Tuesday 7 April 2015

मन का कोई अस्तित्व नहीं होता--पहली तो बात यहहै। सिर्फ विचार होते हैं। दूसरी बात : विचार तुमसे अलग होते हैं, वे ऐसी वस्तु नहींहै जो तुम्हारे स्वभाव के साथ एकाकार हो; वे आते हैं और चले जाते हैं--तुम बने रहते हो, तुम स्थिर होते हो। तुम ऐसे हो जैसे कि आसमान: यह कभी आता नहीं, कभी जाता नहीं, यह हमेशा यहांहै। बादल आते हैं और जाते हैं, वे क्षणिक घटना हैं, वे अनंत नहीं हैं। तुम विचार को पकड़ने का प्रयास भी करो, तुम लंबे समय तक रोक नही सकते; उसे जाना ही होगा, उसका अपना जन्म और मृत्युहै। विचार तुम्हारे नहीं हैं, वे तुम्हारे नहीं होते हैं। वे आगंतुक की तरह आते हैं, लेकिन वे मेजबान नहीं हैं। 


गहरे से देखो, तब तुम मेजबान बन जाओगे और विचार मेहमान हो जाएंगे। और मेहमान की तरह वे सुंदर हैं, लेकिन यदि तुम पूरी तरह से भूल जाते हो कि तुम मेजबान हो और वे मेजबान बन जाते हैं, तब तुम मुश्किल में पड़ जाते हो। यही नर्कहै। तुम घर के मालिक हो, घर तुम्हाराहै, और मेहमान मालिक बन गए हैं। उनका स्वागत करो, उनका ध्यान रखो, लेकिन उनके साथ तादात्म्य मत बनाओ; वर्ना वे मालिक बन जाएंगे।

मन समस्या बन गयाहै क्योंकि तुमने विचारों को अपने भीतर इतना गहरे ले लियाहै कि तुम अंतराल को पूरी तरह से भूल गए हो; भूल गए कि वे आगंतुक हैं, वे आते हैं और जाते हैं। हमेशा ध्यान रहे कि जोहै वह तुम्हारा स्वभावहै, तुम्हारा ताओ। हमेशा उसके प्रति सजग रहो जो न कभी आताहै न कभी जाताहै, ऐसे ही जैसे आकाश। गेस्टाल्ट को बदलो: आगंतुक पर ध्यान मत दो, मेजबान के साथ बने रहो; आगंतुक आएंगे और जाएंगे। 

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