Saturday 5 December 2015

भवसागर से पार उतरकर परम आत्मा में लीन होने के लिए जड़भक्ति
मूढूभक्ति एवं अंधभक्ति में से किसका सहारा लिया जाये?

प्रश्न ही भक्त का नहीं मालूम होता। भक्ति को गालियां दे रहे हो। कहते हो—जड़भक्ति, मूढ्भक्ति, अंधभक्ति। प्रश्न ही भक्त का नहीं है।
प्रश्न तो ज्ञानी का मालूम पड़ता है।
भक्त तो एक ही भक्ति जानता है। भक्ति के विश्लेषण भी ज्ञानियों ने किये हैं, भक्तों ने नहीं किये हैं। कितने प्रकार की भक्ति है यह भी विश्लेषण ज्ञानियों का है, भक्तों का नहीं। भक्त को क्या पता! भक्त तो विभक्ति जानता ही नहीं, विभाजन जानता ही नहीं। भक्त तो कोटियां जानता ही नहीं। भक्त तो एक को ही जानता है, दो को नहीं जानता। भक्त का हिसाब एक से आगे जाता ही नहीं।
कहते हैं, जीसस को स्कूल में पढ़ने बिठाया गया। ईसाइयों में तो यह कहानी खो गई है लेकिन सूफियों ने बचा रखी है। कुछ कहानियां सूफियों के पास हैं जीसस की, जो ईसाइयों के पास खो गई हैं। और बड़ी अदभुत कहानियां हैं। उनमें एक कहानी यह है कि जीसस को स्कूल पढ़ने भेजा गया। संख्या सिखाने की कोशिश की शिक्षक ने और वे एक पर अटक रहे। और उन्होंने कहा, जब तक तुम एक को न समझा दो तब तक दो पर क्या जाना!
और शिक्षक एक को न समझा सका। अब एक को समझाने के लिए तो कोई बुद्ध, कोई कृष्ण हो तो समझा सके। एक को समझाना तो बड़ी कठिन बात है। दो बिलकुल सरल, तीन और सरल चार और सरल। जैसी संख्या बड़ी होती जाती है वैसे समझाना आसान होता जाता है। मगर एक को कैसे समझाओ?
तुमने देखा, इस जगत में सरल चीजों को समझाना सबसे ज्यादा कठिन है। अगर कोई पूछे, दो क्या? तो तुम कह दो, एक और एक दो। एक और एक मिलकर दो। एकफएक म दो। कुछ तो उत्तर हो सकता है। लेकिन एक क्या? विभाजन नहीं होता तो उत्तर नहीं होता।
कोई तुमसे पूछे, पीला रंग क्या? तो तुम क्या कहोगे? तुम कहोगे, पीला रंग यानी पीला रंग। अब इसमें और क्या है बताने को? तुमसे कोई पूछे, इंद्रधनुष क्या? तो तुम कहोगे सात रंग। तुम सातों रंगों का नाम ले दो, सिलसिला बता दो, क्रमवार गिनती करवा दो। मगर कोई पूछे पीला रंग? अब पीला रंग बड़ा सरल मामला है। सरल इस जगत में सर्वाधिक कठिन सिद्ध होता है। कठिन का तो विश्लेषण हो सकता है क्योंकि कठिन काफ्लेक्स होता है। कठिन में तो कई चीजें मिली होती हैं तो कुछ उपाय होता है। कुछ कह सकते हो।
जीसस अटक रहे। जीसस ने कहा, एक को तो समझाओ फिर दो पर चलें। क्योंकि तुम कहते हो, दो का मतलब होता है एक+एक, और अभी एक समझे ही नहीं। कहते हैं, शिक्षक बहुत नाराज हो गया। मां —बाप से उसने शिकायत की कि इस बच्चे को अलग करो। यह खुद तो पढ़ेगा नहीं, दूसरों को भी पढ़ने नहीं देगा। यह कहां की फिजूल बकवास लगाता है कि एक का मतलब क्या? अब किसको पता है कि एक का मतलब क्या? जितना पता है वह कामचलाऊ है।
शिक्षक बेचारा शिक्षक! जीसस ने एक ऐसी बात पूछ ली, जो कि आखिरी है। पहले दिन पूछ ली स्कूल में। यह तो विश्वविद्यालय चुक जाते हैं तब भी नहीं चुकती। यह तो जीवन के अंतिम चरण में ही रहस्य खुलता है कि एक यानी क्या!
भक्त का अर्थ होता है, जो एक में जीने लगा। उसके पास तो दो नहीं हैं। उसने तो एक को पहचान लिया।
तो इस प्रश्न में थोड़ी—सी ज्ञान की झलक है। और ज्ञान भक्ति में बाधा है। क्योंकि भक्ति का अर्थ है, प्रेम। इसलिए ज्ञानी भक्त को कहते हैं अंधा। क्योंकि उनको लगता है कि प्रेम तो अंधा होता है। प्रेम अंधा है भी—ज्ञानी के हिसाब से। मगर जानी है कौन प्रेम के संबंध में हिसाब लगानेवाला? जो प्रेम को जानते हों वही कुछ कहें। उन्हीं की बात सुनूं।
ज्ञानी को कोई हक भी नहीं है प्रेम के संबंध में कुछ कहने का। जानते ही नहीं प्रेम को, प्रेम के संबंध में कहोगे क्या? ज्ञान के संबंध में कुछ कहो, ठीक। लेकिन ज्ञानी हर चीज के संबंध में कुछ न कुछ कहता है। वह हर चीज को ज्ञान का विषय बना लेता है, विश्लेषण कर देता है। तो ज्ञानियों ने विश्लेषण कर दिया है कि भक्ति कितने प्रकार की, प्रेम कितने प्रकार का, ऐसी भक्ति, वैसी भक्ति और भक्ति का उन्हें कुछ पता नहीं। भक्ति तो बस एक प्रकार की—एकरस। उसमें दूसरा रस ही नहीं है। उसमें दूजा नहीं है, दूसरा रस कैसे होगा? प्रेमगली अति सीकरी ता में दो न समाय।
तो तुम यह फिक्र छोड़ो कि जड़भक्ति कि मूढ़भक्ति कि अंधभक्ति कि विक्षिप्त भक्ति, यह छोड़ो तुम फिक्र; भक्ति काफी है। और उस भक्ति में ये सब चीजें अपने आप आ जायेंगी। तुम एक दफा भक्त तो हो जाओ, अंधे अपने आप हो जाओगे। सारी दुनिया तुमको अंधा कहेगी, तुम नहीं अंधे हो जाओगे। तुम्हें तो आंखें मिल जायेंगी। तुम्हें तो वह दिखाई पड़ने लगेगा जो साधारण आंखों से दिखाई ही नहीं पड़ता। अदृश्य तुम्हारे लिए दृश्य बनने लगेगा। अगोचर गोचर हो जायेगा। जिसे कभी किसी ने नहीं छुआ उसका स्पर्श अनुभव होने लगेगा। लेकिन दुनिया तुम्हें अंधा कहेगी। दुनिया न मान सकेगी। क्योंकि दुनिया अंधी है। और दुनिया तुम्हें अंधा कहेगी।

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