Wednesday 16 December 2015

भगवान,
कोई इंसान इंसान को भला क्या देता है
आदमी सिर्फ बहाना है, बस खुदा देता है
वह जहन्नुम भी दे तो करूं शुक्र अदा
कोई अपना ही समझकर तो सजा देता है

रि भारती! बात तो पते की कही है, मगर तुम्हारी अपनी नहीं है! पते की है। जिसने कही होगी, जानी होगी। उसके लिए पते की। तुम्हारे लिए तो खतरनाक भी हो सकती है।
तुम कहते हो:
कोई इंसान इंसान को भला क्या देता है
आदमी सिर्फ बहाना है, बस खुदा देता है
जिसने जान कर कहा, ठीक कहा। लेकिन अनजान के हाथ में इसका अर्थ बिलकुल उलटा हो जाएगा। जिसने जानकर कहा, उसका तो अर्थ यह है कि खुदा ही है, आदमी है कहां! इसलिए आदमी क्या देगा। और क्या लेगा! देने वाला भी वही है, लेने वाला भी वही है।
लेकिन जब न जानने वाला इस शब्द को पकड़ेगा, तो उसका अर्थ यह होता है कि आदमी में क्या रखा है! आदमी क्या ले—दे सकता है! जब देने वाला तो खुदा है। तो तुम आदमी के प्रति कृतज्ञता छोड़ दोगे, प्रेम छोड़ दोगे, अनुग्रह का भाव छोड़ दोगे। यह तुम्हारी आदमी के प्रति निंदा बन जाएगी। कोई इंसान इंसान को भला क्या देता है! इसलिए किसी इंसान के चरणों में क्यों झुकना? और किसी इंसान को धन्यवाद क्यों देना? देने वाला तो खुदा है! यह खुदा सिर्फ तुम्हारा बहाना है। यह आदमी को धन्यवाद न देना पड़े, इसलिए अच्छी आड़ हो गई; सुंदर आड़ हो गई, बड़ी प्यारी आड़ खोज ली! लोग बहुत जालसाज है इस मामले में। अनजाने होता है यह, मूर्च्छा में होता है।
लेकिन आदमी से अगर खुदा ही देता है, अगर आदमी के भीतर भी खुदा ही है, तब तो फिर आदमी—आदमी के चरण में झुको। फिर तो जो मिल जाए उसके चरण में झुको। क्योंकि परमात्मा ही है और तो कोई है नहीं!
ये दो अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ कि सब में परमात्मा है। इसलिए पत्थर के सामने भी झुक जाओ। इसलिए बुरे—से—बुरे आदमी में भी परमात्मा है। कैसे ही गंदे वस्त्र उसने पहन रखे हों, परमात्मा है। किसी शक्ल में आए, परमात्मा है।
शिरडी के साईं बाबा के पास एक ब्राह्मण रोज भोजन लेकर आता था। वे रहते मस्जिद में थे। किसी को पता नहीं वे हिंदू थे कि मुसलमान। ऐसे लोगों के बाबत पता लगाना मुश्किल भी होता है। अब तुम मेरे बाबत कभी पता लगा पाओगे कि मैं हिंदू हूं कि मुसलमान; कि ईसाई, कि बौद्ध, कि यहूदी, कि पारसी! तुम कभी पता न लगा पाओगे। क्यों? क्योंकि ऐसे व्यक्ति तो किसी सीमा में आबद्ध होते ही नहीं।…रहते थे मस्जिद में और यह ब्राह्मण रोज भोजन लाता। इसका नियम था: जब तक साईं बाबा को भोजन न करा ले, तब तक खुद भोजन न करे। कभी देर भी हो जाती। कभी साईं बाबा मस्त हैं भजन में! और कभी मस्त हैं लोगों को पत्थर मारने में, डंडे लेकर दौड़ने में! कभी मस्त हैं लोगों को गालियां देने में! भीड़—भाड़ मच गई है! तो देर—अबेर हो जाती।
एक दिन साईं बाबा ने कहा कि तू नाहक पांच मील चल कर आता है। पहुंचते—पहुंचते सांझ हो जाती है, तब तू भोजन कर पाता है। कल से मैं ही आ जाऊंगा। तू कल मत आना। बड़ा खुश हुआ ब्राह्मण! कल तो उसने खूब सुस्वादु भोजन बनाए, मिष्ठान्न बनाए। सुबह से ही जल्दी—जल्दी उठ कर सब तैयारी कर डाली कि पता नहीं कब आ जाएं। नौ बजे, दस बजे, ग्यारह बजे, बारह बजे, एक बजे…कोई पता नहीं! दो बज गए, कोई पता नहीं। चार बज गए, कोई पता नहीं भागा थाली लेकर! सांझ होते—होते पहुंचा। साईं बाबा से कहा: आप भूल गए क्या? साईं बाबा ने कहा: मैं और भूल जाऊं! तू सोचता है, मैं कुछ भूल सकता हूं! मैं आया था, मगर नासमझ, तूने मुझे बाहर से ही दुतकार दिया! दुतकारा ही नहीं, तू डंडा लेकर मुझे मारने दौड़ा! उस ब्राह्मण ने कहा, हद हो गई, क्या बातें कर रहे हैं आप! होश में हैं? बैठा हूं सुबह से थाली सजाए, एक आदमी नहीं फटका! साईं बाबा ने कहा, मैंने कब कहा कि मैं आदमी की शकल में आऊंगा? एक कुत्ता नहीं आया था? वह तो भूल ही गया था ब्राह्मण; उसे याद आया कि हां, एक कुत्ता आया था। न केवल आया था बल्कि कई बार आने की कोशिश की…और एकदम थाली की तरफ ही जाता था! उसने कहा, हां एक कुत्ता आया था और एकदम थाली की तरफ ही जाता था। साईं बाबा ने कहा, मैंने सोचा कि थाली तूने मेरे लिए सजाई तो मैं थाली की तरफ जाता था। और तू एकदम डंडा मारता था! तूने घुसने ही न दिया घर में, तो मैं लौट आया।
ब्राह्मण ने कहा: मुझे माफ करें। मुझसे भूल हो गई। मुझे क्या पता, कि आपने मुझे एक अदभुत संदेश दिया, कि वही, एक ही सब में विराजमान है! कल, कल आ आएं! ऐसा नहीं होगा।
कल बैठा ब्राह्मण थाली लगाए…कुत्ते का आगमन कब हो? मगर कुत्ते का कोई पता नहीं। मुहल्ले में जाकर चक्कर भी मार आया कि कहीं कुत्ता भटक न गया हो। एक—दो कुत्ते मिले भी ऐसे आवारा, उनको लाने की भी कोशिश की, मगर वे आएं न! धमकाया, डंडा भी बताया, मगर वे और भाग गए! बड़ा हैरान…! फिर वही सांझ होने लगी, फिर आया और कहा कि महाराज, दिन—भर हो गया, परेशान हो गया, गांव के आवारा कुत्तों को खदेड़ता फिर रहा हूं, यह मैंने कभी सोचा नहीं था कि गांव के आवारा कुत्ते और सुस्वादु भोज लेने से इनकार कर देंगे! मैं उनको बुलाते जाता हूं, वे भागते हैं। जैसे कि किसी जाल में फंसा रहा हूं।
साईं बाबा ने कहा: मैं तो आया था, मगर तूने मुझे दुतकार दिया। मैं एक भिखमंगे की तरह आया था। अरे, उसने कहा, तो कल ही क्यों नहीं कहा! आज मैं कुत्ते की राह देखता रहा और आपको भिखमंगे की तरह आने की सूझी! एक भिखमंगा जरूर दोत्तीन बार आया, मैं तो उस पर इतना नाराज हुआ कि तू रास्ता पकड़ता है कि नहीं? यह भोजन तेरे लिए नहीं बनाया है। तो आप भिखमंगे की शक्ल में आए थे? कल!
साईं बाबा ने कहा: तुझे नहीं चलेगा। कल तू भिखमंगे की राह देखेगा। मेरा क्या भरोसा कल मैं किस शक्ल में आऊं! तू ही ले आया कर! वही आसान है। इसमें तू और झंझट में पड़ गया, और उलझन में पड़ गया।
विराट है अस्तित्व।
जो जानते हैं, उनके लिए, उनके ओंठों पर यही शब्द, हरि भारती, और अर्थ रखेंगे—
कोई इंसान इंसान को भला क्या देता है
आदमी सिर्फ बहाना है, बस खुदा देता है।
इसमें इंसान का विरोध नहीं है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति के भीतर परमात्मा की स्वीकृति है। मगर बिना जाने, अनजान में, अज्ञान में, मूर्च्छा में अर्थ बिलकुल बदल जाएगा। इसमें खुदा सिर्फ बहाना है। तुम्हें खुदा का कुछ पता है? खुदा कभी मिला है? कहीं आदमी मिला, कहीं कुत्ता मिला, कहीं बिल्ली मिली, कहीं हाथी मिला, कहीं घोड़ा मिला, कहीं झाड़ मिला—खुदा तुम्हें कहीं मिला है? खुदा की आड़ में तुम सब से इनकार कर दोगे। और ऐसा खुदा कहीं भी नहीं है, जिसकी तुम आड़ ले रहे हो। खुद तो सब में छिपा है। जहां भी खुदी का भाव है, वहीं खुदा है।

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