्य बना दिया है। प्रज्ञापुरुष ओशो द्वारा दिये गये ये प्रवचन केवल महावीर के अनुयायी जैन समाज के लिये ही उपयोगी नहीं हैं। कोई भी व्यक्ति जो स्वयं के रुपांतरण में उत्सुक है, जो अपनी मूर्छा से बाहर निकलकर जागृत जीवन जीना चाहता है उसके लिये महावीर के सूत्रों पर ओशो के अमृत वचन अत्यंत कारगर सिद्ध हो सकते हैं। ओशो स्मरण दिलाते हैं : ‘‘महावीर की दृष्टि में मनुष्य का उत्तरदायित्व चरम है। दुख है तो तुम कारण हो, सुख है तो तुम कारण हो। बंधे हो तो तुमने बंधना चाहा है। मुक्त होना चाहो, मुक्त हो जाओगे। कोई मनुष्य को बांधता नहीं, कोई मनुष्य को मुक्त नही करता।’’
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