Wednesday 8 April 2015

तुलना रुग्णता है, बहुत बड़ी रुग्णता है। प्रारंभ से ही हमें तुलना करना सिखाया जाता है। तुम्हारी मां तुम्हारी तुलना दूसरे बच्चों से करने लगती है। तुम्हारे पिता तुलना करते हैं। शिक्षक कहते हैं, "गोपाल को देखो, वह कितना अच्छा है, और तुम कुछ भी ठीक नहीं रहे हो!' 

शुरुआत से ही तुम्हें कहा गया है कि स्वयं की तुलना दूसरों से करो। यह बड़ी से बड़ी रुग्णता है; यह कैंसर की तरह है जो तुम्हारी आत्मा को नष्ट किए चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है, और तुलना संभव नहीं है। मैं बस मैं हूं और तुम बस तुम। दुनिया में कोई नहीं है जिसके साथ तुलना की जाए। क्या तुम गेंदे की तुलना गुलाब से करते हो? तुम तुलना नहीं करते। क्या तुम आम की तुलना सेव फल से करते हो? तुम तुलना नहीं करते। तुम जानते हो कि वे असमान हैं--तुलना संभव नहीं है। 

मनुष्य कोई वर्ण नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है। तुम्हारे जैसा व्यक्ति पहले कभी नहीं हुआ और फिर से कभी नहीं होगा। तुम पूरी तरह से अद्वितीय हो। यह तुम्हारा विशेषाधिकार है, तुम्हारा खास हक है, जीवन का आशीर्वाद है--कि इसने तुम्हें अद्वितीय बनाया। 

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