अहंकार आत्मबोध का आभाव है। आत्म स्मरण का आभाव है। अहंकार अपने को न जानने का दूसरा नाम है। इसलिए अहंकार से मत लड़ों। अहंकार और अंधकार पर्यायवाची है। हां, अपनी ज्योति को जला लो। ध्यान का दीया बन जाओ। भीतर एक जागरण को उठा लो। भीतर सोए-सोए न रहो। भीतर होश को उठा लो। और जैसे ही होश आया, चकित होओगे, हंसोगे—अपने पर हंसोगे। हैरान होओगे। एक क्षण को तो भरोसा भी न आएगा कि जैसे ही भीतर होश आया वैसे ही अहंकार नहीं पाया जाता है। न तो मिटाया,न मिटा,पाया ही नहीं जाता है।
इसलिए मैं तुम्हें न तो सरल ढंग बता सकता हूं। न कठिन; न तो आसान रास्ता बता सकता हूं, न खतरनाक; न तो धीमा, न तेज। मैं तो सिर्फ इतना ही कह सकता हूं: जागों और जागने को ही मैं ध्यान कहता हूं।
आदमी दो ढंग से जी सकता है। एक मूर्च्छित ढंग है, जैसा हम सब जीते है। चले जाते है। यंत्रवत,किए जाते है काम यंत्रवत, मशीन की भांति। थोड़ी सी परत हमारे भीतर जागी है। अधिकांश हमारा अस्तित्व सोया पडा है। और वह जो थोड़ी सी परत जागी। वह भी न मालूम कितनी धूल ध्वांस, कितने विचारों, कितनी कल्पनाओं, कितने सपनों में दबी है।
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