Monday 22 December 2014

दुनिया में तीन तरह के लोग हैं। एक जो दुनिया के राग में पड़े हैं, वे उदास नहीं हैं। दूसरे–जो दुनिया के प्रति विरागी हो गए हैं, वे भी उदास नहीं है। प्रेम घृणा में बदल गया। मित्रता शत्रुता बन गई। जिस तरफ देखते थे, वहां पीठ कर ली। लेकिन उदासी नहीं है।
उदास तो वह है, जो दोनों से मुक्त हो गया–राग से, विराग से। जिसको महावीर ने वीतराग कहा है। जो उदास है। उदास का अर्थ तुम्हारी उदासी नहीं कि पत्नी नाराज है, तुम उदास बैठे हो। कि धंधा ठीक नहीं चल रहा है, तुम उदास बैठ हो। यह तो राग है, यह उदासी नहीं है। यह तो राग असफल हो रहा है, इसलिए तुम उदास हो।
तुम्हारा आनंद भी झूठा है। कि आज धंधा खूब चला, कि तुमने ग्राहकों को खूब लूटा, कि तुम बड़े प्रसन्न घर चले जा रहे हो। पैर पड़ते नहीं जमीन पर, आकाश में उड़ते हैं। यह आनंद भी आनंद नहीं है। यह भी राग है। राग और विराग दोनों जब छूट जाएं। न तो संसार के प्रतिराग रहे और न घृणा। न द्वेष रहे, न राग; तब उदास।
उदासी परम अनुभव है। उदासी से बड़ा इस जगत में कुछ भी नहीं है। उदासी सुख भी नहीं है ध्यान रखना, जैसे तुम्हारे शब्द कोषों में लिखा है। उदासी परम आनंद है। संसार के प्रति उदासी तब ही आती है जब अपने प्रति परमानंद आ जाता है। जब परमात्मा में नृत्य चलने लगते हैं तब संसार के प्रति उदासी आ जाती है।

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